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एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त

Question
CBSEENHN9000896

निम्नलिखित पद्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए:
ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
पाकर समुदित रवि- कर- जाल।
दीप- धूप से आमोदित था
मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर- बाहर
मुखरित उत्सव की धारा।

Solution
भाव पक्ष -मंदिर की शोभा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ऊँचे पर्वत चोटी पर एक विस्तृत और विशाल मंदिर खड़ा था। उसके सोने के कलश की किरणों से चमकते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे सूर्य की खिली हुई किरणों का स्पर्श सुनहरे कमल खिल उठे हो। मंदिर का सारा आँगन धूप-दीप की सुंगध से भरा हुआ था अर्थात महक रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर सभी स्थान पर वहाँ मनाए जा रहे उत्सव की प्रसन्नता भरी आवाज गूँज रही थी।

Some More Questions From एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त Chapter

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
अविश्रांत बरसा करके भी
आँखे तनिक नहीं रीती।

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
अटल शांति-सी धारण कर

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
पापी ने मंदिर में घुसकर
किया अनर्थ बड़ा भारी

सुखिया ने अपने पिता से देवी के प्रसाद का एक फूल क्यों माँगा?

मंदिर के सौन्दर्य का वर्णन अपने शब्दों में करो।

सुखिया का पिता किस सामाजिक बुराई का शिकार हुआ?

इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

निम्नलिखित पंक्तिओं को पढ़कर उनका भाव पक्ष लिखिए:
उद्वेलिकत कर अश्रु-राशियाँ
हृदय- चिताएँ धधकार,
महा महामारी प्रचड़ं हो
फैल रही थी इधर-उधर।
क्षीण-कंठ मृतवत्साओं का
करुण रुदन दुर्दात नितांत
भरे हुए था निज कृश रव में
हाहाकार अपार अशांत