स्पर्श भाग १ Chapter 9 अब कैसे छूटै राम नाम - रैदास
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    NCERT Solution For Class 9 About 2.html स्पर्श भाग १

    अब कैसे छूटै राम नाम - रैदास Here is the CBSE About 2.html Chapter 9 for Class 9 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 9 About 2.html अब कैसे छूटै राम नाम - रैदास Chapter 9 NCERT Solutions for Class 9 About 2.html अब कैसे छूटै राम नाम - रैदास Chapter 9 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 9 About 2.html.

    Question 1
    CBSEENHN9000669

    निम्नलिखित प्रशनो के उत्तर दीजिए-
    पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।



    Solution
    पहले पद में भगवान और भक्त की चंदन-पानी. धन-वन-मौर, चंद्र-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सोना-सुहागा आदि चीजों से तुलना की गई है। कवि ने अपनी भक्ति के माध्यम से प्रभु के नाम की लगन में रम जाने की इच्छा व्यक्त की है।
    Question 2
    CBSEENHN9000670

    निम्नलिखित प्रशनो के उत्तर दीजिए-
    दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।



    Solution
    दूसरे पद में ‘गरीब निवाजु’ ईश्वर को कहा गया है। जिस व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा होती है वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। नीच से नीच व्यक्ति का भी उद्धार हो जाता है। ऐसे लोग जो स्पर्श दोष के कारण हाथ लगने पर अपने-आपको अपवित्र मानते हैं। ऐसे दीनों पर दया करने वाले प्रभु ही है जो दुखियों के दर्द से द्रवित हो जाते हैं।
    Question 4
    CBSEENHN9000672

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    दूसरे पद में ‘गरीब निवाजु’ ईश्वर को कहा गया है। जिस व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा होती है वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। नीच से नीच व्यक्ति का भी उद्धार हो जाता है। ऐसे लोग जो स्पर्श दोष के कारण हाथ लगने पर अपने-आपको अपवित्र मानते हैं। ऐसे दीनों पर दया करने वाले प्रभु ही है जो दुखियों के दर्द से द्रवित हो जाते हैं।
    Question 5
    CBSEENHN9000673

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    इस पंक्ति का आशय है कि सांसारिक लोग नीच जाति में उत्पन्न होने वालों के प्रति स्पर्श दोष मानते हुए उन्हें अछूत मानते हैं, पर ईश्वर उन लोगों पर भी कृपा करते हैं। उनका उद्धार कर देते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में भक्त की भक्ति ही श्रेष्ठ है। उसका प्रेम ही सर्वोपरि है। इसलिए प्रभु को पतितपावन, भक्त-वत्सल, दीनानाथ कहा जाता है।
    Question 6
    CBSEENHN9000674

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा हैं?

    Solution
    रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, लाल, गोबिन्द, गुसाई, हरि, लाल आदि नामों से पुकारा है, नाम भले ही अनेक हो परन्तु दीनदयाल गरीबों का उद्धार करने वाले हैं। वे सभी पर अपना प्रेम लुटाते हैं।
    Question 7
    CBSEENHN9000675

    निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर दीजिए-
    निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए-
    मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति. तुहीं, गुसईआ।

    Solution

    मोरा - मोर राती - रात
    चंद - चाँद छत्रु - छत्र
    बाती - बत्ती धरै - धारण
    जोति - ज्योति धोति - छुआछूत
    बरै - जले तुहीं - तुम ही
    गुसईया – गोसाई

    Question 8
    CBSEENHN9000676

    नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
    जाकी अँग-अँग बास समानी

    Solution
    इस पंक्ति का भाव यह है कि भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग-गंध रहित है लेकिन ईश्वर रूपी चंदन की समीपता पाकर धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। जैसे पानी में घिसकर चंदन का रंग निखरता है उसी प्रकार भक्तों की भक्ति से प्रभु का महत्त्व बढ़ जाता है भक्त और भगवान इतने समीप आ जाते हैं कि भक्त के अंग-अंग में ईश्वर की सुगन्ध समा गई है। भक्त का रोम-रोम ईश्वर भक्ति से प्रसन्न है।
    Question 9
    CBSEENHN9000677

    नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
    जैसे चितवत चंद चकोरा

    Solution
    भक्त हमेशा भवसागर से पार कराने वाले परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पित कर देना चाहता है। हर क्षण उसी के रूप-दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर दिन-रात चाँद को निहारना चाहता है। उसी प्रकार रैदास भी प्रभु रुपी चाँद को एकटक निहारना चाहता है। इसलिए एक क्षण के लिए भी उसका ध्यान प्रभु भक्ति से नहीं हटता।
    Question 10
    CBSEENHN9000678

    नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
    जाकी जोति बरै दिन राती

    Solution
    जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है। अर्थात् कवि स्वयं को बत्ती और प्रभु को दीपक मानते हैं। जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है, ऐसे कवि दिन-रात प्रभु की भक्ति में जलते रहना चाहते हैं। भक्त ईश्वर के तेज से आलोकित हो रहा है।
    Question 11
    CBSEENHN9000679

    नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
    ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै

    Solution
    हे प्रभु! आपके अतिरिक्त भक्तों को इतना मान-सम्मान देने वाला कोई और नहीं है। अर्थात् समाज मे नीची जाति में उत्पन्न होने के कारण आदर सम्मान मिलना कठिन होता है। परन्तु ईश्वर के यहाँ जातिगत भेद भाव नहीं होता वह सबके सम्मान की लाज रखते हैं। प्रभु ही सबका कल्याण करते हैं। उनके अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो गरीबों और दीनों की खोज खबर रखता है। ईश्वर ही अछूतों को ऊँचे पद पर आसीन करते हैं।
    Question 12
    CBSEENHN9000680

    नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
    नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै

    Solution
    कवि ने ईश्वर को पतित पावन, भक्त वत्सल, दीनानाथ व उद्धारक कहा है। निम्न श्रेणी के लोगों को भी प्रभु ऊँचा कर देता है। वह अपने भक्तों पर दया करता है। तथा उनका उद्धार कर देता है। उनका गोबिन्द किसी से नहीं डरता। कवि ने प्रभु को नाम देकर भी उसके निराकार रूप की ही चर्चा की है। गरीबों के दुःख दर्द को समझने वाला वही ईश्वर है। वहीं उन्हें पीड़ाओं से मुक्ति दिलाने वाला है।
    Question 13
    CBSEENHN9000681

    रैदास के इन पदों का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।

    Solution
    रैदास ने पहले पद में विविध उदाहरणों द्वारा अपनी निराकार भक्ति प्रकट की है। वे अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं। उनका प्रभु घट-घटवासी है। वे अपने भगवान में इस प्रकार मिल गए हैं कि उनको अलग करके देखा नहीं जा सकता। कवि ने दूसरे पद में अपने आराध्य के दीन दयालु व सर्वगुण सम्पन्न रूप का गुणगान किया है। जो ऊँच-नीच का भेद भाव नहीं जानता तथा किसी भी कुल-गोत्र में उत्पन्न अपने भक्त को सहज भाव से अपना कर उसे दुनिया में सम्मान दिलाता है या उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त कर अपने चरणों में स्थान देता है। नाम देव, कबीर, सधना आदि निम्न जाति में उत्पन्न भक्तों को समाज में उच्च स्थान दिलाने तथा उनका उद्धार करने का उदाहरण देकर कवि ने अपने कथन को प्रमाणित किया है।
    Question 14
    CBSEENHN9000682

    रैदास की भक्ति दास्य भाव की है-सिद्ध कीजिए।

    Solution
    दास्य भक्ति के अंतर्गत भक्त स्वयं को लघु, तुच्छ और दास कहता है तथा प्रभु को दीन दयालु, भक्त वत्सल कहता है। वे स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। वे स्वयं को मोर जैसा तुच्छ और प्रभु को धने वन जैसा विराट मानते हैं। वे प्रभु को गरीब निवाजु: निडर व दयालु कहते हैं ये सब दास्य भक्ति के भाव हैं।
    Question 15
    CBSEENHN9000683

    रैदास को क्यों लगता है कि उनके प्रभु उन पर द्रवित हो गए हैं?

    Solution
    रैदास जाति से चमार थे। समाज उन्हें अछूत मानता था। लोग उन्हें छूने में भी पाप समझते थे। ऐसा नीच माना जाने पर भी उन पर प्रभु कृपा हुई। वे प्रसिद्ध संत बन गए। उन्हें समाज के उच्च वर्ग ने भी सम्मानित किया। इसलिए उन्हें लगा कि यह उन पर ईश्वर की कृपा है। यह प्रभु के द्रवित होने का परिणाम है।

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    Question 20
    CBSEENHN9000688

    निम्नलिखित पद्यांश का शिल्प सौन्दर्य  लिखिए 
    अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
    प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
    प्रभु जी, तुम घन बन मोरा, जैसे चितवत चद चकोरा।
    प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन सती।
    प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
    प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य:
    1. विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से कवि ने भक्ति के विविध रूपों में चित्रित किया है। प्रभु का कण-कण में वास है।
    2. पद की भाषा ब्रज है। अवधी व राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है।
    3. भाषा सरस, सहज व रोचक है।
    4. पद की शैली भावात्मक व उदाहरणात्मक है।
    5. पद में लयात्मकता का गुण विद्यमान है।
    6. तुलनात्मक भावों द्वारा उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है।
    7. शाब्दिक सौन्दर्य सर्वत्र दिखाई देता है।

    Question 26
    CBSEENHN9000694

    निम्नलिखित पद्यांश का शिल्प सौन्दर्य  लिखिए 
    ऐसा लाल तुझ बिनु कउनु करै।
    गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
    जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
    नीचह ऊच करै मेरा गोबिदुं काहू ते न डरै।।
    नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
    कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।।

    Solution

    शिल्प सौन्दर्य-
    1. प्रभु की कृपालुता और भक्त वत्सलता को वाणी प्रदान की गई है।
    2. प्रभु दयालु है और असहायों पर कृपा करता है। पद की भाषा ब्रज है। अवधी व राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है।
    3. भाषा सरस, सरल व रोचक है।
    4. भाषा में लयात्मकता है।
    5. पद की शैली भावात्मक है।
    6. संत कवियों के नामों का उल्लेख सराहनीय है।
    7. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

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