स्पर्श भाग १ Chapter 12 एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त
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    NCERT Solution For Class 9 About 2.html स्पर्श भाग १

    एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त Here is the CBSE About 2.html Chapter 12 for Class 9 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 9 About 2.html एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त Chapter 12 NCERT Solutions for Class 9 About 2.html एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त Chapter 12 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 9 About 2.html.

    Question 1
    CBSEENHN9000839

    निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    (क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए, जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है-
    (i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................


    (ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................


    (iii) पुजारी से प्रसाद/ फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन: स्थिति।
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................

    (iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................
    ...................................................

    Solution

    (i) नहीं खेलना रूकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल- भर
    मेरा हृदय काँप उठता था
    बाहर गई निहार उसे।

    (ii) ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
    मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
    स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
    पाकर समुदित रवि-कर-जाल।

    (iii) भूल गया उसका लेना झट
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा, बेटी को माँ के ये
    पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

    (iv) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी,
    हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
    हुई राख की थी ढेरी!
    अंतिम बार गोद में बेटी
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ का प्रसाद भी
    तुझको दे न सका मैं हा!

    Question 2
    CBSEENHN9000840

    बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?

    Solution
    एक बच्ची थी सुखिया। उसे महामारी ने चपेट में ले लिया था। एक दिन उसे तेज ज्वर ने जकड़ लिया। जिसके कारण उसने मौन धारण कर लिया अर्थात् ज्वर की तीव्रता के कारण वह बेहोशी की हालत में चली गई। उसी अवस्था में वह अपने पिता से बोली मुझे माता के चरणों का एक फूल लाकर दे दो। यही उसकी अंतिम इच्छा थी।
    Question 3
    CBSEENHN9000841

    सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?

    Solution
    सुखिया के पिता अछूत वर्ग के व्यक्ति थे। मंदिर जैसे पवित्र स्थानों पर उनका जाना निषेध था। अछूतों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। अछूत होकर भी सुखिया के पिता ने मन्दिर में प्रवेश पा लिया। लोगों के अनुसार उसने देवी माँ की पवित्रता नष्ट कर दी। एक प्रकार से यह देवी माँ का घोर अपमान था। इसलिए न्यायालय में आरोप लगाकर सात दिन का कारावास दे दिया।
    Question 4
    CBSEENHN9000842

    निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?

    Solution
    जेल से छूटने के बाद उसने अपनी बच्ची को घर में नहीं पाया। लोगों के बताने के अनुसार वह शमशान भागते हुए गया पर वहाँ उसके सगे-सम्बन्धी पहले ही उस मृतक सुखिया का दाह-संस्कार कर चुके थे। वहाँ सुखिया की चिता बुझी पड़ी थी। उसकी फूल-सी कोमल बच्ची राख की ढेरी के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी।
    Question 5
    CBSEENHN9000843

    निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    इस कविता का केंद्रीय भाव शब्दों में लिखिए।

    Solution
    यह कविता छुआछूत की समस्या पर केन्द्रित है। एक मरणासन्न अछूत कन्या के मन में यह चाह उठती है कि कोई उसे देवी माता के चरणों में अर्पित किया हुआ एक फूल लाकर दे दे। बेटी की मनोकामना को पूरी करने के लिए मंदिर से पूजा का फूल लाने का उसके पिता ने निश्चय किया और मंदिर में जाकर देवी की पूजा और अराधना की जिससे उच्च वर्ग के लोगों को अपना और अपनी देवी का अपमान प्रतीत हुआ तथा इस अपराध में इन समाज के उच्च वर्गीय लोगों ने कन्या के पिता को सात दिन के लिए दंडित करके अपनी पुत्री के अंतिम दर्शन करने से भी दूर रखा। इस समाज में फैली छुआछूत की भावना किस प्रकार लोगों के मन में भेदभाव जगाती हैं और निर्धन वर्ग के प्रति अन्याय उत्पन्न करती है। किस तरह सुखिया के पिता को सामाजिक अन्याय का शिकार होना पड़ा। इसका वर्णन करते हुए कवि ने इस विषमता को मिटाने पर बल दिया है।
    Question 6
    CBSEENHN9000844

    निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों/ बिंबों को. छाँटकर लिखिए-
    उदाहरण: अंधकार की छाया
    (i) .........................     (ii) ..........................
    (iii) ........................      (iv)..........................
    (v) .........................

    Solution

    (i) कितना बड़ा तिमिर आया        (ii) हुई राख की थी ढेरी        (iii) झुलसी-सी जाती थी आँखे
    (iv) हाय! फूल-सी कोमल बच्ची    (v) स्वर्ण घनों मे कब रवि डूबा।

    Question 7
    CBSEENHN9000845

    निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
    अविश्रांत बरसा करके भी
    आँखे तनिक नहीं रीती।

    Solution

    प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि निरंतर सात दिन तक अपनी पुत्री से दूर रहने के कारण सुखिया के पिता की आँखों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रही, किन्तु फिर भी उसकी आँखों के आँसू समाप्त नहीं हुए अर्थात् उसके मन की पीड़ा आँसुओ के रूप में निरन्तर बहती रही।
    अर्थ-सौन्दर्यः कवि ने इस पंक्ति. निरन्तर रोते रहने की दशा को अभिव्यक्त किया है। बादल लगातार बरसते रहने से एक दिन सामाप्त हो जाते हैं किन्तु सुखिया के पिता के आँसू थे कि वे एक पल के लिए भी थमें नहीं थे।

    Question 8
    CBSEENHN9000846

    निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी

    Solution

    प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि सात दिनों के बाद कारावास से छूटने के पश्चात् जब सुखिया के पिता वापस लौटे तो उनकी पुत्री की चिता जलकर बुझ भी चुकी थी अर्थात् उसकी मृत्यु हो जाने पर उनके संबंधियों ने सुखिया का अंतिम संस्कार कर दिया था। पुत्री की बुझी चिता को देखकर सुखिया के पिता के हृदय में दुख और वेदना की चिता धधकने लगी अर्थात् उनका मन बहुत दुखी हो गया।
    अर्थ-सौन्दर्य: कवि ने इस पंक्ति में बताया है कि एक चिता तो बुझ गई और दूसरी चिता धधकने लगी अर्थात् सुखिया की चिता तो जलकर बुझ गई परन्तु उसके पिता के हृदय में दुख वेदना की चिता धधकने लगी, इसमें अर्थ की सुंदरता है। एक चिता का बुझना। और दूसरी चिता का हृदय में धधकना।

    Question 9
    CBSEENHN9000847

    निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी

    Solution

    प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि सात दिनों के बाद कारावास से छूटने के पश्चात् जब सुखिया के पिता वापस लौटे तो उनकी पुत्री की चिता जलकर बुझ भी चुकी थी अर्थात् उसकी मृत्यु हो जाने पर उनके संबंधियों ने सुखिया का अंतिम संस्कार कर दिया था। पुत्री की बुझी चिता को देखकर सुखिया के पिता के हृदय में दुख और वेदना की चिता धधकने लगी अर्थात् उनका मन बहुत दुखी हो गया।
    अर्थ-सौन्दर्य: कवि ने इस पंक्ति में बताया है कि एक चिता तो बुझ गई और दूसरी चिता धधकने लगी अर्थात् सुखिया की चिता तो जलकर बुझ गई परन्तु उसके पिता के हृदय में दुख वेदना की चिता धधकने लगी, इसमें अर्थ की सुंदरता है। एक चिता का बुझना। और दूसरी चिता का हृदय में धधकना।

    Question 10
    CBSEENHN9000848

    निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
    हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
    अटल शांति-सी धारण कर

    Solution

    प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि तीव्र ज्वर के कारण सुखिया चुपचाप निढाल होकर ऐसे बिस्तर पर लेटी हुई थी जैसे उसने मृत्यु से पहले की अटल शांति को धारण कर लिया हो।
    अर्थ-सौन्दर्य: अर्थ की सुंदरता यह है कि ज्वर ग्रस्त होने के कारण सुखिया की चंचलता समाप्त हो गई थी और वह शांत भाव से चुपचाप लेटी हुई थी जैसे उसने अटल शांति को धारण कर लिया हो।

    Question 11
    CBSEENHN9000849

    निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
    पापी ने मंदिर में घुसकर
    किया अनर्थ बड़ा भारी

    Solution

    प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि जब सुखिया का पिता उसकी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर से फूल लेने जाता है। तब उच्च वर्ग के लोगों ने उसके पिता को अछूत और पापी कहकर उसका घोर अपमान किया। उसका मंदिर मे आना उन्हें अच्छा नहीं लगा और उन्होंने उसके इस प्रयास को अनर्थ बतलाया।
    अर्थ-सौन्दर्य: प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ-सौन्दर्य यह है कि जिस व्यक्ति ने कोई पाप नहीं किया और उसके मंदिर में आने के प्रयास को ही समाज ने उच्च वर्गीय लोगों ने पाप और अनर्थ का नाम दिया।

    Question 12
    CBSEENHN9000850

    सुखिया ने अपने पिता से देवी के प्रसाद का एक फूल क्यों माँगा?

    Solution
    सुखिया महामारी की चपेट में आ गई। वह गंभीर रूप से बीमार रहने लगी। उसे अंदर-ही-अंदर यह अनुभव हो गया था कि उसकी मृत्यु नजदीक है। इसलिए वह मरते समय देवी की कृपा पाना चाहती थी। वह स्वयं तो देवी के मंदिर में जाने में असमर्थ थी। इसलिए उसके अपने पिता को देवी के प्रसाद का एक फूल लाने को कहा।
    Question 13
    CBSEENHN9000851

    मंदिर के सौन्दर्य का वर्णन अपने शब्दों में करो।

    Solution
    देवी माँ का मंदिर ऊँचे पहाड़ की चोटी पर स्थित था। वह आकार मे बहुत विशाल और विस्तृत था। सूरज की किरणों के प्रकाश में उसका सुनहरा कलश खिल उठता था। मंदिर का गिन सदा दीप और धूप के प्रकाश और सुगंध से महकता रहता था। मंदिर के भक्तजन मीठी आवाज में भक्ति भरे गीत गाते रहते थे। वहाँ नित्य देवी का गुणगान होता रहता था। इस प्रकार मंदिर का वातावरण उत्सव के समान उल्लासमय प्रतीत होता था।
    Question 14
    CBSEENHN9000852

    सुखिया का पिता किस सामाजिक बुराई का शिकार हुआ?

    Solution
    सुखिया का पिता छुआछूत की सामाजिक बुराई का शिकार हुआ। सुखिया के पिता को मंदिर के पुजारियों ने इसलिए पीटा क्योंकि वह अछूत होते हुए भी अपनी बीमार बेटी के कहने पर मंदिर का प्रसाद लेने आया था केवल इसी कलेश के कारण उसे पीटा भी गया तथा उसकी लड़की भी चल बसी।
    Question 15
    CBSEENHN9000853

    इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

    Solution
    यह कविता पढ़कर हमें यह प्रेरणा मिलती है कि सभी प्राणियों को एक समान मानना चाहिए। जन्म को आधार मानकर किसी को अछूत कहना निन्दनीय अपराध हैं। किसी को निम्न जाति का मानकर मंदिर में प्रवेश न करने देना, मारपीट करना सरासर गलत है। मानव-मानव में भेद नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते है तो यह सम्पूर्ण मानवता का अपमान करने के समान है।
    Question 16
    CBSEENHN9000854

    निम्नलिखित पंक्तिओं को पढ़कर उनका भाव पक्ष लिखिए:
    उद्वेलिकत कर अश्रु-राशियाँ
    हृदय- चिताएँ धधकार,
    महा महामारी प्रचड़ं हो
    फैल रही थी इधर-उधर।
    क्षीण-कंठ मृतवत्साओं का
    करुण रुदन दुर्दात नितांत
    भरे हुए था निज कृश रव में
    हाहाकार अपार अशांत 

    Solution
    कवि महामारी के प्रचण्ड प्रकोप का वर्णन करते हुए कहता है कि चारों ओर महामारी फैली हुई थी। उसके कारण पीड़ित लोगों की आँखों से आँसुओं की झड़ियाँ उमड़ आई थी। उनके हृदय चिताओं की भाँति धधक उठे थे। अब लोग दुख के मारे बेचैन थें। अपने बच्चों को मरा हुआ देखकर माताओं के कंठ से अत्यन्त कमजोर स्वर में करुण रूदन निकल रहा था। वातावरण बहुत हृदय विदारक था। सब और अत्यधिक व्याकुल कर देने वाला हाहाकार मचा हुआ था। माताएँ कमज़ोर स्वर में रूदन मचा रही थी।
    Question 17
    CBSEENHN9000855

    निम्नलिखित पंक्तिओं को पढ़कर उनका शिल्प सौन्दर्य लिखिए:
    उद्वेलिकत कर अश्रु-राशियाँ
    हृदय- चिताएँ धधकार,
    महा महामारी प्रचड़ं हो
    फैल रही थी इधर-उधर।
    क्षीण-कंठ मृतवत्साओं का
    करुण रुदन दुर्दात नितांत
    भरे हुए था निज कृश रव में
    हाहाकार अपार अशांत 

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. प्रस्तुत पद्यांश में महामारी के फैलने का वर्णन है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. इस पद्यांश में रूपक, अनुप्रास, मानवी करण व पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
       महामारी प्रचंड ही फैल रही थी इधर-उधर - मानवीकरण
       हृदय चिता - रूपक

     

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    Question 23
    CBSEENHN9000861

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उनका भाव पक्ष लिखिए 
    बहुत रोकता था सुखिया को,
    ‘न जा खेलने को बाहर’,
    नहीं खेलना रुकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल-भर।
    मेरा हृदय काँप उठता था
    बाहर गई निहार उसे;
    यही मनाता था कि बचा लूँ
    किसी भाँति इस बार उसे। 

    Solution
    भाव पक्ष - पिता कहता है कि मैं अपनी बेटी सुखिया को बाहर जाकर खेलने से मना करता मैं बार-बार कहता था-, बाहर खेलने मत जा। परन्तु बार-बार मना करने के पश्चात भी उसका खेलना रूकता नहीं था। वह पल भर के लिए भी घर में नहीं रूकती थी। में उसकी इस चंचलता को देखकर भयभीत हो उठता था। मेरा दिल काँप उठता था मैं मन में हमेशा यही कामना करता था कि किसी तरह अपनी बेटी सुखिया को महामारी की चपेट में आने से बचा लूँ।
    Question 24
    CBSEENHN9000862

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उनका शिल्प सौन्दर्य लिखिए 
    बहुत रोकता था सुखिया को,
    ‘न जा खेलने को बाहर’,
    नहीं खेलना रुकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल-भर।
    मेरा हृदय काँप उठता था
    बाहर गई निहार उसे;
    यही मनाता था कि बचा लूँ
    किसी भाँति इस बार उसे। 

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. इस पद्यांश में भयभीत पिता की भावनाओं का मार्मिक चित्रण हुआ है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. मनाना, हृदय काँपना आदि मुहावरों का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है।

    Question 30
    CBSEENHN9000868

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उनका भाव पक्ष लिखिए:
    भीतर जो डर रहा छिपाए,
    हाय! वही बाहर आया।
    एक दिवस सुखिया के तनु को
    ताप-तप्त मैंने पाया।
    ज्वर में विहृल हो बोली वह,
    क्या जाएं किस डर से डर,
    मुझको देवी के प्रसाद का
    एक फूल ही दो लाकर।

    Solution
    भाव पक्ष -सुखिया का पिता कहता है कि मेरे मन में यही डर था कि कही मेरी बेटी सुखिया इस महामारी का शिकार न हो जाए। मैं इसी से डर रहा था। वही डर आखिर सच हो गया। एक दिन मैंने देखा कि सुखिया का शरीर बीमारी, के कारण जल रहा। बुखार से पीड़ित होकर और न किस अनजाने भय से भयभीत होकर मुझसे कहने लगी पिता जी। मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो।
    Question 31
    CBSEENHN9000869

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उनका शिल्प सौन्दर्य लिखिए:
    भीतर जो डर रहा छिपाए,
    हाय! वही बाहर आया।
    एक दिवस सुखिया के तनु को
    ताप-तप्त मैंने पाया।
    ज्वर में विहृल हो बोली वह,
    क्या जाएं किस डर से डर,
    मुझको देवी के प्रसाद का
    एक फूल ही दो लाकर।


    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. इसमें सुखिया के महामारी की चपेट में आने पर मृत्यु के बोध होने का सजीव चित्रण हुआ है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषाशैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक शैली है।
    8. कवि ने घटना का अत्यन्त सरल शब्दों में वर्णन किया है।

    Question 37
    CBSEENHN9000875

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उनका भाव पक्ष लिखिए
    क्रमश: कठ क्षीण हो आया,
    शिथिल हुए अवयव सारे,
    बैठा था नव-नव उपाय की
    चिंता में मैं मनमारे।
    जान सका न प्रभाव सजग से
    हुई अलस कब दोपहरी,
    स्वर्ण-घनों में कब रवि डूबा,
    कब आई संध्या गहरी।

    Solution
    भाव पक्ष- सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी का वर्णन करने हुए कहता है कि धीरे- धीरे महामारी का प्रभाव बढ़ने सुखिया का गला सूखने लगा, आवाज कमजोर पड गई और सभी अंग ढीले पड़ने लगे। मैं चिन्ता में डूबा हुआ मन से उसे ठीक करने के नए-नए उपाय सोचेने लगा। में मैं डूब गया कि पता ही नही चल सका कि कब ‘प्रात: कौल की हलचल समाप्त हुई और भरी -दोपहर आ, कब सुनहरी बादलों मे डूब गया और कब गहरी सांझ हुई?
    Question 38
    CBSEENHN9000876

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उनका शिल्प सौन्दर्य  लिखिए
    क्रमश: कठ क्षीण हो आया,
    शिथिल हुए अवयव सारे,
    बैठा था नव-नव उपाय की
    चिंता में मैं मनमारे।
    जान सका न प्रभाव सजग से
    हुई अलस कब दोपहरी,
    स्वर्ण-घनों में कब रवि डूबा,
    कब आई संध्या गहरी।

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. बीमार बेटी की चिन्ता में घुल रहे पिता की दयनीय मनोदशा का अत्यन्त संजीव चित्रण किया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. ‘नव-नव’ में पुनरूक्ति प्रकाश तथा ‘क्रमश: कंठ’ में अनुप्रास अलंकार है।

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    Question 44
    CBSEENHN9000882

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए - 
    सभी ओर दिखलाई दी बस,
    अधंकार की ही छाया
    छोटी-सी बच्ची को ग्रसने
    कितना बड़ा तिमिर आया!
    ऊपर विस्तृत महाकाश में
    जलते-से अंगारों से,
    झुलसी-सी जाती थी आँखें
    जगमग जगते तारों से।

    Solution
    भाव पक्ष-सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी के कारण हुई निराशा का वर्णन करता हुआ कहता है कि सुखिया की बीमारी के कारण मेरे मन में ऐसी घोर निराशा छा गई कि मुझे चारों ओर अंधेरे की ही छाया घिरी दिखाई देने लगी। मुझे लगा कि मेरी नन्हीं-सी बेटी को निगलने के लिए इतना बड़ा अंधेरा चला आ रहा छनिक प्रकार खुले आकाश से जलते हुए अंगारों के समान तारे जगमगाते रहते हैं उसी भाँति सुखिया की आँखे ज्वर के कारण जली जाती थी। वह बेहद बीमार थी।
    Question 45
    CBSEENHN9000883

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए
    सभी ओर दिखलाई दी बस,
    अधंकार की ही छाया
    छोटी-सी बच्ची को ग्रसने
    कितना बड़ा तिमिर आया!
    ऊपर विस्तृत महाकाश में
    जलते-से अंगारों से,
    झुलसी-सी जाती थी आँखें
    जगमग जगते तारों से।

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. सुखिया की असाध्य बीमारी का सजीव व कारूणिक चित्रण किया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. (i) ‘तिमिर’ का मानवीकरण किया गया है।
       (ii) ‘जलते से अंगारों’ और जगमग जगते तारों से’ मे उपमा अलंकार है।

    Question 51
    CBSEENHN9000889

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    देख रहा था-जो सुस्थिर हो
    नहीं बैठती थी क्षण-भर,
    हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
    अटल शांति-सी धारण कर।
    सुनना वही चाहता था मैं
    उसे स्वयं ही उकसाकर-
    मुझको देवी के प्रसाद का
    एक फूल ही दो लाकर! 



    Solution
    भाव पक्ष- सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी के कारण हुई दुर्दशा का चित्रण करता हुआ कहता है कि मैं अपने सामने ही देख रहा कि मेरी बेटी, जो पल भर के लिए भी टिककर नहीं बैठती थी, वही अब स्थिर शांति की मूर्ति बनी चुपचाप बिस्तर पर पड़ी थी। मैं अब उसे स्वयं ही बार-बार प्रेरित कर रहा था कि वह मुझे फिर से वही शब्द कहे-पिताजी! मुझे देवी के प्रसाद का फूल लाकर दो।
    Question 52
    CBSEENHN9000890

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य  लिखिए 
    देख रहा था-जो सुस्थिर हो
    नहीं बैठती थी क्षण-भर,
    हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
    अटल शांति-सी धारण कर।
    सुनना वही चाहता था मैं
    उसे स्वयं ही उकसाकर-
    मुझको देवी के प्रसाद का
    एक फूल ही दो लाकर! 



    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. इससे पिता के दारूण दुख का अत्यन्त मार्मिक वर्णन हुआ है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. ‘अटल शांति-सी’ में उपमा अलंकार है।

     
    Question 58
    CBSEENHN9000896

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
    मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
    स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
    पाकर समुदित रवि- कर- जाल।
    दीप- धूप से आमोदित था
    मंदिर का आँगन सारा;
    गूँज रही थी भीतर- बाहर
    मुखरित उत्सव की धारा।

    Solution
    भाव पक्ष -मंदिर की शोभा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ऊँचे पर्वत चोटी पर एक विस्तृत और विशाल मंदिर खड़ा था। उसके सोने के कलश की किरणों से चमकते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे सूर्य की खिली हुई किरणों का स्पर्श सुनहरे कमल खिल उठे हो। मंदिर का सारा आँगन धूप-दीप की सुंगध से भरा हुआ था अर्थात महक रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर सभी स्थान पर वहाँ मनाए जा रहे उत्सव की प्रसन्नता भरी आवाज गूँज रही थी।
    Question 59
    CBSEENHN9000897

    निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए:
    ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
    मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
    स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
    पाकर समुदित रवि- कर- जाल।
    दीप- धूप से आमोदित था
    मंदिर का आँगन सारा;
    गूँज रही थी भीतर- बाहर
    मुखरित उत्सव की धारा।

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. मंदिर की भव्यता का वर्णन किया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. (i) मंदिर के सौंदर्य के अनुरूप भाषा भी सुंदर है।
       (ii) ‘स्वर्ण-कमश सरसिज’ में रूपक अलंकार है।
       (iii) ‘शैली-शिखर’, विस्तीर्ण विशाल’, भीतर-बाहर मुखरित, दीप-धूप में अनुप्रास अलंकार है।

    Question 65
    CBSEENHN9000903

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष स्पष्ट कीजिये:
    भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से
    गाते थे सभक्ति मुद-मय,-
    ‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी,
    माता, तेरी जय-जय-जय!’
    ‘पतित-तारिणी, तेरी जय-जय’-
    मेरे सुख से भी निकला,
    बिना बढ़े ही मैं आगे को
    जाने किस बल से ढिकला!

    Solution
    भाव पक्ष- कवि कहते है कि वहाँ मंदिर में उपस्थित भक्तों का समूह पूर्ण भक्ति और प्रसन्नता के साथ कोमल और मधुर कंठ से गा रहे थे-हे पापियों को तारने वालीं और सबके पापों को दूर करने वाली माँ तेरी जय हो, जय हो। यह देखकर और सुनकर मेरे मुख से अनायास ही माँ की जय जयकार निकल पड़ी और मैंने भी कहा-हे पतित लोगों का उद्धार करने वाली माँ, तेरी जय हो, जय हो, जय हो। मैंने आगे बढ़ने का प्रयास किए बिना ही न मालूम किस अज्ञात-शक्ति के जोर से आगे जा पहुँचा अर्थात् मैंने जानबूझकर बढ़ने का प्रयास नहीं किया बल्कि लोगों की भीड़ के धक्के लगने से अपने आप ही आगे अर्थात् अंदर जा पहुँचा।
    Question 66
    CBSEENHN9000904

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य स्पष्ट कीजिये:
    भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से
    गाते थे सभक्ति मुद-मय,-
    ‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी,
    माता, तेरी जय-जय-जय!’
    ‘पतित-तारिणी, तेरी जय-जय’-
    मेरे सुख से भी निकला,
    बिना बढ़े ही मैं आगे को
    जाने किस बल से ढिकला!

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. भक्तजन भक्ति के भाव में डूबकर और मंत्रमुग्ध होकर माँ का गुणगान कर रहे थे।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. ‘वृंद मृदु-मधुर’ व ‘मेरे मुख’ में अनुप्रास अलंकार है।

    Question 72
    CBSEENHN9000910

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए
    मेरे दीप-फूल लेकर वे
    अंबा को अर्पित करके
    दिया पुजारी ने प्रसाद जब
    आगे को अंजलि भरके,
    भूल गया उसका लेना झट,
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा-बेटी को माँ के ये
    पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं। 



    Solution
    सभाव पक्ष-देवी माँ के प्रसाद का फूल लेने के लिए सुखिया का पिता मंदिर में जा पहुंचा। उस समय का वर्णन करते हुए पिता कहता है-मैंने दीप और फूल माँ को भेंट चढ़ाए। पूजा के फूल लेकर मैं प्रसन्न हो उठा। तभी पुजारी ने दोनों हाथों से मुझे माँ की पूजा का प्रसाद दिया। परन्तु मैं फूल पाने की प्रसन्नता में उस प्रसाद को लेना भूल गया। मुझे तो वह फूल ही ईश्वर की कृपा जैसा लाभकारी लग रहा था। इसलिए मैंने यही सोचा कि जल्दी से घर जाकर अपनी बीमार बेटी को माँ की पूजा के ये फूल दूँ ताकि वह स्वस्थ हो जाए।
    Question 73
    CBSEENHN9000911

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए
    मेरे दीप-फूल लेकर वे
    अंबा को अर्पित करके
    दिया पुजारी ने प्रसाद जब
    आगे को अंजलि भरके,
    भूल गया उसका लेना झट,
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा-बेटी को माँ के ये
    पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं। 



    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. मंदिर की पूजा-विधि को सजीव चित्रण किया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. कवि की वर्णन शैली सजीव, स्पष्ट व चित्रात्मक है।
        (i) ‘परम लाभ-सा’ में उपमा अलंकार है।
        (ii) पुण्य-दुष्य में अनुप्रास अलंकार है।

    Question 79
    CBSEENHN9000917

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    सिंह पौर तक भी आँगन से
    नहीं पहुँचने मैं पाया,
    सहसा यह सुन पड़ा कि-”कैसे
    यह अछूत भीतर आया?
    पकड़ो देखो भाग न जावे
    बना धूर्त यह है कैसा;
    साफ-स्वच्छ परिधान किए है,
    भले मानुषों के जैसा

    Solution
    भाव पक्षसुखिया के पिता मंदिर में पूजा के फूल लेने गए तो भक्तों ने उन्हें अछूत कहकर पकड़ लिया। अभी वह मंदिर के गिन से मुख्य द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि अचानक ही वह आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ी-यह अछूत मंदिर में कैसे आया था? इसे पकड़ लो, देखो, कहीं भाग न जाए। यह धूर्त साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर कैसा भले मनुष्यों जैसा बना हुआ है।

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    Question 80
    CBSEENHN9000918

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए
    सिंह पौर तक भी आँगन से
    नहीं पहुँचने मैं पाया,
    सहसा यह सुन पड़ा कि-”कैसे
    यह अछूत भीतर आया?
    पकड़ो देखो भाग न जावे
    बना धूर्त यह है कैसा;
    साफ-स्वच्छ परिधान किए है,
    भले मानुषों के जैसा

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. भक्तों द्वारा अछूतों का अपमान किए जाने का सजीव वर्णन हुआ है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. कवि की कथा शैली बहुत सशक्त, सजीव व रोचक है।

     

    Question 86
    CBSEENHN9000924

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    पापी ने मंदिर में घुसकर
    किया अनर्थ बड़ा भारी;
    कलुषित कर दी है मंदिर की
    चिरकालिक शुचिता सारी।”
    ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है
    देवी की गरिमा से भी;
    किसी बात में हूँ मैं आगे
    माता की महिमा के भी?

    उसका भाव पक्ष लिखिए

    Solution
    भाव पक्ष -लोग कहते है कि इस पापी ने मंदिर में घुसकर इतने लम्बे समय से बनी हुई मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है। इसके प्रवेश से मंदिर अपवित्र हो गया है। मैंने मन में सोचा-अरे! क्या मंदिर में आने का मेरा पाप भगवती से भी बड़ा है। क्या में किसी बात में देवी के महत्व से भी बढ़कर हूँ। मेरे द्वारा मंदिर अपवित्र हो गया है।
    Question 87
    CBSEENHN9000925

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य  लिखिए
    पापी ने मंदिर में घुसकर
    किया अनर्थ बड़ा भारी;
    कलुषित कर दी है मंदिर की
    चिरकालिक शुचिता सारी।”
    ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है
    देवी की गरिमा से भी;
    किसी बात में हूँ मैं आगे
    माता की महिमा के भी?

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. छुआछूत के विचार को निन्दनीय बताया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
    8. संवादों के कारण भी कथन प्रभावशाली बन पड़ा है।

    Question 93
    CBSEENHN9000931

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    माँ के भक्त हुए तुम कैसे,
    करके यह विचार खोटा?
    माँ के सम्मुख ही माँ का तुम
    गौरव करते हो छोटा!
    कुद न सुना भक्तों ने, झट से
    मुझे घेरकर पकड़ लिया;
    मार-मारकर मुक्के-घुसे
    धम-से नीचे गिरा दिया!

    Solution
    भाव पक्षसुखिया का पिता भक्तों को कहता है कि क्या मेरे पाप तुम्हारी देवी की महानता से भी अधिक बढ़कर है? क्या मेरे मैल में तुम्हारी देवी के गौरव को नष्ट करने की शक्ति है? तुम ऐसा तुच्छ विचार करके भी स्वयं को माता का भक्त कैसे कहला सकते हो? ऐसा विचार प्रकट करके तो तुम माता के सामने ही माता का गौरव छोटा कर रहे हो। पर उस समय उन देवी के भक्तों ने मेरी कोई भी बात नहीं सुनी। उन्होंने मुझे पकड़ लिया। मुक्के और घूसे मार-मारकर नीचे गिरा दिया।
    Question 94
    CBSEENHN9000932

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए:
    माँ के भक्त हुए तुम कैसे,
    करके यह विचार खोटा?
    माँ के सम्मुख ही माँ का तुम
    गौरव करते हो छोटा!
    कुद न सुना भक्तों ने, झट से
    मुझे घेरकर पकड़ लिया;
    मार-मारकर मुक्के-घुसे
    धम-से नीचे गिरा दिया!

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. सुखिया के पिता के वचनों में प्रशन से अधिक तिरस्कार है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।

    Question 100
    CBSEENHN9000938

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए
    मेरे हाथों से प्रसाद भी
    बिखर गया हा! सबका सब,
    हाय! अभागी बेटी तुझ तक
    कैसे पहुँच सके यह अब।
    न्यायालय ले गए मुझे वे,
    सात दिवस का दंड-विधान
    मुझको हुआ; हुआ था मुझसे
    देवी का महान अपमान!

    Solution
    भाव पक्ष- सुखिया के पिता कहते है कि मेरे हाथ का (पुजारी द्वारा दिया गया) सारा-का-सारा प्रसाद वही बिखर गया। मैं अपने हाहाकार दुखी मन से सोचने लगा कि हाय मेरी अभागी बेटी! अब ऐसी स्थिति में देवी का यह प्रसाद तेरे पास तक कैसे पहुँचा पाऊँगा क्योंकि वह तो बिखर कर उन देवी के भक्तों द्वारा कुचला जा चुका था। पिता का हृदय दुखी हुआ और पश्चाताप करने लगा कि हाय बेटी! मैं तुझे अंतिम बार भी गोद में नहीं ले सका। न ही देवी के प्रसाद का एक फूल ही लाकर दे सका। कैसा अभागा पिता हूँ जो अपनी संतान की अंतिम इच्छा भी पूरी न कर सका। वे लोग मुझे न्यायालय ले गए। सात दिन की कारावास की सजा हुई क्योंकि मेरे द्वारा देवी का अपमान किया गया था।
    Question 101
    CBSEENHN9000939

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए
    मेरे हाथों से प्रसाद भी
    बिखर गया हा! सबका सब,
    हाय! अभागी बेटी तुझ तक
    कैसे पहुँच सके यह अब।
    न्यायालय ले गए मुझे वे,
    सात दिवस का दंड-विधान
    मुझको हुआ; हुआ था मुझसे
    देवी का महान अपमान!

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. पिता की कारूणिक दशा और बेबसी का उल्लेख किया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।

    Question 106
    CBSEENHN9000944

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए
    मैने स्वीकृत किया दंड वह
    शीश झुकाकर चुप ही रह;
    उस असीम अभियोग, दोष का
    क्या उत्तर देता, क्या कह?
    सात रोज़ ही रहा जेल में
    या कि वहाँ सदियाँ बीतीं,
    अविश्रांत बरसा करके भी
    आँखें तनिक नहीं रीतीं। 

    Solution
    भाव पक्षसुखिया के पिता ने सिर झुकाकर इस दंड को स्वीकार कर लिया। उस पर जो आरोप लगाया गया था, वह उसका क्या उत्तर देता। वह अपनी रक्षा में क्या कहता! उसे कुछ न छा। वह सात दिनों तक जेल में रहा। उसके लिए ये सात दिन सैकड़ों वर्षा के समान भारी थे। उसकी आँखो से निरंतर आँसू बहते रहे। उनकी वेदना कम नहीं हुई।
    Question 107
    CBSEENHN9000945

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए
    मैने स्वीकृत किया दंड वह
    शीश झुकाकर चुप ही रह;
    उस असीम अभियोग, दोष का
    क्या उत्तर देता, क्या कह?
    सात रोज़ ही रहा जेल में
    या कि वहाँ सदियाँ बीतीं,
    अविश्रांत बरसा करके भी
    आँखें तनिक नहीं रीतीं। 

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. इसमें एक अछूत व्यक्ति की विवशता, निराशा और दयनीय दशा का कारुणिक चित्रण हुआ है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।

    Question 113
    CBSEENHN9000951

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए
    दंड भोगकर जब मैं छूटा,
    पैर न उठते थे घर को;
    पीछे ठेल रहा था कोई
    भय-जर्जन तनु पंजर को।
    पहले की-सी लेने मुझको
    नहीं दौड़कर आई वह;
    उलझी हुई खेल में ही हा!
    अबकी दी न दिखाई वह।

    Solution
    भाव पक्ष: सुखिया का पिता आपबीती सुनाते हुए कहता है कि जब मैं सात दिनों का कारावास काटकर छूटा तो कदम घर की ओर नहीं उठ रहे थे। मन में अज्ञात आशंका ने घर कर लिया था कि अब बेटी जीवित नहीं रही। इसलिए ऐसा लगता था जैसे कोई मेरे भय से जर्जर अस्थि पंजर को पीछे की ओर धकेल रहा है? मेरे पाँव घर की ओर नहीं पड़ रहे थे। पहले मेरी बेटी मुझे देखते ही मुझे लिवाने के लिए दौड़ी चली आती थी: किन्तु आज ऐसा नहीं हुआ। लगता था कि जैसे वह किसी खेल में उलझी हुई हो। इसलिए इस बार वह मेरे पास दौड़ी नहीं आई।
    Question 114
    CBSEENHN9000952

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए
    दंड भोगकर जब मैं छूटा,
    पैर न उठते थे घर को;
    पीछे ठेल रहा था कोई
    भय-जर्जन तनु पंजर को।
    पहले की-सी लेने मुझको
    नहीं दौड़कर आई वह;
    उलझी हुई खेल में ही हा!
    अबकी दी न दिखाई वह।

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. अछूत पिता की दयनीय दशा का चित्रण बहुत कारूणिक बन पड़ा है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।

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    Question 120
    CBSEENHN9000958

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    उसे देखने मरघट को ही
    गया दौड़ता हुआ वहाँ,
    मेरे परिचित बंधु प्रथम ही
    फूँक चुके थे उसे जहाँ।
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी,
    हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
    हुई राख की थी ढेरी!


    Solution
    भाव पक्षसुखिया के पिता को मंदिर में प्रवेश करने के अपराध में सात दिन की जेल हो गई। इसी बीच उसकी बेटी चल बसी। अत: जेल से छूटने के बाद वह अपनी बेटी को देखने के लिए श्मशान घाट पहुँचा। वह अधीर होकर दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा ताकि उसे अंतिम बार देख सके। परन्तु उसके जानकार तथा संबंधी उसे पहले ही जला चुके थे। उसकी चिता बुझ चुकी थी। हाय! उसकी फूल जैसी कोमल बच्ची राख की ढेरी बन चुकी थी। उसे देखकर सुखिया के पिता की छाती काँप उठी।
    Question 121
    CBSEENHN9000959

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए:
    उसे देखने मरघट को ही
    गया दौड़ता हुआ वहाँ,
    मेरे परिचित बंधु प्रथम ही
    फूँक चुके थे उसे जहाँ।
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी,
    हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
    हुई राख की थी ढेरी!


    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. अछूत कन्या के पिता की मार्मिक दशा का वर्णन किया गया है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।

    Question 127
    CBSEENHN9000965

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
    अंतिम बार गोद में बेटी,
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ का प्रसाद भी
    तुझको दे न सका मैं हा!


    Solution
    भाव पक्षसुखिया का पिता अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए अपनी मृत बालिका को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि हे प्रिय बेटी सुखिया! मैं तुझे अंतिम बार अपनी गोद में न ले सका। तुमने अंतिम समय में देवी माँ के मंदिर के प्रसाद का एक फूल मुझसे माँगा था। मैं अभागा वह नन्हा-सा फूल भी लाकर न दे सका मैं सममुच अभागा पिता हूँ। अछूत होने के कारण मैं सचमुच अभागा इन्सान हूँ।
    Question 128
    CBSEENHN9000966

    निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका शिल्प सौन्दर्य लिखिए:
    अंतिम बार गोद में बेटी,
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ का प्रसाद भी
    तुझको दे न सका मैं हा!


    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. इसमें एक वात्सल्यपूर्ण पिता की वेदना व्यक्त हुई है।
    2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
    3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
    4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
    6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
    7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।

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