निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे-कहेंगी और क्यों?
(क) हाशिए के धकेले जाते मानवीय मूल्य।
(ख) पीढी का अतंराल।
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।
हमारे हिसाब से कहानी की मूल संवेदना पीढ़ी के बीच के अंतराल को स्पष्ट करना है। बाकी दोनों मत भी इस कहानी में मिलते हैं, किन्तु वे मूल संवेदना के रूप में विकसित नहीं होते हैं। कहानी के मुख्य पात्र अर्थात् यशोधर जी स्वयं पीढ़ी अंतराल की बात स्वीकार करते है। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि दुनियादारी के मामले में उनकी सन्तानें अच्छा सोचती हैं। यशोधर जी अपनी पीढ़ी के आदर्शों और मूल्यों से बहुत ज्यादा जुड़े हैं। आफिस के कर्मचारियों के साथ उनके संबंध भी इसी मानसिकता के साथ बने हैं। चड्ढा की चौड़ी मोहरी वाली पैंट भी उन्हें इसीलिए ‘समहाउ इच्छापर’ लगती है। ‘समहाउ इच्छापर’ वाक्यांश से कहानीकार ने इस पीढी अंतराल को प्रतीकात्मक ढंग से व्यक्त किया है। उनके बेटों और बेटी के रहन-सहन नये जमाने के हिसाब से हैं। उनका सोचना भी नये सामाजिक मूल्यों पर विकसित हुए हैं। यशोधर जी जिन सामाजिक मूल्यों को बचाकर रखना चाहते हैं उन सामाजिक मूल्यों का नयी पीढ़ी के लिए कोई महत्त्व नहीं है। इसी तरह नये ढंग के कपड़े पहनना भी नयी पीढ़ी की विशेषता है। इस तरह यह कहानी पूरी तरह पीढ़ी अंतराल की कहानी कहती है।