Question
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
Solution
इब्न बतूता का वृत्तांत हमे समकालीन भारतीय शहरों में रहने वाले लोगों की जीवन शैली के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता हैं उसके विवरण से पता चलता हैं कि:
- इब्न बतूता के अनुसार उपमहाद्वीप के शहरों में ऐसे लोग जिनके पास आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था के लिए भरपूर अवसर थे। हालाँकि कुछ शहर युद्धों अथवा अभियानों के कारण नष्ट भी हो चुके थे।
- इब्न बतूता के वृत्तांत से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश शहरों में भीड़- भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
- इब्न बतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है। दौलताबाद (महाराष्ट्र में) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
- बाजार मात्र आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मंदिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी चिह्नित थे।
- इब्न बतूता की शहरों की समृद्धि का वर्णन करने में अधिक रुचि नहीं थी, इतिहासकारों ने उसके वृत्तांत का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि शहरों की समृद्धि का आधार गाँव की कृषि अर्थव्यवस्था थीं।
- शहरों में प्रवेश करने के लिए चारदीवारी में बड़े-बड़े दरवाज़े बनाए जाते थे। उदाहरण के लिए, दिल्ली (देहली) का वर्णन करते हुए उसने लिखा है: 'देल्ही विशाल क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है... शहर के चारों और बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ लगभग 20 इंच के बराबर) है; और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।..इस शहर के 28 द्वार है, जिन्हें दरवाज़ा कहा जाता है। इनमें से बदायूँ दरवाज़ा सबसे बड़ा है। मांडवी दरवाज़े के भीतर एक अनाज मंडी है।
- भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया, दोनों में बहुत माँग थी। इससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों, विशेष रूप से सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, ज़री तथा साटन की अत्यधिक माँग थी । इब्न बतूता हमें बताता है कि महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक मँहगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग ही पहन सकते थे।