स्पर्श भाग १ Chapter 1 धूल - रामविलास शर्मा
  • Sponsor Area

    NCERT Solution For Class 9 About 2.html स्पर्श भाग १

    धूल - रामविलास शर्मा Here is the CBSE About 2.html Chapter 1 for Class 9 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 9 About 2.html धूल - रामविलास शर्मा Chapter 1 NCERT Solutions for Class 9 About 2.html धूल - रामविलास शर्मा Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 9 About 2.html.

    Question 1
    CBSEENHN9000401

    निन्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रशनों के उत्तर दीजिए:
    हीरे के प्रेमी तो शायद उसे साफ-सुधरा, खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना पसंद करेंगे। परंतु हीरे से भी कीमती जिस नयन-तारे का जिक्र इस पंक्ति में किया गया है वह धूलि भरा ही अच्छा लगता है। जिसका बचपन गाँव के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन-सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए, लेकिन बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सभी सामग्री क्या धूल नहीं हो गई?
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) हीरे के प्रेमी हीरे को कैसा देखना पसंद करते हैं और क्यों?
    (ग) कवि ने ‘धूलि भरे हीरे’ किसे कहा है?
    (घ) धूल के बिना शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?

    Solution

    (क) पाठ- धूल, लेखक का नाम-रामविलास शर्मा।
    (ख) हीरे के प्रेमी हीरे को साफ-सुथरा, सुडौल, चिकना चमकदार, और औखों में चकाचौंध-पैदा करने वाला देखना चाहते हैं क्योंकि हीरा जितना अधिक सुडौल और चमकदार होगा-उसका मूल्य उतना ही अधिक होगा।
    (ग) ‘धूलि भरे हीरे’ से तात्पर्य है-मातृभूमि की धूल में लिपटकर बीता हुआ बचपन। शिशु को जमीन पर खेलना अच्छा लगता है। जमीन पर खेलने से वह धूल मिट्‌टी से भर जाता है। उसका सारा शरीर धूल से सने होने के कारण उसे धूल भरे हीरे कहा गया है।
    (घ) भूल के बिना शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। क्योंकि शिशु को धूल से बचाकर रखा ही नहीं जा सकता। वह किसी न किसी बहाने जमीन पर खेलेगा और धूल से लथपथ हो जाएगा।

    Question 2
    CBSEENHN9000402

    निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
    हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है, इसलिए शिशु भोलानाथ से कहती है, धूल में मत खेलो। भोलानाथ के संसर्ग से उसके नकली सलमे-सितारे धुँधले पड़ जाएँगे। जिसने लिखा था- ‘‘धन्य- धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की,’’ उसने भी मानो धूल भरे हीरों का महत्त्व कम करने में कुछ उठा न रखा था।’ धन्य-धन्य ‘ में ही उसने बड़प्पन को विज्ञापित किया, फिर ‘मैले’ शब्द से अपनी हीनभावना भी व्यंजित कर दी, अंत में ‘ऐसे लरिकान’ कहकर उसने भेद-बुद्धि का परिचय भी दे दिया। वह हीरों का प्रेमी है, धूलि भरे हीरों का नहीं।
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) हमारी सभ्यता भूल के संसर्ग से क्यों बचना चाहती है।
    (ग) इसमें आज की सभ्यता पर क्या व्यंग्य है?
    (घ) अपने बड़प्पन को विज्ञापित करने से क्या तात्पर्य है?




    Solution
    (क) पाठ-धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
    (ख) हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान को छूने की इच्छा रखती है।
    (ग) इस गद्यांश में आज की सभ्यता पर कटु व्यंग्य है। आज का सभ्य, सुशिक्षित वर्ग धूल-मिट्‌टी से घृणा करता है। वे बनावट- श्रृंगार और नकली साज-सज्जा को महत्त्व देते है। वे ऊपरी चमक-दमक को ही सौन्दर्य मानते है।
    (घ) अपनी महानता को संसार में दिखाने के लिए समाज के सभ्य लोग भूल से भरे शिशु को अपनी गोद में उठा लेते है, इस प्रकार जब वे मैले-कुचैले बच्चों को गोद में उठाते हैं तो लोग उनकी प्रशंसा करते है।
    Question 3
    CBSEENHN9000403

    निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
    गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम नहीं तोड़ दी, लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी संपत्ति है, जो शहरों के बाटे नहीं पड़ी। एक प्रसिद्ध पुस्तक विक्रेता के निमंत्रण-पत्र में गोधूलि की बेला में आने का आग्रह किया गया था, लेकिन शहर में भूल- धक्कड़ के होते हुए भी गोधूलि कहाँ? यह कविता की विडंबना थी और गाँवों में भी जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है. वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन से उत्पन्न होनेवाली धूल नहीं है, वरन् गो-गोपालों के पदों की धधु-लि है। 
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) गोधूलि को गाँव की सपंत्ति क्यों कहा गया है?
    (ग) पुस्तक विक्रेता ने निमत्रंण-पत्र में गोधूलि-बेला लिखकर क्या गलती की?
    (घ) कवियों ने किस भूल को अमर कर दिया?









    Solution

    (क) पाठ- धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
    (ख) गोधूलि को गाँव की संपत्ति कहा गया है। यह नगरों में नहीं होती। इसका कारण यह है कि गायों और -वालों के पैरों के चलने से उठी धूल को गोधूलि कहते हैं। शहरों में न तो गाएँ होती है और न ग्वाले और न उनके पैरों से उठी धूल। इसलिए गोधूलि गाँव की संपत्ति है न कि शहरों की।
    (ग) पुस्तक विक्रेता ने निमंत्रण-पत्र में गोधूलि-बेला लिख दिया। परन्तु शहर में धूल- धक्कड़ के अतिरिक्त न तो ग्वाले है और न ही गायें और न ही उनके पैरों से उठने वाली धूल। इसलिए यह उसकी गलती थी।
    (घ) कवियों ने उस धूल को अमर कर दिया जो गाँवों और -वालों के चलने से उनके पैरों से उड़ती है। यह हाथी-घोड़ों के पैरों के चलने से उठने वाली धूल नहीं है।

    Question 4
    CBSEENHN9000404

    निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
    हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे। किसान के हाथ-पैर, मुँह पर छाई हुई यह धूल हमारी सम्यता से कक्याकहती है? हम काँच को प्यार करते हैं, धूलि भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है, भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है, लेकिन ये हीरे अमर है और एक दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने अटूट होने का ही प्रमाण दिया है- “हीरा वही घन चोट न टूटे।” वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा। तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को भी माथे से लगाना सीखेंगे।
    (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
    (ख) हमारी देशभक्ति कैसे प्रमाणित होगी?
    (ग) हमें धूलि और हीरे में भूल दिखाई देती है-व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
    (घ) ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ से क्या अभिप्राय है?










    Solution

    (क) पाठ- धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
    (ख) हमारी देशभक्ति देश की धूलि को मस्तक पर धारण करने से प्रमाणित होगी। यदि इतना भी न कर सके तो उस धूल पर पैर तो अवश्य ही रखना चाहिए।
    (ग) लेखक ने इस पंक्ति से व्यंग्य किया है कि हमें धूलि भरे हीरे में चमक नहीं दिखाई देती। बल्कि धूल दिखाई देती है। इसका आशय यह है कि हमें ग्रामीण लोगों की स्वाभाविकता और सच्चाई नज़र नहीं आती, उनमें फूहड़ता नजर आती है।
    (घ) इस कथन का अभिप्राय है कि जैसे सच्चा हीरा हथौड़े की चोट से नहीं टूटता। उसी प्रकार से परिश्रमी किसान अपनी मजबूती और कठोरता से धूल-मिट्‌टी से लथपथ होने पर भी निरन्तर अपनी कर्म करता रहता है। वह संकट और कष्ट सहकर भी हार नहीं मानते बल्कि और अधिक मजबूत हो जाते है।

    Question 5
    CBSEENHN9000405

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:
    हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते है?

    Solution
    हीरे के प्रेमी उसे साफ सुथरा, खरादा हुआ और अस्त्रों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना चाहते हैं।
    Question 6
    CBSEENHN9000406

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:
    लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?

    Solution
    लेखक ने संसार में अखाड़े की मिट्टी में सनने के सुख को दुर्लभ माना है। तेल और मर से सिझाई हुई जिस मिट्‌टी को देवताओं पर चढ़ाया जाता है ऐसी इस अखाड़े की मिट्‌टी को अपनी देह पर लगाना संसार के सबसे दुर्लभ सुख के समान है।
    Question 7
    CBSEENHN9000407

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:
    मिट्‌टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?

    Solution
    मिट्‌टी की आभा का नाम ‘धूल’ है। और मिट्‌टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
    Question 8
    CBSEENHN9000408

    (क) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए:
    धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?


    Solution
    माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ्‌कर हैं। माँ की गोद से उतरकर बच्चा मातृभूमि पर कदम रखता है। घुटनों के बल चलना सीखता है फिर धूल से सनकर विविध क्रीड़ाएं करता है। शिशु का बचपन मातृभूमि की गोद में धूल से सनकर निखर उठता है। इसलिए धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। यह धूल ही है जो शिशु के मुँह पर पड़कर उसकी स्वाभाविक सुन्दरता को उभारती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए परन्तु शिशु के मुँह पर छाई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सामग्री कोई मूल्य नहीं रखती।
    Question 9
    CBSEENHN9000409

    (क) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए:
    हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?

    Solution
    हमारी सभ्यता धूल से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है। हवाई किले बनाती है। वास्तविकता से दूर रहती है परन्तु धूल के महत्व को नहीं समझती। यह सभ्यता अपने बच्चों को धूल में नहीं खेलने देना चाहती। धूल से उसकी बनावटी सुन्दरता सामने आ जाएगी। उसके नकली सलमें-सितारे धुँधले पड़ जायेंगे। धूल के प्रति उसमें हीनभावना है। इस प्रकार हमारी सभ्यता आकाश की बुलंदियों को छूना चाहती है। वह हीरों का प्रेमी है, धूल भरे हीरों का नहीं। धूल की कीमत को वह नहीं पहचानती।
    Question 10
    CBSEENHN9000410

    (क) निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए:
    अखाड़े की मिट्‌टी की क्या विशेषता होती है?

    Solution
    अखाड़े की मिट्‌टी शरीर को पहचानती है। यह साधारण मिट्‌टी नहीं है। इसे तेल और मट्ठे से रिझाया जाता है और देवताओं पर चढ़ाया जाता है। ऐसी मिट्‌टी में सनना परम सुख है जहाँ इसके स्पर्श से माँसपेशियाँ फूल उठती हैं। शरीर मजबूत और व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है। वही इसमें चारों खाने चित्त होने पर विश्व-विजेता होने के सुख का अहसास होता है। लेखक की दृष्टि में इसके स्पर्श से वंचित होने से बढ़कर दूसरा कोई दुर्भाग्य नहीं है।
    Question 11
    CBSEENHN9000411

    (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
    श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?

    Solution

    श्रद्धा विश्वास का प्रतीक है। भक्ति हृदय की भावनाओं का बोध कराती है। प्यार का बंधन स्नेह की भावनाओं को जोड़ता है। लोग कहते हैं कि धूल के समान तुच्छ कोई नहीं है, जबकि सभी धूल को माथे से लगाकर उसके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं। वीर योद्धा धूल को आँखों से लगाकर उसके प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं। हमारा शरीर भी मिट्‌टी से बना है। इस प्रकार धूल अपने देश के प्रति श्रद्धा, भक्ति और स्नेह व्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन है।

    Question 12
    CBSEENHN9000412

    (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-
    इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?

    Solution
    इस पाठ में लेखक ने बताया है कि जो लोग गाँव से जुड़े हुए हैं वे यह कल्पना ही नहीं कर सकते कि धूल के बिना भी कोई शिशु हो सकता है। वे धूल से सने हुए बच्चे को ‘धूलि भरे हीरे’ कहते हैं। आधुनिक नगरीय सभ्यता बच्चों को धूल में खेलने से मना करती है। नगर में लोग कृत्रिम वातावरण में जीने पर विवश होते है। नगर की सभ्यता को बनावटी, नकली और चकाचौंध भरी कहा गया है। यहाँ लोगों को काँच के हीरे ही प्यारे लगते हैं। नगरीय सभ्यता में गोधूलि का महत्व नहीं होता जबकि ग्रामीण परिवेश का यह अलंकार है। नगरों में तो धूल- धक्कड़ होते हैं गोधूलि नहीं होती।
    Question 13
    CBSEENHN9000413

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को क्यों श्रेष्ठ मानता है?

    Solution

    लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को इसलिए श्रेष्ठ मानता है क्योंकि यह धूल उनके सौन्दर्य को कई गुना बढ़ा देती है। तथा कृत्रिम प्रसाधन सामग्री की निरर्थकता को प्रकट किया गया है। फूलों के ऊपर रेणु उनकी शोभा को बढ़ाती है। वही शिशु के मुँह पर उसकी स्वाभाविक पवित्रता को निखार देती है। सौन्दर्य प्रसाधन उसे इतनी सुंदरता प्रदान नहीं करते जितनी धूल करती है। इसलिए लेखक धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता।

    Question 14
    CBSEENHN9000414

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    लेखक ने धूल और मिट्‌टी में क्या अतंर बताया है?

    Solution
    लेखक ने धूल और मिट्‌टी में विशेष अन्तर नहीं माना है। उसके अनुसार धूल और मिट्‌टी में उतना ही अंतर है जितना कि शब्द और रस में, देह और जान में अथवा चाँद और चाँदनी में होता है। जिस प्रकार ये अलग-अलग होते हुए भी एक हैं। उसी प्रकार धूल और मिट्‌टी अलग नाम होकर भी एक ही है। मिट्‌टी की आभा का नाम धूल है और मिट्‌टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से होती है। जीवन के सभी अनिवार्य सार तत्व मिट्‌टी से ही मिलते हैं। जिन फूलों को हम अपनी प्रिय वस्तुओं का उपमान बनाते हैं। वे सब मिट्‌टी की ही उपज है। रूप, रस, गंध, स्पर्श इन्हें मिट्‌टी की देन माना जा सकता है। मिट्‌टी में जब चमक उत्पन्न होती है तो वह धूल की पवित्र रूप ले लेती है। यही धूल हमारी संस्कृति की पहचान है।
    Question 15
    CBSEENHN9000415

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुदंर चित्र प्रस्तुत करती है?


    Solution

    ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अन्गिनत सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है:
    - ग्रामीण परिवेश में पले बड़े बच्चे धूल से सने दिखाई देते हैं। यह धूल उनके मुख पर उनकी सहज पवित्रता को निखार देती है।
    - गाँव के अखाड़ों में भी धूल का प्रभाव दिखाई देता है यहाँ की मिट्‌टी तेल और मट्ठे से सिझाई हुई होती है जिसे देवता पर भी चढ़ाया जाता है।
    - ग्रामीण परिवेश में शाम के समय जंगल से लौटते हुए गायों के खुरों से उठती धूल गोधूलि की पवित्रता को प्रमाणित करती है।
    - सूर्यास्त के उपरांत बैलगाड़ी के निकल जाने के बाद उसके पीछे उड़ने वाली धूल रुई के बादल के समान दिखाई देती है या ऐरावत हाथी के नक्षत्र-पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है।
    - चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि की कल्पना उड़ती चलती है, वह शिशु के मुँह पर, धूल की पंखुड़ियों के समान सौंदर्य बनकर छा जाती है।
    - गाँव के किसानों के हाथ-पैर तथा मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता को प्रकट करती है।

     
    Question 16
    CBSEENHN9000416

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    ‘हीरा वही घन चोट न टूटे' -का सदंर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    इस पंक्ति में लेखक ने हीरे और काँच में तुलना करते हुए कहा है कि सच्चा हीरा वही होता है जो हथौड़े की चोट पड़ने पर भी नहीं टूटता। काँच और हीरे में यही अन्तर है। धूल भरे हीरे में ऊपरी धूल को न देखकर भीतरी चमक को निहारना चाहिए जो अटूट होती है। यह समरता का दृढ़ प्रकाश प्रस्तुत करती है। काँच की चमक को देखकर मोहित हो जाना मूर्खता है। हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। हीरा अटूटता का स्पष्ट प्रमाण है तो काँच क्षणिकता का। हीरा एक-न-एक दिन अपनी अमरता का बोध कराकर काँच की नश्वरता को प्रमाणित करता है। लेखक के अनुसार धूल में लिपटा किसान आज भी अभिजात वर्ग की उपेक्षा का पात्र है। किसान उसकी उपेक्षा सहनकर मिट्‌टी से प्यार करता है और अपने परिश्रम से अन्न पैदा करता है। यह उसके परिश्रमी होने का प्रमाण है। वह ऐसा हीरा है जो धूल भरा है। हीरा अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता। इसी प्रकार से भारतीय किसान भी कठोर परिश्रम से नहीं घबराता है इसलिए वह अटूट है।
    Question 17
    CBSEENHN9000417

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाएँ अलग है। धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य है तो धूलि उसकी कविता है। अर्थात् हमारा शरीर जिस धूल और मिट्‌टी से बना है। वही धूल उसकी वास्तविकता प्रकट करती है और इसी धूल शब्द को कवियों ने धूलि के रूप में अभिव्यंजित किया है। धूली छायावादी दर्शन है। इसकी वास्तविकता छायावादी कविता के समान संदिग्ध है। धूरि लोक संस्कृति का नवीन जागरण हैं अर्थात् भारतीय संस्कृति में कवियों ने धूरि शब्द का प्रयोग करके अपनी प्राचीन सभ्यता को प्रकट करना चाहा है। इसी प्रकार गौ-गोदालों के पद संचालन से उड़ने वाली मिट्‌टी को गोधूलि कहा गया है। इन सबका रंग चाहे एक ही हो किन्तु रूप में भिन्‍नता है. मिट्‌टी चाहे काली, पीली. लाल तरह-तरह की होती है लेकिन धूल कहते ही शरत् के धुले-उजले बादलों का स्मरण हो जाता है।

    Sponsor Area

    Question 18
    CBSEENHN9000418

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    ‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    ‘धूल’ पाठ में लेखक ने धूल की महिमा, माहात्म्य व उपलब्धता व उपयोगिता का वर्णन किया है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने मजदूर किसानों के महत्त्व को स्पष्ट किया है। उनका मानना है कि धूल से सना व्यक्ति घृणा अथवा उपेक्षा का पात्र नहीं होता बल्कि धूल तो परिश्रमी व्यक्ति का परिधान है। धूल से सना शिशु ‘धूलि भरा हीरा’ कहलाता है। आधुनिक सभ्यता में पले लोग धूले से घृणा करते हैं। वे यह नहीं जानते कि धूल अथवा मिट्‌टी ही जीवन का सार है। मिट्‌टी में ही सब पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इसलिए सती मिट्‌टी का सिर से. सिपाही आँखों से तथा आम नागरिक स्नेह से स्पर्श करता है। अत: लेखक ने देशप्रेम और संस्कृति की प्रतीक धूल को विभिन्न सूक्तियों, लोकोक्तियों तथा उदाहरणों के माध्यम से प्रतिपादित किया है।
    Question 19
    CBSEENHN9000419

    (ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
    कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?

    Solution
    लेखक का विचार है कि गोधूलि पर अनेक कवियों ने कविता लिखी है। परन्तु वे उस धूलि को सजीवता से चित्रित नहीं कर पाए हैं जो गाँवों में संध्या के समय गायें चराकर लौटते समय ग्वालों और गायों के पैर से उठकर सारे वातावरण में फैल जाती है। अधिकांश कवि शहर के रहने वाले हैं और शहरों में धूल- धक्कड़ तो होता है, परन्तु गाँव की गोधूलि नहीं होती। इसलिए वे गाँव की गोधूलि का सजीव वर्णन अपनी कविताओं में नहीं कर पाए। हिन्दी कविता की सबसे सुंदर पंक्ति है ‘जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाएगा’ परंतु फिर भी विडंबना यह है कि कवियों की लेखनी पर नगरीय सभ्यता विस्तार के कारण विराम-चिह्‌न लग गया है।
    Question 20
    CBSEENHN9000420

    (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
    फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता का निखार देती है

    Solution
    इस पंक्ति क शख्स से लेखक यह कहना चाहता है कि शिशु धूल-मिट्‌टी से सना हुआ ही अच्छा लगता है। धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। इस प्रकार धूल से सने शिशु को’ धूलि भरे हीरे कहा जाता है। जैसे फूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कण उसकी शोभा को बढ़ा देते है वैसे ही शिशु के मुँह पर पड़ी हुई धूल उसके सहज स्वरूप को और भी निखार देती है। उस समय बड़ी बड़ी खोजों से उपलब्ध किसी भी कृत्रिम प्रसाधन सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। अर्थात् मिट्‌टी यदि विविध आकार देती है तो धूल मुख की कांति शोभायमान करती हैं जीवन कर्मशील हो उठता है इसलिए धूल को व्यर्थ नहीं मानना चाहिए!
    Question 21
    CBSEENHN9000421

    (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
    ‘धन्य- धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’ -लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?

    Solution
    इस पंक्ति द्वारा लेखक यह कहना चाहता है कि धूल से सने बच्चे को गोद में उठाने वाला व्यक्ति धन्य है जो अपने शरीर से धूल को स्पर्श करते है। चाहे यह धूल उन बच्चों के माध्यम से उन्हें स्पर्श करती हो जिन्हें वह गोद में उठाए रहते हो। लेखक ने धूल की उपयोगिता और महिमा का वर्णन करते हुए ग्रामीण वातावरण में पले-बड़े बच्चों को धन्य बतलाया है क्योकि जिनका बचपन गाँव के गलियारों की धूल में बीता है, वे अवश्य ही धूल में खेले होंगे और उनके करता-पिता भी धन्य है जो धूल धूसरित अपने शिशु को अंग से लिपटा लेते है। और वह पवित्र धूल उनके शरीर को पवित्र कर देती है। इसलिए कवि ने उन्हे धूल भरे हीरे कहकर सम्बोधित किया है।
    Question 22
    CBSEENHN9000422

    (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
    मिट्टी और धूल में अन्तर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में,  देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।

    Solution
    शरीर अगर मिट्‌टी है तो धूल उसका सारतत्व है। मिट्‌टी शरीर को विभिन्न आकार देती है तो धूल जीवन की स्वाभाविता को बनाए रखती है। जिस प्रकार शब्द में रस निहित होता है, देह में प्राण और चन्द्रमा में चाँदनी का वास होता है उन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार धूल और मिट्‌टी दोनों एक ही हैं। मिट्‌टी के रंग-रूप की पहचान धूली को होती है। धूल जीवन की सरलता व भोलेपन को बनाए रखती हैं। इससे हम अपनी सभ्यता से जुड़े रहते है।
    Question 23
    CBSEENHN9000423

    (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
    हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।

    Solution
    लेखक का मानना है कि हमारी देश भक्ति का स्तर इतना गिर गया है कि हम अपने देश की मिट्‌टी को आदर देने के स्थान पर उसका तिरस्कार करते है। हम अपने देश को छोड़कर विदेशों की ओर भाग रहे है। लेखक का यह संदेश है कि यदि हमारे भीतर अपने देश के प्रति ज़रा सा भी प्रेम है तो हम उसकी धूल को चाहे माथे से न लगाएँ परन्तु कम से कम उसका स्पर्श करने से पीछे न हटे। अपने देश की धूल का सम्मान करें। उससे घृणा न करे तथा उसे तुच्छ न समझकर उसके महत्त्व को समझे।
    Question 24
    CBSEENHN9000424

    (ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
    वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।

    Solution

    लेखक ने काँच और हीरे में अंतर बताते हुए कहा है कि हीरा अनमोल होता है। उसके भीतर की चमक चाहे हमारी आँखों के सामने से ओझल रहे किन्तु वह अमर होता है। वह कभी गहरी चोट लगने पर भी टूटता नहीं है और कभी पलटकर वार नहीं करता। वास्तविक हीरे की परख हथौड़े की चोट पर खरी उतरती है। हीरे को पहचानने के लिए पारखी दृष्टि अनिवार्य है नहीं तो काँच की चमक मन मोह लेती है। हीरे को देखकर उसके प्रेमी उसे साफ-सुथरा खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंथ पैदा करता हुआ देखना चाहते है। उसके भीतरी सुन्दरता का भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। काँच की चमक नश्वरता का प्रतीक है। उसके पीछे दौड़ना मूर्खता का पर्याय है।

     
    Question 25
    CBSEENHN9000425

    निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए-
    उदाहरण: विज्ञापित- वि (उपसर्ग) ज्ञापित
    संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्द्वद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।


    Solution

    संसर्ग - सम् + सर्ग
    उपमान - उप + मान
    संस्कृति - सम् + कृति
    दुर्लभ – दुर + लाभ
    निर्द्वद्व - निर + द्वंद्व
    प्रवास - प्र + वास
    दुर्भाग्य - दुर + भाग्य
    अभिजात - अभि + जात
    संचालन - सम् + चालन

     
    Question 26
    CBSEENHN9000426

    लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं। धूल से सबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

    Solution

    (i) धूल में मिलना-मोहन ने परिश्रम से चित्रकारी की थी लेकिन मीता ने उस पर पानी डालकर उसे धूल में मिला दिया।
    (ii) धूल से खेलना-हम बचपन से ही धूल में खेल-खेलकर बड़े हुए हैं।
    (iii) धूल चाटना-पुलिस की मार खाकर अपराधी धूल चाटने लगा।
    (iv) धूल फाँकना-अखिल इतनी डिग्रियाँ होते हुए काम न मिलने कारण इधर-उधर धूल फाँकता फिर रहा है।
    (v) धूल उड़ना-चुनाव हार जाने के कारण उसके घर पर धूल उड़ने लगी।

    Question 27
    CBSEENHN9000427

    गोधूलि गाँव में ही क्यों होती है?

    Solution
    गोधूलि गाँव की संपत्ति है क्योंकि गाँव के कच्चे रास्तों पर संध्या के समय जब ग्वाले अपनी गायों को चराकर लौटते हैं तो अपने तथा गायों के पैरों से उड़ने वाली धूल अस्त होते हुए सूर्य की सुनहली किरणों में रंगकर स्वर्णमयी हो जाती है। इसी धूल को गोधूलि कहते है। इसके विपरीत शहर की पक्की सड़कों पर यह दृश्य दिखाई नहीं देता। इसलिए गोधूलि गाँव की ही संपत्ति है।
    Question 28
    CBSEENHN9000428

    लेखक ने धूल की महिमा का बखान करने के लिए कौन-कौन से रूपक बाँधे है?

    Solution

    लेखक ने धूल की महिमा का बखान करने के लिए निम्नलिखित रूपक बाँधे हैं:
    - अमराइयों के पीछे छिपे सूर्य की किरणों मे आलोकित धूलि सोने को मिट्‌टी कर देती है।
    - सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी के निकल जाने के बाद जो रूई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र-पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है।
    - चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि की कल्पना की भांति उड़ती चलती है।
    - जो शिशु के मुँह पर फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौन्दर्य बनकर छा जाती हैं

    Question 29
    CBSEENHN9000429

    लेखक ने हीरे से भी कीमती किसे कहा है और क्यों?

    Solution
    लेखक ने हीरे से भी कीमती ‘धूल भरे हीरे ‘ को कहा है। धूल भरे हीरे का अर्थ है- गाँव की मिट्‌टी में खेल कूदकर पला हुआ ग्रामीण बालक। लेखक ने धूल भरे हीरे को मूल्यवान इसलिए बताया है क्योंकि ग्रामीण बालक गाँव की धूल-मिट्‌टी में पलकर बड़े होते हैं। वे उसी में जीवन के सब सुख लेते हैं। अत: धूल उनका श्रृंगार बन जाती है।

    Mock Test Series

    Sponsor Area

    Sponsor Area

    NCERT Book Store

    NCERT Sample Papers

    Entrance Exams Preparation

    4