यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है:
ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारीगरी के बहुत उदाहरण हैं जिनके पास औज़ारों का अभाव है और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है।
कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में भारतीय लोग बेहतरीन बंदके और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अकसर इनके चित्रों की सुंदरता मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।
उसके द्वारा अलिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
इस उद्धरण में बर्नियर ने बंदूकें बनाना, स्वर्ण आभूषण बनाना आदि शिल्प-कार्यों का उल्लेख किया। भारतीय कारीगर इन्हे बड़ी निपुणता तथा कलात्मक ढंग से बनाते थे। यह उत्पाद इतने सुन्दर होते थे कि बर्नियर भी इन्हें देखकर हैरान रह गया था। वह कहता है कि यूरोप के कारीगर भी शायद इतनी सुन्दर वस्तुएँ बना पाते हों।
तुलना: इस अध्याय में वर्णिंत अन्य शिल्प गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:
- चित्रकारी
- कसीदाकारी
- रंग-रोगन करना
- बढ़ईगीरी
- जूते बनाना
- कपड़े सीना
- रेशम, जरी और बारीक मलमल का काम
- सोने के बर्तन बनाना
ये सभी गतिविधियाँ राजकीय कारखानों में चलती थीं। बर्नियर इन कारखानों को शिल्पकारों कि कार्यशाला कहता है। ये शिल्पकार प्रतिदिन सुबह कारखाने में आते थे और पूरा दिन काम करने के बाद शाम को अपने-अपने घर चले जाते थे।