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तुकांत शब्द -
पानी - समानी
मोरा - चकोरा
बांती - राती
धागा - सुहागा
दासा - रैदासा
मोरा - मोर राती - रात
चंद - चाँद छत्रु - छत्र
बाती - बत्ती धरै - धारण
जोति - ज्योति धोति - छुआछूत
बरै - जले तुहीं - तुम ही
गुसईया – गोसाई
रैदास के इन पदों का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
C.
बिना डरे ऊँच बनाकरSponsor Area
निम्नलिखित पद्यांश का शिल्प सौन्दर्य लिखिए ।
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन मोरा, जैसे चितवत चद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन सती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
शिल्प सौन्दर्य:
1. विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से कवि ने भक्ति के विविध रूपों में चित्रित किया है। प्रभु का कण-कण में वास है।
2. पद की भाषा ब्रज है। अवधी व राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. भाषा सरस, सहज व रोचक है।
4. पद की शैली भावात्मक व उदाहरणात्मक है।
5. पद में लयात्मकता का गुण विद्यमान है।
6. तुलनात्मक भावों द्वारा उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है।
7. शाब्दिक सौन्दर्य सर्वत्र दिखाई देता है।
निम्नलिखित पद्यांश का शिल्प सौन्दर्य लिखिए ।
ऐसा लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचह ऊच करै मेरा गोबिदुं काहू ते न डरै।।
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।।
शिल्प सौन्दर्य-
1. प्रभु की कृपालुता और भक्त वत्सलता को वाणी प्रदान की गई है।
2. प्रभु दयालु है और असहायों पर कृपा करता है। पद की भाषा ब्रज है। अवधी व राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. भाषा सरस, सरल व रोचक है।
4. भाषा में लयात्मकता है।
5. पद की शैली भावात्मक है।
6. संत कवियों के नामों का उल्लेख सराहनीय है।
7. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
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