निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
यह सितंबर, 1943 की बात है। मैंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। जब तक मैं मुंबई पहुंचा तब तक बे. वे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा न हो पाता। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने मुझे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। मैंने तय किया कि मैं लौटूंगा नहीं, बंबई में ही अध्ययन करूंगा। मुझे शहर पसंद आया, वातावरण पसंद आया, गैलरियाँ और शहरों में अपने पहले मित्र पसंद आए। और भी अच्छी बात यह हुई कि मुझे एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी मिल गई। यह स्टूडियो फीरोजशाह मेहता रोड पर था। एक बार फिर कड़ी मेहनत का दौर चला। करीब साल-भर में ही स्टूडियो के मालिक श्री जलील और मैनेजर श्री हुसैन ने मुझे मुख्य डिजाइनर बना दिया। सुबह दस बजे से शाम छह बजे तक मैं दफ्तर में काम करता। फिर मैं अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता।
1. लेखक कह, किसमें दाखिला लेने से वंचित रह गया?
2. लेखक ने क्या निश्चय किया?
3. बंबई में उसे कहाँ ठिकाना मिला?
1. लेखक को 1943 ई. में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ दि? में दाखिले के लिए छात्रवृत्ति मंजूर की गई। उस समय लेखक अमरावती के एक गवर्नमेंट नार्मल स्कूल में अध्यापक था। वह वहाँ से त्यागपत्र देकर जब बंबई (मुंबई) पहुँचा तब तक वहाँ दाखिला बंद हो चुका था। यदि किसी प्रकार दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत कम रह जाता। इस प्रकार लेखक वहाँ दाखिले से वंचित रह गया।
2. लेखक ने बंबई में रहकर ही संघर्ष करने का निश्चय किया। उसे बंबई शहर पसंद आ गया था, वहाँ का वातावरण, वहाँ की गैलरियाँ और मित्र पसंद आए। अत: उसने अकोला में प्रस्तावित ड्राइंग अध्यापक की नौकरी करना अस्वीकार करके बंबई में ही रहना तय किया।
3. बंबई अब मुंबई में लेखक को एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी भी मिल गई। यह सृष्टियों फीरोजशाह मेहता रोड पर था। लेखक का संघर्ष काल प्रारंभ हो गया। उसकी मेहनत को देखकर मालिक श्री जलील और मैनेजर श्री हुसैन ने उन्हें मुख्य डिजाइनर बना दिया। अब वह दिनभर दफ्तर में काम करता और रात को अध्ययन के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता था। इस प्रकार उसे बंबई में ठिकाना मिल गया।