भारतीय इतिहास के कुछ विषय Ii Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ भारतीय इतिहास के कुछ विषय Ii

    यात्रियों के नज़रिए Here is the CBSE ������������������ Chapter 5 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ यात्रियों के नज़रिए Chapter 5 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ यात्रियों के नज़रिए Chapter 5 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028284

    किताब-उल-हिन्द पर एक लेख लिखिए।

    Solution

    किताब-उल-हिन्द, अल-बिरूनी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। यह मौलिक रूप से अरबी भाषा में लिखा गया हैं तथा बाद में यह विश्व की कई प्रमुख भाषाओं में भी अनुवादित किया गया। 
    यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर 80 अध्यायों में विभाजित है। भाषा की दृष्टि से लेखक ने इससे सरल व स्पष्ट बनाने का प्रयास किया हैं। 
    अल-बिरूनी ने प्रत्येक अध्याय में सामान्यत: (हालाँकि हमेशा नहीं) एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया हैं। वह प्रत्येक अध्याय को एक प्रश्न से प्रारम्भ करता हैं, इसके बाद संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन हैं और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना की गई हैं। आज के कुछ विद्वानों का तर्क है कि अल-बिरूनी का गणित की और झुकाव था इसी कारण ही उसकी पुस्तक, जो लगभग एक ज्यामितीय संरचना हैं, बहुत ही स्पष्ट बन पड़ी हैं।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028285

    बर्नियर के वृतांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।

    Solution

    बर्नियर ने मुग़ल काल के नगरों का वर्णन किया हैं। उसके अनुसार सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पंद्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था । यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था।बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों का उल्लेख 'शिविर नगर' के रूप में किया हैं। शिविर नगरों का अभिप्राय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर करते थे। उनका विश्वास था की ये नगर राज दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और उसके चले जाने के बाद इन नगरों का आविर्भाव समाप्त हो जाता था। यह सामाजिक और आर्थिक रूप से राजकीय प्रश्रय पर आश्रित रहते थे।
    बर्नियर के अनुसार उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे: उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है।
    व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे।
    अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। ये राजकीय आश्रय अथवा अन्य के संरक्षण में रहते थे।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028286

    इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।

    Solution

    इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के सन्दर्भ में अनेक साक्ष्य दिए गए हैं। उसके अनुसार बाजारों में दास किसी भी अन्य वस्तु की तरह खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंटस्वरूप दिए जाते थे:

    1. जब इब्न बतूता सिंध पहुँचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंटस्वरूप ''घोड़े, ऊँट तथा दास '' खरीदे।
    2. जब वह मुल्तान पहुँचा तो उसने गवर्नर को ''किशमिश के बादाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में दिए'।
    3. इब्न बतूता बताता है कि मुहम्मद- बिन-तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक एक धर्मोपदेशक के प्रवचन से इतना प्रसन्न हुआ कि उसे ''एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास'' दे दिए।
    4. इब्न बतूता के अनुसार, पुरुष दास का प्रयोग घरेलू श्रम जैसे: बाग बगीचों की देखभाल, पशुओं की देखरेख, महिलाओं व पुरुषों को पालकी या डोली में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए होता था।
    5. दासियाँ शाही महल, अमीरों के आवास पर घरेलू कार्य, करने व संगीत गायन के लिए खरीदी जाती थीं। वह बताता हैं कि शादी में इन दासियों ने बहुत उच्च-कोटि के कार्यक्रम प्रस्तुत किए थे। सुल्तान अपने अमीरों पर नज़र रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028287

    सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?

    Solution

     बर्नियर ने सती-प्रथा विस्तृत वर्णन किया हैं। सती प्रथा के निम्नलिखित तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा:

    1. कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्य को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।
    2. सती प्रथा यूरोप की प्रथाओं से अलग थी किसी जीवित व्यक्ति को जलाने की प्रथा उसे अमानवीय प्रतीत हुई।
    3. बल - विधवाओं के प्रति भी लोगों के मन में कोई सहानुभूति नहीं दिखाई देती थी।
    4. इस प्रक्रिया में ब्राह्मण, पुजारी तथा घर की बड़ी महिलाएँ हिस्सा लेती थीं। उसे परिवार की इन महिलाओं का व्यवहार भी अजीब लगा,एक महिला होकर भी वह दूसरी महिला की पीड़ा को महसूस नहीं कर पा रही थीं।
    5. यह एक क्रूर प्रथा थीं, स्त्री की चीखे-पुकार भी किसी का दिल नहीं पिघला पा रही थीं। 

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028288

    जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।

    Solution

    अल-बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति व्यवस्था को समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया। उसने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी:

    1. घुड़सवार और शासक वर्ग,
    2. भिक्षु एवं आनुष्ठानिक पुरोहित
    3. चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक
    4. कृषक तथा शिल्पकार।

    वास्तव में वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। इसके साथ ही, उसने यह दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं। 

    जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद, अल-बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया। उसने लिखा कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुन: प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है। अल-बिरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।

    अल-बिरूनी की भारतीय समाज के बारे में समझ भारत की वर्ण-व्यवस्था पर आधारित थीं जिसका उल्लेख इस प्रकार हैं:

    1. ब्राह्मण: सबसे ऊँची जाति ब्राह्मणों की है जिनके विषय में हिंदुओं के ग्रंथ हमें बताते हैं कि वे ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न हुए थे और क्योंकि ब्रह्म, प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा नाम है और सिर शरीर का सबसे ऊपरी भाग है। इसलिए हिंदू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
    2. क्षत्रीय: क्षत्रियों का सृजन ब्रह्मा के कन्धों और हाथों से हुआ था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है।
    3. वैश्य: वैश्य जाती व्यवस्था में तीसरे स्थान पर आते हैं। वे ब्रह्मा की जंघाओं से जन्मे थे।
    4. शूद्र: शूद्रों का स्थान सबसे नीचा माना जाता हैं क्योंकि इनका जनम ब्रह्मा के चरणों से हुआ था।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028289

    क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।

    Solution

    इब्न बतूता का वृत्तांत हमे समकालीन भारतीय शहरों में रहने वाले लोगों की जीवन शैली के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता हैं उसके विवरण से पता चलता हैं कि:

    1. इब्न बतूता के अनुसार उपमहाद्वीप के शहरों में ऐसे लोग जिनके पास आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था के लिए भरपूर अवसर थे। हालाँकि कुछ शहर युद्धों अथवा अभियानों के कारण नष्ट भी हो चुके थे।  
    2. इब्न बतूता के वृत्तांत से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश शहरों में भीड़- भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
    3. इब्न बतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है। दौलताबाद (महाराष्ट्र में) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
    4. बाजार मात्र आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मंदिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी चिह्नित थे।
    5. इब्न बतूता की शहरों की समृद्धि का वर्णन करने में अधिक रुचि नहीं थी, इतिहासकारों ने उसके वृत्तांत का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि शहरों की समृद्धि का आधार गाँव की कृषि अर्थव्यवस्था थीं।
    6. शहरों में प्रवेश करने के लिए चारदीवारी में बड़े-बड़े दरवाज़े बनाए जाते थे। उदाहरण के लिए, दिल्ली (देहली) का वर्णन करते हुए उसने लिखा है: 'देल्ही विशाल क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है... शहर के चारों और बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ लगभग 20 इंच के बराबर) है; और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।..इस शहर के 28 द्वार है, जिन्हें दरवाज़ा कहा जाता है। इनमें से बदायूँ दरवाज़ा सबसे बड़ा है। मांडवी दरवाज़े के भीतर एक अनाज मंडी है।
    7. भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया, दोनों में बहुत माँग थी। इससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों, विशेष रूप से सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, ज़री तथा साटन की अत्यधिक माँग थी । इब्न बतूता हमें बताता है कि महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक मँहगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग ही पहन सकते थे।

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028290

    यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है:

    ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारीगरी के बहुत उदाहरण हैं जिनके पास औज़ारों का अभाव है और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है।
    कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में भारतीय लोग बेहतरीन बंदके और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अकसर इनके चित्रों की सुंदरता मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।
    उसके द्वारा अलिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।

    Solution

    इस उद्धरण में बर्नियर ने बंदूकें बनाना, स्वर्ण आभूषण बनाना आदि शिल्प-कार्यों का उल्लेख किया। भारतीय कारीगर इन्हे बड़ी निपुणता तथा कलात्मक ढंग से बनाते थे। यह उत्पाद इतने सुन्दर होते थे कि बर्नियर भी इन्हें देखकर हैरान रह गया था। वह कहता है कि यूरोप के कारीगर भी शायद इतनी सुन्दर वस्तुएँ बना पाते हों।

    तुलना: इस अध्याय में वर्णिंत अन्य शिल्प गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:

    1. चित्रकारी
    2. कसीदाकारी
    3. रंग-रोगन करना
    4. बढ़ईगीरी
    5. जूते बनाना
    6. कपड़े सीना
    7. रेशम, जरी और बारीक मलमल का काम 
    8. सोने के बर्तन बनाना

    ये सभी गतिविधियाँ राजकीय कारखानों में चलती थीं। बर्नियर इन कारखानों को शिल्पकारों कि कार्यशाला कहता है। ये शिल्पकार प्रतिदिन सुबह कारखाने में आते थे और पूरा दिन काम करने के बाद शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे।

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028291

    चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?

    Solution

    बर्नियर ने अपने वृत्तांत में भारतीय ग्रामीण समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है। वह ग्रामीण समाज की कुछ ऐसी स्थितियाँ प्रस्तुत करता है, जिससे यह पता चलता हैं कि भारत में ग्रामीण समाज कितना पिछड़ा हुआ है।

    1. उसके अनुसार हिंदुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में से कई केवल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत ही हैं। यहाँ की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों की आबादी भी कम है।
    2. यहाँ तक कि कृषियोग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता है। गरीब लोग अपने लोभी स्वामियों की माँगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं, वे अत्यंत निरंकुशता से हताश हो किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।
    3. बर्नियर का यह वृत्तांत एक पक्षीय है। इस बात को समझने के लिए इतिहासकार को उसके लेखन का उद्देश्य समझना होगा। जिसमें यह स्पष्ट होता है कि वह यूरोप में निजी स्वामित्व को जारी रखना चाहता है। यह भारत के कृषक व ग्रामीण समाज कि दुर्दशा के लिए भूमि स्वामित्व को जिम्मेदार ठहरता है। यह भारत में स्वामित्व निजी के स्थान पर शासकीय मानता है।
    4. इतिहासकार उसके वृत्तांत को पढ़कर सामान्य रूप से यह निष्कर्ष निकल सकता है कि भारतीय ग्राम कितने पिछड़े हुए थे। ऐसा कार्ल मार्क्स ने भी कहा है। इसके लिए जरूरी है कि इतिहासकार अन्य तुलनात्मक स्त्रोतों का अध्ययन करें। वह बर्नियर की स्थिति तथा लेखन के उद्देश्य को भी समझे।इतिहासकार ग्रामीण समाज के अन्य पक्षियों विशेषकर लोगों की जीवनशैली के बारे में भी जाने का प्रयास करें। इन बिंदुओं पर ध्यान रखकर 17 वी शताब्दी के गाँवों के बारे में इतिहासकार समझ बना सकता है।
    5. इसी कदम पर आगे बढ़ते हुए इतिहासकार समकालीन ग्राम समाज को समझ सकता है। वह बर्नियर की तरह के स्त्रोतों का जब मूल्यांकन कर लेगा तथा अन्य स्त्रोतों का अध्ययन उसकी विषय-वस्तु में होगा तो निश्चित तौर पर समकालीन समाज को अच्छी तरह समझ सकता है। अत: बर्नियर का वृतांत इतिहास को समकालीन ग्रामीण समाज समझने का मार्ग तो देता है लेकिन उसके दोषों के प्रति भी सचेत होना होगा।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028292

    इब्न बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए।

    Solution

    इब्न बतूता और बर्नियर दोनों ही विदेशी यात्री हैं। इन दोनों ने ही भारत में अपनी यात्रियों का वृत्तांत विस्तार से लिखा हैं।इब्न बतूता ने बड़े पैमाने पर भारत में यात्राएँ की, उसने भारत की विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए, वहाँ की आस्थाओं, पूजास्थलों तथा राजनीतिक गतिविधियों के बारे में लिखा। उदाहरण के तोर पर उसे वहाँ जो कुछ विचित्र लगता था, उसका वह विशेष रूप से वर्णन करता था। इब्न बतूता की चित्रण की विधियों के कुछ बेहतरीन उदाहरण उन तरीकों में मिलते हैं जिनसे वह नारियल और पान, दो ऐसी वानस्पतिक उपज जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे, का वर्णन करता है। इब्न बतूता के लिखने का दृष्टि-कोण आलोचनात्मक प्रतीत होता हैं।
         दूसरी ओर, बर्नियर ने भारतीय समाज की त्रुटियों को उजागर करने पर ज़ोर दिया हैं। वह भारत में जो कुछ देखता था उसकी तुलना सामान्य रूप से यूरोप तथा विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से करने लगता था। उसने अपने वृत्तांत में यही दिखाने का प्रयास किया हैं कि विकास कि दृष्टि से भारत यूरोप कि तुलना में पिछड़ा हुआ हैं 

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