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एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त

Question
CBSEENHN9000910

निम्नलिखित काव्याशं को पढ़कर उसका भाव पक्ष लिखिए
मेरे दीप-फूल लेकर वे
अंबा को अर्पित करके
दिया पुजारी ने प्रसाद जब
आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट,
परम लाभ-सा पाकर मैं।
सोचा-बेटी को माँ के ये
पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं। 



Solution
सभाव पक्ष-देवी माँ के प्रसाद का फूल लेने के लिए सुखिया का पिता मंदिर में जा पहुंचा। उस समय का वर्णन करते हुए पिता कहता है-मैंने दीप और फूल माँ को भेंट चढ़ाए। पूजा के फूल लेकर मैं प्रसन्न हो उठा। तभी पुजारी ने दोनों हाथों से मुझे माँ की पूजा का प्रसाद दिया। परन्तु मैं फूल पाने की प्रसन्नता में उस प्रसाद को लेना भूल गया। मुझे तो वह फूल ही ईश्वर की कृपा जैसा लाभकारी लग रहा था। इसलिए मैंने यही सोचा कि जल्दी से घर जाकर अपनी बीमार बेटी को माँ की पूजा के ये फूल दूँ ताकि वह स्वस्थ हो जाए।

Some More Questions From एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त Chapter

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए, जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है-
(i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
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(ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
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(iii) पुजारी से प्रसाद/ फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन: स्थिति।
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(iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
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बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?

सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
इस कविता का केंद्रीय भाव शब्दों में लिखिए।

निन्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों/ बिंबों को. छाँटकर लिखिए-
उदाहरण: अंधकार की छाया
(i) .........................     (ii) ..........................
(iii) ........................      (iv)..........................
(v) .........................

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
अविश्रांत बरसा करके भी
आँखे तनिक नहीं रीती।

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी

निन्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ-सौन्दर्य बताइए-
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
अटल शांति-सी धारण कर