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किताब-उल-हिन्द पर एक लेख लिखिए।
किताब-उल-हिन्द, अल-बिरूनी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। यह मौलिक रूप से अरबी भाषा में लिखा गया हैं तथा बाद में यह विश्व की कई प्रमुख भाषाओं में भी अनुवादित किया गया।
यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर 80 अध्यायों में विभाजित है। भाषा की दृष्टि से लेखक ने इससे सरल व स्पष्ट बनाने का प्रयास किया हैं।
अल-बिरूनी ने प्रत्येक अध्याय में सामान्यत: (हालाँकि हमेशा नहीं) एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया हैं। वह प्रत्येक अध्याय को एक प्रश्न से प्रारम्भ करता हैं, इसके बाद संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन हैं और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना की गई हैं। आज के कुछ विद्वानों का तर्क है कि अल-बिरूनी का गणित की और झुकाव था इसी कारण ही उसकी पुस्तक, जो लगभग एक ज्यामितीय संरचना हैं, बहुत ही स्पष्ट बन पड़ी हैं।
बर्नियर के वृतांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
बर्नियर ने मुग़ल काल के नगरों का वर्णन किया हैं। उसके अनुसार सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पंद्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था । यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था।बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों का उल्लेख 'शिविर नगर' के रूप में किया हैं। शिविर नगरों का अभिप्राय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर करते थे। उनका विश्वास था की ये नगर राज दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और उसके चले जाने के बाद इन नगरों का आविर्भाव समाप्त हो जाता था। यह सामाजिक और आर्थिक रूप से राजकीय प्रश्रय पर आश्रित रहते थे।
बर्नियर के अनुसार उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे: उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है।
व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे।
अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। ये राजकीय आश्रय अथवा अन्य के संरक्षण में रहते थे।
इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के सन्दर्भ में अनेक साक्ष्य दिए गए हैं। उसके अनुसार बाजारों में दास किसी भी अन्य वस्तु की तरह खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंटस्वरूप दिए जाते थे:
सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
बर्नियर ने सती-प्रथा विस्तृत वर्णन किया हैं। सती प्रथा के निम्नलिखित तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा:
जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
अल-बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति व्यवस्था को समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया। उसने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी:
वास्तव में वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। इसके साथ ही, उसने यह दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।
जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद, अल-बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया। उसने लिखा कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुन: प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है। अल-बिरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।
अल-बिरूनी की भारतीय समाज के बारे में समझ भारत की वर्ण-व्यवस्था पर आधारित थीं जिसका उल्लेख इस प्रकार हैं:
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
इब्न बतूता का वृत्तांत हमे समकालीन भारतीय शहरों में रहने वाले लोगों की जीवन शैली के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता हैं उसके विवरण से पता चलता हैं कि:
यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है:
ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारीगरी के बहुत उदाहरण हैं जिनके पास औज़ारों का अभाव है और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है।
कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में भारतीय लोग बेहतरीन बंदके और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अकसर इनके चित्रों की सुंदरता मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।
उसके द्वारा अलिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
इस उद्धरण में बर्नियर ने बंदूकें बनाना, स्वर्ण आभूषण बनाना आदि शिल्प-कार्यों का उल्लेख किया। भारतीय कारीगर इन्हे बड़ी निपुणता तथा कलात्मक ढंग से बनाते थे। यह उत्पाद इतने सुन्दर होते थे कि बर्नियर भी इन्हें देखकर हैरान रह गया था। वह कहता है कि यूरोप के कारीगर भी शायद इतनी सुन्दर वस्तुएँ बना पाते हों।
तुलना: इस अध्याय में वर्णिंत अन्य शिल्प गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:
ये सभी गतिविधियाँ राजकीय कारखानों में चलती थीं। बर्नियर इन कारखानों को शिल्पकारों कि कार्यशाला कहता है। ये शिल्पकार प्रतिदिन सुबह कारखाने में आते थे और पूरा दिन काम करने के बाद शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे।
चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?
बर्नियर ने अपने वृत्तांत में भारतीय ग्रामीण समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है। वह ग्रामीण समाज की कुछ ऐसी स्थितियाँ प्रस्तुत करता है, जिससे यह पता चलता हैं कि भारत में ग्रामीण समाज कितना पिछड़ा हुआ है।
इब्न बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए।
इब्न बतूता और बर्नियर दोनों ही विदेशी यात्री हैं। इन दोनों ने ही भारत में अपनी यात्रियों का वृत्तांत विस्तार से लिखा हैं।इब्न बतूता ने बड़े पैमाने पर भारत में यात्राएँ की, उसने भारत की विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए, वहाँ की आस्थाओं, पूजास्थलों तथा राजनीतिक गतिविधियों के बारे में लिखा। उदाहरण के तोर पर उसे वहाँ जो कुछ विचित्र लगता था, उसका वह विशेष रूप से वर्णन करता था। इब्न बतूता की चित्रण की विधियों के कुछ बेहतरीन उदाहरण उन तरीकों में मिलते हैं जिनसे वह नारियल और पान, दो ऐसी वानस्पतिक उपज जिनसे उसके पाठक पूरी तरह से अपरिचित थे, का वर्णन करता है। इब्न बतूता के लिखने का दृष्टि-कोण आलोचनात्मक प्रतीत होता हैं।
दूसरी ओर, बर्नियर ने भारतीय समाज की त्रुटियों को उजागर करने पर ज़ोर दिया हैं। वह भारत में जो कुछ देखता था उसकी तुलना सामान्य रूप से यूरोप तथा विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से करने लगता था। उसने अपने वृत्तांत में यही दिखाने का प्रयास किया हैं कि विकास कि दृष्टि से भारत यूरोप कि तुलना में पिछड़ा हुआ हैं
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