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(क) पाठ-धर्म की आड़, लेखक-गणेशशंकर विद्यार्थी।
(ख) धर्म का विषय बड़ा संवेदनशील है विभिन्न समुदायों के लोग भिन्न-भिन्न धर्मों को मानने वाले है। हर व्यक्ति का अपना धर्म होता है। धार्मिक लोगों की आस्था इतनी गहरी, दृढ़ और कट्टर होती है कि वे उसके नाम पर मरने-मिटने को तैयार हो जाते है। यहाँ तक कि धर्म का नाम लेकर अपनी बात पर अड़ जाते हैं।
(ग) विभिन्न धर्मों को मानने वाले अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के चक्कर में दंगा-फसाद शुरू कर देते है उनमें मरने-मारने की भावना होता है। यह भावना धर्म गुरूओं द्वारा भड़काई जाती है।
(घ) देश में धर्म की धूम है। हर जगह धर्म के नाम पर आस्था रखने वाले, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, जाने वाले मिल जाते हैं। चाहे वे धर्म का अर्थ न समझते हो किन्तु धर्म के नाम पर होने वाले गतिविधियों में बढ़चढ़कर भाग लेते हैं।
(क) पाठ-धर्म की आड़, लेखक-गणेशशंकर विद्यार्थी।
(ख) इस देश में गरीब आदमी की सोच इतनी विकसित नहीं है। वह परंपरा से चली आ रही प्रथाओं का पालन करने में खुश रहते हैं। यहीं रोटी के लिए सब कुछ होता है।
(ग) बुद्धि की मार का अर्थ है दिमाग की सोच। सोच-विचार कर कार्य न करना। नेता या महंत लोगों की धार्मिक भावना को भड़काकर अपना स्वार्थ सिद्धि करते है यही कूटनीति बुद्धि की मार है।
(घ) धर्म के नाम पर नेता, मठाधीश, आतंकवादी और धूर्त लोग लोगों का शोषण करते है।
(क) पाठ-धर्म की आड़, लेखक-गणेशशंकर विद्यार्थी।
(ख) अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने जैसे कामों को धर्म नहीं कहा जा सकता।
(ग) आने वाला समय उस धर्म को नहीं टिकने देगा जहाँ ईश्वर को रिश्वत देकर उसे खुश किया जाए और दिन भर बेईमानी करके दूसरों को तकलीफ पहुँचाई जाती है, तब पूजा पाठ को नहीं देखा जाएगा।
(घ) भलमनसाहत का अर्थ है-सज्जनता, शराफत, अच्छे स्वभाव वाला। भलमनसाहत की कसौटी केवल व्यक्ति का आचरण होता है। इसमें सबके कल्याण की भावना नीहित रहती है। आचरण न सुधारने पर अन्य सब बातें बेकार जाएंगी।
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सुगम - दुर्गम
धर्म - अधर्म
ईमान - बेईमानी
साधारण - असाधरण
स्वार्थ – निस्वार्थ
दुरुपयोग – सदुपयोग
नियंत्रित – अनियंत्रित
स्वाधीनता - पराधीनता
ला - लापता, लाइलाज
बिला – बिलावजह
बे - बेईमान, बेकसूर
बद - बदनसीब, बदनाम
ना - नासमझ, नादानी
खुश - खुशनसीब, खुशहाली
हर - हररोज, हरदम
गैर - गैरकानूनी, गैरहाजिरी।
लघु + त्व - लघुत्व
प्रभु + त्व - प्रभुत्व
महत् + त्व - महत्व
नारी + त्व - नारीत्व
मनुष्य + त्व - मनुष्यत्व
पड़े-लिखे, मन-माना, स्वार्थ–सिद्धि
लड़ाना-भिड़ाना, नित्य-प्रति, भली–भाँति
दिन-भर, पूजा - पाठ, देश-भर
सुख-दुःख
1. नौकरी के लिए सिफारिश ही नहीं, मेहनत भी करनी पड़ती है।
2. मुझे अभी भी पढ़ाई करनी है।
3. तुमने भी उसकी बात पर विश्वास कर लिया।
4. आज बाज़ार से फल भी लेते आना।
5. वह मुझसे अभी भी नाराज़ है।
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