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धूल - रामविलास शर्मा
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अन्गिनत सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है:
- ग्रामीण परिवेश में पले बड़े बच्चे धूल से सने दिखाई देते हैं। यह धूल उनके मुख पर उनकी सहज पवित्रता को निखार देती है।
- गाँव के अखाड़ों में भी धूल का प्रभाव दिखाई देता है यहाँ की मिट्टी तेल और मट्ठे से सिझाई हुई होती है जिसे देवता पर भी चढ़ाया जाता है।
- ग्रामीण परिवेश में शाम के समय जंगल से लौटते हुए गायों के खुरों से उठती धूल गोधूलि की पवित्रता को प्रमाणित करती है।
- सूर्यास्त के उपरांत बैलगाड़ी के निकल जाने के बाद उसके पीछे उड़ने वाली धूल रुई के बादल के समान दिखाई देती है या ऐरावत हाथी के नक्षत्र-पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है।
- चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि की कल्पना उड़ती चलती है, वह शिशु के मुँह पर, धूल की पंखुड़ियों के समान सौंदर्य बनकर छा जाती है।
- गाँव के किसानों के हाथ-पैर तथा मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता को प्रकट करती है।
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