बर्नियर के वृतांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
बर्नियर ने मुग़ल काल के नगरों का वर्णन किया हैं। उसके अनुसार सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पंद्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था । यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था।बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों का उल्लेख 'शिविर नगर' के रूप में किया हैं। शिविर नगरों का अभिप्राय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर करते थे। उनका विश्वास था की ये नगर राज दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और उसके चले जाने के बाद इन नगरों का आविर्भाव समाप्त हो जाता था। यह सामाजिक और आर्थिक रूप से राजकीय प्रश्रय पर आश्रित रहते थे।
बर्नियर के अनुसार उस समय सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे: उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है।
व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे।
अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। ये राजकीय आश्रय अथवा अन्य के संरक्षण में रहते थे।