लेखक ने खुद को क्या याद दिलाया? 1943 में उसके साथ कैसा व्यवहार हुआ था और क्यों?
लेखक ने खुद को याद दिलाया- भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। उसके पहले दो चित्र नवंबर 1943 में इसे सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। उद्घाटन में उसे आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि वह जाना-माना नाम नहीं था। अगले दिन उसने ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रदर्शनी की समीक्षा पड़ी। कला-समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने उसके चित्रों की काफी तारीफ की थी। उसका पहला वाक्य उसे आज भी याद है’ “इनमें से कई चित्र पहले भी प्रदर्शित हो चुके हैं, और नयों में कोई नई प्रतिभा नहीं दिखी। हाँ, एस.एच. रजा नाम के छात्र के एक-दो जलरंग लुभावने हैं। उनमें संयोजन और रंगों के दक्ष प्रयोग की जबरर्दस्त समझदारी दिखती है।”