Question
निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष स्पष्ट कीजिये:
भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से
गाते थे सभक्ति मुद-मय,-
‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी,
माता, तेरी जय-जय-जय!’
‘पतित-तारिणी, तेरी जय-जय’-
मेरे सुख से भी निकला,
बिना बढ़े ही मैं आगे को
जाने किस बल से ढिकला!
Solution
भाव पक्ष- कवि कहते है कि वहाँ मंदिर में उपस्थित भक्तों का समूह पूर्ण भक्ति और प्रसन्नता के साथ कोमल और मधुर कंठ से गा रहे थे-हे पापियों को तारने वालीं और सबके पापों को दूर करने वाली माँ तेरी जय हो, जय हो। यह देखकर और सुनकर मेरे मुख से अनायास ही माँ की जय जयकार निकल पड़ी और मैंने भी कहा-हे पतित लोगों का उद्धार करने वाली माँ, तेरी जय हो, जय हो, जय हो। मैंने आगे बढ़ने का प्रयास किए बिना ही न मालूम किस अज्ञात-शक्ति के जोर से आगे जा पहुँचा अर्थात् मैंने जानबूझकर बढ़ने का प्रयास नहीं किया बल्कि लोगों की भीड़ के धक्के लगने से अपने आप ही आगे अर्थात् अंदर जा पहुँचा।