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(ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
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(iii) पुजारी से प्रसाद/ फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन: स्थिति।
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(iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
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(i) नहीं खेलना रूकता उसका
नहीं ठहरती वह पल- भर
मेरा हृदय काँप उठता था
बाहर गई निहार उसे।
(ii) ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
(iii) भूल गया उसका लेना झट
परम लाभ-सा पाकर मैं।
सोचा, बेटी को माँ के ये
पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।
(iv) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी
तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी
तुझको दे न सका मैं हा!
(i) कितना बड़ा तिमिर आया (ii) हुई राख की थी ढेरी (iii) झुलसी-सी जाती थी आँखे
(iv) हाय! फूल-सी कोमल बच्ची (v) स्वर्ण घनों मे कब रवि डूबा।
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि निरंतर सात दिन तक अपनी पुत्री से दूर रहने के कारण सुखिया के पिता की आँखों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रही, किन्तु फिर भी उसकी आँखों के आँसू समाप्त नहीं हुए अर्थात् उसके मन की पीड़ा आँसुओ के रूप में निरन्तर बहती रही।
अर्थ-सौन्दर्यः कवि ने इस पंक्ति. निरन्तर रोते रहने की दशा को अभिव्यक्त किया है। बादल लगातार बरसते रहने से एक दिन सामाप्त हो जाते हैं किन्तु सुखिया के पिता के आँसू थे कि वे एक पल के लिए भी थमें नहीं थे।
प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि सात दिनों के बाद कारावास से छूटने के पश्चात् जब सुखिया के पिता वापस लौटे तो उनकी पुत्री की चिता जलकर बुझ भी चुकी थी अर्थात् उसकी मृत्यु हो जाने पर उनके संबंधियों ने सुखिया का अंतिम संस्कार कर दिया था। पुत्री की बुझी चिता को देखकर सुखिया के पिता के हृदय में दुख और वेदना की चिता धधकने लगी अर्थात् उनका मन बहुत दुखी हो गया।
अर्थ-सौन्दर्य: कवि ने इस पंक्ति में बताया है कि एक चिता तो बुझ गई और दूसरी चिता धधकने लगी अर्थात् सुखिया की चिता तो जलकर बुझ गई परन्तु उसके पिता के हृदय में दुख वेदना की चिता धधकने लगी, इसमें अर्थ की सुंदरता है। एक चिता का बुझना। और दूसरी चिता का हृदय में धधकना।
प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि सात दिनों के बाद कारावास से छूटने के पश्चात् जब सुखिया के पिता वापस लौटे तो उनकी पुत्री की चिता जलकर बुझ भी चुकी थी अर्थात् उसकी मृत्यु हो जाने पर उनके संबंधियों ने सुखिया का अंतिम संस्कार कर दिया था। पुत्री की बुझी चिता को देखकर सुखिया के पिता के हृदय में दुख और वेदना की चिता धधकने लगी अर्थात् उनका मन बहुत दुखी हो गया।
अर्थ-सौन्दर्य: कवि ने इस पंक्ति में बताया है कि एक चिता तो बुझ गई और दूसरी चिता धधकने लगी अर्थात् सुखिया की चिता तो जलकर बुझ गई परन्तु उसके पिता के हृदय में दुख वेदना की चिता धधकने लगी, इसमें अर्थ की सुंदरता है। एक चिता का बुझना। और दूसरी चिता का हृदय में धधकना।
प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि तीव्र ज्वर के कारण सुखिया चुपचाप निढाल होकर ऐसे बिस्तर पर लेटी हुई थी जैसे उसने मृत्यु से पहले की अटल शांति को धारण कर लिया हो।
अर्थ-सौन्दर्य: अर्थ की सुंदरता यह है कि ज्वर ग्रस्त होने के कारण सुखिया की चंचलता समाप्त हो गई थी और वह शांत भाव से चुपचाप लेटी हुई थी जैसे उसने अटल शांति को धारण कर लिया हो।
प्रस्तुत पंक्ति का यह आशय है कि जब सुखिया का पिता उसकी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर से फूल लेने जाता है। तब उच्च वर्ग के लोगों ने उसके पिता को अछूत और पापी कहकर उसका घोर अपमान किया। उसका मंदिर मे आना उन्हें अच्छा नहीं लगा और उन्होंने उसके इस प्रयास को अनर्थ बतलाया।
अर्थ-सौन्दर्य: प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ-सौन्दर्य यह है कि जिस व्यक्ति ने कोई पाप नहीं किया और उसके मंदिर में आने के प्रयास को ही समाज ने उच्च वर्गीय लोगों ने पाप और अनर्थ का नाम दिया।
शिल्प सौन्दर्य-
1. प्रस्तुत पद्यांश में महामारी के फैलने का वर्णन है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. इस पद्यांश में रूपक, अनुप्रास, मानवी करण व पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
महामारी प्रचंड ही फैल रही थी इधर-उधर - मानवीकरण
हृदय चिता - रूपक
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शिल्प सौन्दर्य-
1. इस पद्यांश में भयभीत पिता की भावनाओं का मार्मिक चित्रण हुआ है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. मनाना, हृदय काँपना आदि मुहावरों का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है।
B.
कही बेटी महामारी का शिकार न हो जाएB.
सभी जातियों के साथ खेलने चली जातीशिल्प सौन्दर्य-
1. इसमें सुखिया के महामारी की चपेट में आने पर मृत्यु के बोध होने का सजीव चित्रण हुआ है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषाशैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक शैली है।
8. कवि ने घटना का अत्यन्त सरल शब्दों में वर्णन किया है।
B.
बेटी महामारी का शिकार न होD.
प्रसाद के रूप में फूल।शिल्प सौन्दर्य-
1. बीमार बेटी की चिन्ता में घुल रहे पिता की दयनीय मनोदशा का अत्यन्त संजीव चित्रण किया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. ‘नव-नव’ में पुनरूक्ति प्रकाश तथा ‘क्रमश: कंठ’ में अनुप्रास अलंकार है।
D.
स्वास्थ्य में सुधार होने लगाSponsor Area
A.
गहरी उदासी, चिन्ता व निराशा के कारणC.
शिल्प सौन्दर्य:
1. सुखिया की असाध्य बीमारी का सजीव व कारूणिक चित्रण किया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. (i) ‘तिमिर’ का मानवीकरण किया गया है।
(ii) ‘जलते से अंगारों’ और जगमग जगते तारों से’ मे उपमा अलंकार है।
B.
प्रकोप के कारण उत्पन्न मृत्यु के भय कोD.
अनुप्रास, उपमा व मानवीकरणशिल्प सौन्दर्य:
1. इससे पिता के दारूण दुख का अत्यन्त मार्मिक वर्णन हुआ है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. ‘अटल शांति-सी’ में उपमा अलंकार है।
A.
स्वभाव से चचंल परन्तु अब स्थिर शांत लेटी थीC.
देवी के प्रसाद को पाने की इच्छा के लिएD.
तेज बुखार से उत्पन्न कमजोरी के कारणD.
एक स्थान पर चुपचाप पड़ी हुईशिल्प सौन्दर्य:
1. मंदिर की भव्यता का वर्णन किया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. (i) मंदिर के सौंदर्य के अनुरूप भाषा भी सुंदर है।
(ii) ‘स्वर्ण-कमश सरसिज’ में रूपक अलंकार है।
(iii) ‘शैली-शिखर’, विस्तीर्ण विशाल’, भीतर-बाहर मुखरित, दीप-धूप में अनुप्रास अलंकार है।
शिल्प सौन्दर्य:
1. भक्तजन भक्ति के भाव में डूबकर और मंत्रमुग्ध होकर माँ का गुणगान कर रहे थे।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. ‘वृंद मृदु-मधुर’ व ‘मेरे मुख’ में अनुप्रास अलंकार है।
D.
देवी माँ की प्रतिभा के प्रति आकर्षित अनजान बल सेशिल्प सौन्दर्य:
1. मंदिर की पूजा-विधि को सजीव चित्रण किया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. कवि की वर्णन शैली सजीव, स्पष्ट व चित्रात्मक है।
(i) ‘परम लाभ-सा’ में उपमा अलंकार है।
(ii) पुण्य-दुष्य में अनुप्रास अलंकार है।
C.
कार्य सिद्ध हो जाने के प्रसन्नता सेSponsor Area
शिल्प सौन्दर्य:
1. भक्तों द्वारा अछूतों का अपमान किए जाने का सजीव वर्णन हुआ है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. कवि की कथा शैली बहुत सशक्त, सजीव व रोचक है।
A.
अछूत मंदिर के भीतर कैसे-पहुँचा?शिल्प सौन्दर्य:
1. छुआछूत के विचार को निन्दनीय बताया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
8. संवादों के कारण भी कथन प्रभावशाली बन पड़ा है।
मंदिर में घुसकर चिरकालिक पवित्रता को नष्ट करना
B.
मंदिर में घुसकर चिरकालिक पवित्रता को नष्ट करना
शिल्प सौन्दर्य:
1. सुखिया के पिता के वचनों में प्रशन से अधिक तिरस्कार है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
C.
मुक्के-घूँसे मारकर नीचे गिरा दियाA.
अनुप्रास व पुनरूक्ति प्रकाशशिल्प सौन्दर्य:
1. पिता की कारूणिक दशा और बेबसी का उल्लेख किया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
B.
बेटी न तो प्रसाद पास की और न पिता कोशिल्प सौन्दर्य-
1. इसमें एक अछूत व्यक्ति की विवशता, निराशा और दयनीय दशा का कारुणिक चित्रण हुआ है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
B.
मन मस्तिष्क में अपार पीड़ा भरे होने के कारणशिल्प सौन्दर्य-
1. अछूत पिता की दयनीय दशा का चित्रण बहुत कारूणिक बन पड़ा है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
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शिल्प सौन्दर्य-
1. अछूत कन्या के पिता की मार्मिक दशा का वर्णन किया गया है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली- भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
B.
सगे-सम्बन्धियों ने उसका दाह-संस्कार कर दिया थाशिल्प सौन्दर्य-
1. इसमें एक वात्सल्यपूर्ण पिता की वेदना व्यक्त हुई है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है।
4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग दृष्टव्य है।
6. भाषा सरस, सरल व मर्मस्पर्शी है।
7. भाषा शैली-भावात्मक, कथात्मक, संवादात्मक व उदाहरणात्मक है।
D.
गोदी में बिठा प्रसाद रूपी फूल न दे पानाSponsor Area
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