Question
निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे के उत्तर दीजिए-
हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है, इसलिए शिशु भोलानाथ से कहती है, धूल में मत खेलो। भोलानाथ के संसर्ग से उसके नकली सलमे-सितारे धुँधले पड़ जाएँगे। जिसने लिखा था- ‘‘धन्य- धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की,’’ उसने भी मानो धूल भरे हीरों का महत्त्व कम करने में कुछ उठा न रखा था।’ धन्य-धन्य ‘ में ही उसने बड़प्पन को विज्ञापित किया, फिर ‘मैले’ शब्द से अपनी हीनभावना भी व्यंजित कर दी, अंत में ‘ऐसे लरिकान’ कहकर उसने भेद-बुद्धि का परिचय भी दे दिया। वह हीरों का प्रेमी है, धूलि भरे हीरों का नहीं।
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) हमारी सभ्यता भूल के संसर्ग से क्यों बचना चाहती है।
(ग) इसमें आज की सभ्यता पर क्या व्यंग्य है?
(घ) अपने बड़प्पन को विज्ञापित करने से क्या तात्पर्य है?
Solution
(क) पाठ-धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
(ख) हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान को छूने की इच्छा रखती है।
(ग) इस गद्यांश में आज की सभ्यता पर कटु व्यंग्य है। आज का सभ्य, सुशिक्षित वर्ग धूल-मिट्टी से घृणा करता है। वे बनावट- श्रृंगार और नकली साज-सज्जा को महत्त्व देते है। वे ऊपरी चमक-दमक को ही सौन्दर्य मानते है।
(घ) अपनी महानता को संसार में दिखाने के लिए समाज के सभ्य लोग भूल से भरे शिशु को अपनी गोद में उठा लेते है, इस प्रकार जब वे मैले-कुचैले बच्चों को गोद में उठाते हैं तो लोग उनकी प्रशंसा करते है।
(ख) हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान को छूने की इच्छा रखती है।
(ग) इस गद्यांश में आज की सभ्यता पर कटु व्यंग्य है। आज का सभ्य, सुशिक्षित वर्ग धूल-मिट्टी से घृणा करता है। वे बनावट- श्रृंगार और नकली साज-सज्जा को महत्त्व देते है। वे ऊपरी चमक-दमक को ही सौन्दर्य मानते है।
(घ) अपनी महानता को संसार में दिखाने के लिए समाज के सभ्य लोग भूल से भरे शिशु को अपनी गोद में उठा लेते है, इस प्रकार जब वे मैले-कुचैले बच्चों को गोद में उठाते हैं तो लोग उनकी प्रशंसा करते है।