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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
यह सितंबर, 1943 की बात है। मैंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। जब तक मैं मुंबई पहुंचा तब तक बे. वे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा न हो पाता। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने मुझे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। मैंने तय किया कि मैं लौटूंगा नहीं, बंबई में ही अध्ययन करूंगा। मुझे शहर पसंद आया, वातावरण पसंद आया, गैलरियाँ और शहरों में अपने पहले मित्र पसंद आए। और भी अच्छी बात यह हुई कि मुझे एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी मिल गई। यह स्टूडियो फीरोजशाह मेहता रोड पर था। एक बार फिर कड़ी मेहनत का दौर चला। करीब साल-भर में ही स्टूडियो के मालिक श्री जलील और मैनेजर श्री हुसैन ने मुझे मुख्य डिजाइनर बना दिया। सुबह दस बजे से शाम छह बजे तक मैं दफ्तर में काम करता। फिर मैं अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता।
1. लेखक कह, किसमें दाखिला लेने से वंचित रह गया?
2. लेखक ने क्या निश्चय किया?
3. बंबई में उसे कहाँ ठिकाना मिला?
1. लेखक को 1943 ई. में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ दि? में दाखिले के लिए छात्रवृत्ति मंजूर की गई। उस समय लेखक अमरावती के एक गवर्नमेंट नार्मल स्कूल में अध्यापक था। वह वहाँ से त्यागपत्र देकर जब बंबई (मुंबई) पहुँचा तब तक वहाँ दाखिला बंद हो चुका था। यदि किसी प्रकार दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत कम रह जाता। इस प्रकार लेखक वहाँ दाखिले से वंचित रह गया।
2. लेखक ने बंबई में रहकर ही संघर्ष करने का निश्चय किया। उसे बंबई शहर पसंद आ गया था, वहाँ का वातावरण, वहाँ की गैलरियाँ और मित्र पसंद आए। अत: उसने अकोला में प्रस्तावित ड्राइंग अध्यापक की नौकरी करना अस्वीकार करके बंबई में ही रहना तय किया।
3. बंबई अब मुंबई में लेखक को एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी भी मिल गई। यह सृष्टियों फीरोजशाह मेहता रोड पर था। लेखक का संघर्ष काल प्रारंभ हो गया। उसकी मेहनत को देखकर मालिक श्री जलील और मैनेजर श्री हुसैन ने उन्हें मुख्य डिजाइनर बना दिया। अब वह दिनभर दफ्तर में काम करता और रात को अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता था। इस प्रकार उसे बंबई में ठिकाना मिल गया।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
उन्होंने मुझे ऑर्ट डिपार्टमेंट में कमरा दे दिया। मैं फर्श पर सोता। वे मुझे रात ग्यारह-बारह बजे तक गलियों के चित्र या और तरह-तरह के स्केच बनाते देखते। कभी-कभी वे कहते कि तुम बहुत देर तक काम करते रह गए, अब सो जाओ। कुछ महीने बाद उन्होंने मुझे एक बहुत शानदार ठिकाना देने की पेशकश की-उनके चचेरे भाई के छठी मंजिल के फ्लैट का एक कमरा। उसमें दो पलंग पड़े थे। उनकी यौवना यह थी कि अगर मैं उनके यहां काम करता रहा तो मुझे कला विभाग का प्रमुख बना दिया जाए। मैं बेकन सर्कल का सात रास्ते वाला घर और उसका गलीज वातावरण छोड्कर नए ठिकाने पर आ गया और पूरी तरह अपने काम में डूब गया। इसका परिणाम यह हुआ कि चार बरस में, 1948 में, बॉम्बे ऑर्ट्स सोसाइटी का स्वर्णपदक मुझे मिला। इस सम्मान को पाने वाला मैं सबसे कम आयु का कलाकार था। दो बरस बाद मुझे फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिल गई।
1. लेखक को क्या समस्या आई और उसका क्या हल निकला?
2. बाद में लेखक को कहाँ जगह मिली?
3. 1948 में क्या हुआ?
1. पहले लेखक एक टैक्सी ड्राइवर के ठिकाने पर सोता था, पर वहाँ एक पुलिस केस हो जाने के कारण रहना कठिन हो गया। लेखक के मालिक ने उन्हें आर्ट डिपार्टमेंट में एक कमरा दे दिया। वह फर्श पर सोने लगा। इस प्रकार उसके सोने और रहने की समस्या का हल निकल आया।
2. बाद में मालिक ने लेखक के कठिन परिश्रम से प्रभावित होकर उसे एक शानदार ठिकाना देने की पेशकश की। वे उसे कला विभाग का प्रमुख बना देना चाहते थे।
तब लेखक जेकब सर्कल का सात रास्ते वाला घर और उसका गलीज वातावरण छोडकर नए ठिकाने पर आ गया और पूरी तरह से अपने काम में डूब गया।
3. 1948 में लेखक को बॉम्बे आर्ट्स सोसाइटी का स्वर्णपदक मिला। इस सम्मान को पाने वाला वह सबसे कम आयु का कलाकार था। इसके दो वर्ष बाद उसे फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति भी मिल गई।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे। पहले तो कल्याण वाले घर में मेरे पास रहते मेरी मां का देहांत हो गया। पिता जी मेरे पास ही थे। वे मंडला लौट गए। मई 1948 में वे भी नहीं रहे। विभाजन की त्रासदी के बावजूद भारत स्वतंत्र था। उत्साह था, उदासी भी थी। जीवन पर अचानक जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। हम युवा थे। मैं पच्चीस बरस का था; लेखकों, कवियों, चित्रकारों की संगत थी। हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं और सभी अपने-अपने क्षेत्रों में, अपने माध्यम में सामर्थ्य भर-बढ़िया काम करने में जुट गए। देश का विभावन, महात्मा गांधी की हत्या क्रुर घटनाएं थीं। व्यक्तिगत स्तर पर मेरे माता-पिता की मृत्यु भी ऐसी ही क्रुर घटना थी। हमें इन क्रुर अनुभवों को आत्मसात् करना था। हम उससे उबरकर काम में जुट गए।
1. लेखक के लिए कौन-सा काल कठिनाई भरा था और क्यों?
2. लेखक किन-किनकी संगत में था?
3. लेखक को किस परिस्थिति को आत्मसात् करना था?
1. लेखक के लिए 1947-48 का काल महत्वपूर्ण होते हुए भी कठिनाइयों से भरा काल था। पहले तो उसकी माँ की मृत्यु हुई। तब तक पिताजी उसके पास थे। वे मंडला लौट गए। 1948 में उनकी भी मृत्यु हो गई। उस समय लेखक केवल 25 वर्ष का था। उस पर अचानक जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था।
2. उस समय लेखक कवियों, चित्रकारों, लेखकों आदि कलाकारों कीर संगत में था। तब उन्हें लगता था कि वे भारी से भारी काम कर सकते हैं, अत: वे सभी अपने-अपने क्षेत्रों में बढ़िया से बढिया काम करने में जुट गए।
3. 1947 में देश का विभाजन हुआ। 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या हो गई। ये सभी घटनाएँ अत्यंत क्रुर थीं। लेखक के माता-माता की मृत्यु भी क्रुर घटनाएँ थीं। लेखक को इन सभी क्रुर अनुभवों को आत्मसात् करना था। वह परिस्थिति के अनुसार काम करने में जुट गया।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
श्रीनगर की इसी यात्रा में मेरी भेंट प्रख्यात फ्रेच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसौं से हुई। मेरे चित्र देखने के बाद उन्होंने जो टिप्पणी की वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा “तुम प्रतिभाशाली हो, लेकिन प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों को लेकर मैं संदेहशील हूं। तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं है। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि चित्र इमारत की ही तरह बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है। मैं कहूंगा कि तुम सेजाँ का काम ध्यान से देखो।” इन टिप्पणियों का मुझ पर गहरा प्रभाव रहा। बंबई लौटकर मैंने फ्रेंच सीखने के लिए अलयांस फ्रेंच में दाखिला से लिया। फ्रांसे पेटिंग में मेरी खासी रुचि थी, लेकिन मैं समझना चाहता था कि चित्र में रचना या बनावट वास्तव में क्या होगी।
1. श्रीनगर में लेखक की भेट किससे हुई? इसका उनके लिए क्या महत्व था?
2. फ्रेंच फोटोग्राफर ने क्या टिप्पणी की?
3. इस टिप्पणी का लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
1. श्रीनगर में लेखक की भेंट प्रसिद्ध फोटोग्राफर हेनरी कातिए ब्रेसाँ से हुई। उन्होंने लेखक के बनाए चित्र देखे और उन पर टिप्पणी की। यह टिप्पणी लेखक के लिए बहुत महत्वपूर्ण रही।
2. फ्रेंच फोटोग्राफर ने लेखक के चित्र देखकर यह टिप्पणी की कि तुम प्रतिभाशाली तो हो, पर मैं युवा चित्रकारों को लेकर संदेहशील हूँ। तुम्हारे चित्रों में रंग और भावना तो है पर उनमें रचना नहीं है। तुम्हें इमारत का चित्र बनाते समय उसके विभिन्न अंगों की जानकारी होनी चाहिए। अभी तुम्हें फ्रेंच चित्रकार सेजाँ का काम देखना चाहिए, इससे तुम्हारा ज्ञान बढ़ेगा।
3. इस टिप्पणी का लेखक पर गहरा प्रभाव पड़ा। उसने बंबई लौटकर फ्रेंच सीखने की व्यवस्था की अब फ्रेंच पेटिग में उसकी काफी रुचि हो गई थी। वह चित्र में रचना या बनावट के बारे में ज्यादा जानना चाहता था।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मैं अपने कुटुंब के युवा लोगों से कहता रहता हूं कि तुम्हें सब कुछ मिल सकता है-बस, तुम्हें मेहनत करनी होगी। चित्रकला व्यवसाय नहीं, अंतरात्मा की पुकार है। इसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। केवल बहरा जाफरी को कार्य करने की ऐसी लगन मिली। वह पूरे समर्पण से दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं। कल मैंने उन्हें फोन किया-यह जानने के लिए कि वह दमोह में क्या कर रही हैं। उन्हें बड़ी खुशी हुई कि मुझे सूर्यप्रकाश (उस ग्रामीण स्त्री का पति, जो अपने पति का नाम नहीं ले रही थी) का किस्सा याद है। मैंने धृष्टता से उन्हें बताया कि ‘बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख।’ मेरे मन में शायद युवा मित्रों को यह संदेश देने की कामना है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ ध रे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। जरा देखिए, अच्छे-खासे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं कर रहे, जबकि उनमें तमाम संभावनाएं हैं। और यहाँ हम बेचैनी से भरे, काम किए जाते हैं।
1. लेखक युवा लोगों से क्या कहना चाहता है?
2. लेखक को मनचाही लगन किसमें मिली?
3. लेखक के मन में युवा मित्रों को क्या सदेश देने की कामना है?
1. लेखक युवा लोगों से यह कहना चाहता है कि मेहनत करने से उन्हें सब कुछ मिल सकता है। चित्रकला को व्यवसाय न मानकर अंतरात्मा की पुकार मानो। इसके लिए अपना सर्वस्व देना होगा तभी ठोस परिणाम मिल सकते हैं।
2. लेखक को मनचाही लगन केवल जहरा जाफरी में मिली। उसमें कार्य करने की लगन थी। वह पूरे समर्पण भाव से दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती थी।
3. लेखक के मन में अपने युवा मित्रों को यह संदेश देने की कामना है कि कुछ घटने की प्रतीक्षा मत करो। हाथ पर हाथ रखे मत बैठे रहो। खुद कुछ करो। अच्छे संपन्न घरों के परिवारों के बच्चों को भी काम करना चाहिए, जो कि वे नहीं कर रहे हैं। उनमें काफी संभावनाएँ छिपी हैं।
रजा ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी की पेशकश क्यों नहीं स्वीकार की?
लेखक रजा को पहले मध्यप्रदेश सरकार ने बंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला लेने के लिए छात्रवृत्ति दी’ थी। लेखक जब बंबई पहुँचा तब तक जे. जे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। अत: छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। तब मध्यप्रदेश सरकार ने उसे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। लेखक ने इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसने बंबई में रहकर अध्ययन करने का निश्चय कर लिया था। उसे यह शहर पसंद आ गया था। उसने वहाँ से न लौटने का निश्चय किया। अब वह अकोला में नौकरी करने का इच्छुक नहीं था।
बंबई में रहकर कला के अध्ययन के लिए रजा ने क्या-क्या संघर्ष किए?
बंबई में रहकर कला के अध्ययन के लिए रजा को बहुत संघर्ष करना पड़ा। वह वहाँ दिन भर ऑर्ट डिजाइनर की नौकरी करता था और सायं छह बजे के बाद अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता था। वहाँ उसे रहने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। कई स्थान बदलने पड़े। उसने बड़े परिश्रमपूर्वक अध्ययन किया और काम में पूरी तरह डूब गया। उसे बॉम्बे दिसे सोसाइटी का स्वर्ण पदक भी मिला। लेखक का काम निरंतर निखरता चला गया। लोग उसके चित्र खरीदने लगे। अब उसके लिए नौकरी छोड्कर केवल अध्ययन में रू पाना संभव हो सका। 1947 में उसे जे. जे. स्कूल ऑफ ऑर्ट में नियमित छात्र के रूप में प्रवेश मिल ही गया। अब वह अपना खर्चा उठा सकने में समर्थ हो चुका था।
1947 और 1948 में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। 1947 में उसे जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला मिल गया। 1948 में उसके पिताजी का देहांत हो गया। इससे पहले माँ का देहांत हो चुका था। 1947 में विभाजन की त्रासदी भी सामने थी। उत्साह और उदासी का मिला-जुला वातावरण था। लेखक के ऊपर अचानक जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था। तब लेखक केवल 25 वर्ष का था। 1948 में वह श्रीनगर में फँस गया था।
रजा के पसंदीदा पफ्रेंचकलाकार कौन थे?
-रजा के पसंदीदा फ्रेंच कलाकार ये थे -
- सेजाँ - मातीस
- वॉन गॉग - शागाल
- गोगाँ - ब्राँक
- पिकासो
(क) किसने, किस संदर्भ में कही?
(ख) रजा पर इसक। क्य प्रभाव पडा?
(क) यह बात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए बेसाँ ने लेखक से कही। उन्होंने रजा के चित्र देखकर यह टिप्पणी की थी।
(ख) रजा पर इसका गहरा अनुकूल प्रभाव पड़ा। उसने बंबई लौटकर फ्रेंच सीखने के लिए अलायांस फ्रांसे में दाखिला ले लिया (टिप्पणी के समय वह श्रीनगर में था।)
रजा को जलील साहब जँसे लोगों का सहारा न मिला होता तो क्या तब भी वे एक जाने-माने चित्रकार होते? तर्क दीजिए।
यदि रजा को जलील साहब जैसे लोगों का सहारा न मिला होता तो भी वे एक जाने माने चित्रकार बनते ही, क्योंकि यह कला छिप नहीं सकती। हाँ, देर अवश्य लग सकती थी। जलील साहब के स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति उन्हें सहारा दे ही देता। प्रतिभाशाली कलाकार चमककर ही रहता है। वह विपरीत परिस्थितियों में ज्यादा जोर से चमकता है।
चित्रकला वास्तव में व्यवसाय नहीं है। यह तो मन के आंतरिक भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
वर्तमान समय में यह कला भी व्यवसाय का रूप ले चुकी है।
कलाकार भी व्यावसायिकता के शिकार हो गए है। अब उनकी कला में दम दिखाई नहीं देता। यही कारण है कि कला में अश्लीलता का समावेश होता चला जा रहा है।
चित्रकला का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है, बशर्तें कलाकार अपने दायित्व को समझकर कलाकृतियाँ बनाएँ।
जब हम परीक्षा की घड़ी में होते हैं और हमें किसी कसौटी पर खरा उतरना होता है तब हमें लगता है कि हम पहाड़ भी हिला सकते हैं अर्थात् असंभव कार्य को भी संभव बना सकते हैं। यह विचार आत्मविश्वास के क्षणों में आता है।
राजा रवि वर्मा, ममकबूलफिदा हुसैन, अमृता शेरगिल के प्रसिद्ध चित्रों का एक अलबम बनाइए। सहायता के लिए इंटरनेट या किसी आर्ट गैलरी से संपर्क करें।
विद्यार्थी एलबम बनाने का कार्य करें तथा सहायता के लिए ललित कला अकादमी के वेब साइट को देखें।
(क) जब तक मैं प्लेटफॉर्म पर पहुंची तब तक गाड़ी जा चुकी थी।
(ख) जब तक डॉक्टर हवेली पहुँचता तब तक सेठ जी की मृत्यु हो चुकी थी।
(ग) जब तक रोहित दरवाजा बंद करता तब तक उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे।
(घ) जब तक रुचि केनवास हटाती तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी।
(क) मेरे प्लेटफॉर्म पर पहुँचने से पहले ही गाड़ी जा चुकी थी।
(ख) डॉक्टर के हवेली में पहुँचने से पहले ही सेठजी की मृत्यु हो चुकी थी।
(ग) रोहित के दरवाजा बंद करने से पहले ही उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे।
(घ) रुचि के कैनवास हटाने से पहले बारिश शुरू हो चुकी थी।
हाल, काफी, बाल
1. हाल - अरे तुमने क्या हाल बना रखा है।
हॉल - हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
2. काफी - सभा में काफी लोग आए थे।
ककॉफी- तुमने बड़ी अच्छी कॉफी बनाई है।
3. बाल - उसके बाल काले हैं।
बॉल - क्रिकेट की बॉल इधर लाओ।
भगवद्गीता में क्या कहा गया है? लेखक बचपन को क्या मानता है? वह ऐसा क्यों सोचता है?
भगवद्गीता कहती है,’ जीवन में जो कुछ भी है, “तनाव के कारण है।” बचपन जीवन का पहला चरण, एक जागृति है। लेकिन मेरे जीवन का बंबई वाला दौर भी जागृति का नचरणही था। कई निजी मसले थे, जिन्हें सुलझाना था। मुझे आजीविका कमानी थी। मैं कहूँगा कि पैसा कमाना महत्वपूर्ण होता है, वैसे अंतत: वह महत्वपूर्ण नहीं ही होता। उत्तरदायित्व होते हैं, किराया देना होता है, फीस देनी होती है, अध्ययन करना होता है, काम करना होता है।
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लेखक पढ़ाई में कैसा था? उसे नौकरी की आवश्यकता क्यों थीं?
अब उसे नौकरी ढूँढ़नी थी। वह गोंदिया में ड्राइंग का अध्यापक बन गया। महीने- भर में ही उसे बंबई में ‘जे. जे. स्कूल ऑफ ऑर्ट’ में अध्ययन के लिए मध्य प्रति की ओर से वजीफा मंजूर हो गया, पर वह देरी हो जाने के कारण दाखिला न ले सका।
1948 में लेखक कहां गया था? तब उसके साथ क्या घटना घटी?
1948 में लेखक श्रीनगर गया, वहाँ चित्र बनाए। ख्वाजा अहमद अब्बास भी वहीं थे। कश्मीर पर कबायली आक्रमण हुआ, तब तक उसने तय कर लिया था कि भारत में ही रहूँगा। वह श्रीनगर से आगे बारामूला तक गया। घुसपैठियों ने बारामूला को ध्वस्त कर दिया था। उसके पास कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का पत्र था, जिसमें कहा गया था कि यह एक भारतीय कलाकार हैं, इन्हें जहाँ चाहे वहाँ जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए। एक बार वह बस से बारामूला से लौट रहा था या वहाँ जा रहा था तो स्थानीय कश्मीरियों के बीच उस पैंटधारी शहराती को देखकर एक पुलिसवाले ने उसे बस से उतार लिया। वह उसके साथ चल दिया। उसने पूछा, “कहाँ से आए हो? नाम क्या है?” उसने बता दिया कि वह रजा है, बंबई से आया है। शेख साहब की चिट्ठी उसे दिखाई। उसने सलाम ठोंका और परेशानी के लिए माफी माँगता हुआ चला गया।
लेखक के बनाए चित्रों पर क्या टिप्पणी की गई थी? उसके चित्र कितने में बिके?
लेखक के बनाए चित्रों पर टिप्पणी की गई- “एस. एच. रजा नाम के छात्र के एक-दो जलरंग लुभावने हैं। उनमें संयोजन और रंगों के दक्ष प्रयोग की जबर्दस्त समझदारी दिखती है।” लेखके के बनाए दोनों चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियोज में आठ-दस घंटा रोज काम करने के बाद भी महीने- भर में उसे इतने रुपये नहीं मिल पाते थे। लेखक की वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वालर लैंगहैमर से भेंट हुई तो उन्होंने जर्मन उच्चारणवाली अंग्रेजी में कहा, “आई लफ्ड यूआर स्टॅफ, मिस्टर रत्जा” (रजा साहब, मुझे आपका काम पसंद आया)।
फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव के प्रश्नों का उत्तर लेखक ने किस प्रकार दिया?
फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव के प्रश्नों के उत्तर लेखक ने पूरे आत्मविश्वास से दिए। उन्होंने कहा- “फ्रेंच कलाकारों का चित्रण पर अधिकार है। फ्रेंच पेंटिंग मुझे अच्छी लगती हैं।” “तुम्हारे पसंदीदा कलाकार?” “सेजाँ, वॉन गाँग, गोगाँ पिकासो, मातीस, शागाल और ब्रॉक।” “पिकासो के काम के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?” लेखक ने कहा “पिकासो का हर दौर महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिकासो जीनियस हैं।” सचिव इतने खुश हुए कि लेखक को एक के बजाय दो बरस के लिए छात्रवृत्ति मिल गई। लेखक सितंबर में फ्रांस के लिए निकला और 2 अकबर, 1950 को मार्सेई पहुँचा। यूँ पेरिस में उसका जीवन प्रारंभ हुआ। बंबई में रहते एक ऊर्जा थी, काम करने की एक इच्छा थी। आत्मा को चढ़ा यह ताप लोगों को दिखाई देता था। अपने यहाँ जबर्दस्त उदारता थी। कोई काम करने का इच्छुक हो तो लोग सहायता को तैयार रहते थे।
लेखक ने खुद को क्या याद दिलाया? 1943 में उसके साथ कैसा व्यवहार हुआ था और क्यों?
लेखक ने खुद को याद दिलाया- भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। उसके पहले दो चित्र नवंबर 1943 में इसे सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। उद्घाटन में उसे आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि वह जाना-माना नाम नहीं था। अगले दिन उसने ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रदर्शनी की समीक्षा पड़ी। कला-समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने उसके चित्रों की काफी तारीफ की थी। उसका पहला वाक्य उसे आज भी याद है’ “इनमें से कई चित्र पहले भी प्रदर्शित हो चुके हैं, और नयों में कोई नई प्रतिभा नहीं दिखी। हाँ, एस.एच. रजा नाम के छात्र के एक-दो जलरंग लुभावने हैं। उनमें संयोजन और रंगों के दक्ष प्रयोग की जबरर्दस्त समझदारी दिखती है।”
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