चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?
बर्नियर ने अपने वृत्तांत में भारतीय ग्रामीण समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है। वह ग्रामीण समाज की कुछ ऐसी स्थितियाँ प्रस्तुत करता है, जिससे यह पता चलता हैं कि भारत में ग्रामीण समाज कितना पिछड़ा हुआ है।
- उसके अनुसार हिंदुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में से कई केवल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत ही हैं। यहाँ की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों की आबादी भी कम है।
- यहाँ तक कि कृषियोग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता है। गरीब लोग अपने लोभी स्वामियों की माँगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं, वे अत्यंत निरंकुशता से हताश हो किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।
- बर्नियर का यह वृत्तांत एक पक्षीय है। इस बात को समझने के लिए इतिहासकार को उसके लेखन का उद्देश्य समझना होगा। जिसमें यह स्पष्ट होता है कि वह यूरोप में निजी स्वामित्व को जारी रखना चाहता है। यह भारत के कृषक व ग्रामीण समाज कि दुर्दशा के लिए भूमि स्वामित्व को जिम्मेदार ठहरता है। यह भारत में स्वामित्व निजी के स्थान पर शासकीय मानता है।
- इतिहासकार उसके वृत्तांत को पढ़कर सामान्य रूप से यह निष्कर्ष निकल सकता है कि भारतीय ग्राम कितने पिछड़े हुए थे। ऐसा कार्ल मार्क्स ने भी कहा है। इसके लिए जरूरी है कि इतिहासकार अन्य तुलनात्मक स्त्रोतों का अध्ययन करें। वह बर्नियर की स्थिति तथा लेखन के उद्देश्य को भी समझे।इतिहासकार ग्रामीण समाज के अन्य पक्षियों विशेषकर लोगों की जीवनशैली के बारे में भी जाने का प्रयास करें। इन बिंदुओं पर ध्यान रखकर 17 वी शताब्दी के गाँवों के बारे में इतिहासकार समझ बना सकता है।
- इसी कदम पर आगे बढ़ते हुए इतिहासकार समकालीन ग्राम समाज को समझ सकता है। वह बर्नियर की तरह के स्त्रोतों का जब मूल्यांकन कर लेगा तथा अन्य स्त्रोतों का अध्ययन उसकी विषय-वस्तु में होगा तो निश्चित तौर पर समकालीन समाज को अच्छी तरह समझ सकता है। अत: बर्नियर का वृतांत इतिहास को समकालीन ग्रामीण समाज समझने का मार्ग तो देता है लेकिन उसके दोषों के प्रति भी सचेत होना होगा।



