भारतीय इतिहास के कुछ विषय Ii Chapter 9 शासक और विभिन्न इतिवृत्त
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ भारतीय इतिहास के कुछ विषय Ii

    शासक और विभिन्न इतिवृत्त Here is the CBSE ������������������ Chapter 9 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ शासक और विभिन्न इतिवृत्त Chapter 9 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ शासक और विभिन्न इतिवृत्त Chapter 9 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028320

    मुग़ल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

    Solution

    पांडुलिपि तैयार करने की एक लंबी प्रक्रिया होती थी। इस प्रक्रिया में कई लोग शामिल होते थे। जो अलग अलग कामों में दक्ष होते थे। सबसे पहले पांडुलिपि का पन्ना तैयार किया जाता था जो कागज़ बनाने वालों का काम था। तैयार किए गए पन्ने पर अत्यंत सुंदर अक्षर में पाठ की नकल तैयार की जाती थी। उस समय सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी। इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न शैलियों में होता था। सरकंडे के टुकड़े को स्याही में डुबोकर लिखा जाता था। इसके बाद कोफ्तगार पृष्ठों को चमकाने का काम करते थे। चित्रकार पाठ के दृश्यों को चित्रित करते थे। अन्त में, जिल्दसाज प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा करके उसे अलंकृत आवरण देता था। तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक संपदा और सौंदर्य के कार्य के रूप में देखा जाता था।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028321

    मुग़ल दरबार से जुड़े दैनिक-कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?

    Solution

    प्रत्येक कार्य तथा उत्सव बादशाह की शक्ति तथा सत्त्ता को ही प्रतिपादित करता था। इस संबंध में निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं:

    1. दरबार में अनुशासन: दरबार में किसी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह शासक के कितना पास और दूर बैठा है। एक बार जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी को भी अपनी जगह से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। शिष्टाचार का जरा-सा भी उल्लंघन होने पर ध्यान दिया जाता था और उसे व्यक्ति को तुरंत ही दंडित किया जाता था।
    2. अभिवादन के तरीके: शासक को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। जैसे जिस व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत ज्यादा ऊँची मानी जाती थी। अभिवादन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत् लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।
    3. झरोखा दर्शन: बादशाह अकबर अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था और इसके बाद वह पूर्व की ओर मुँह किए एक छोटे छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए इंतज़ार कर रही होती थी। इसे झरोखा दर्शन कहते थे।
    4. विशेष अवसर: अनेक धार्मिक त्यौहार; जैसे होली, ईद, शब-ए-बारात आदि त्योहारों का आयोजन खूब ठाट-बाट से किया जाता था। मुग़ल दरबार के लिए विवाह के अवसर विशेष महत्व रखते थे। इन अवसरों पर सज्जा-धज्जा तथा व्यय की गई अपार धन-राशि बादशाह की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगा देती थी।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028322

    मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

    Solution

    मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन इस प्रकार हैं:

    1. मुग़ल साम्राज्य में शाही परिवार की महिलाओं के द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती थी। इतिहास साक्षी है कि मुगल सम्राट जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ की शासन सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका थी। मलिका नूरजहाँ ने मुग़ल सम्राट पर अपना पूर्ण प्रभाव स्थापित करके शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। उसने जहाँगीर के साथ 'झरोखा दर्शन' में भाग लेना प्रारंभ कर दिया तथा बहुत से सिक्कों पर भी उसका नाम आने लगा। शाही आदेश-पत्रों पर बादशाह के हस्ताक्षरों के अतिरिक्त बेगम नूरजहाँ का नाम भी आने लगा। इस प्रकार शासन सत्ता नूरजहाँ के हाथों में केंद्रित होने लगी। राज्य संबंधी कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नुरजहाँ की स्वीकृति के बिना नहीं लिया जा सकता था।
    2. नूरजहाँ के पश्चात् मुगल रानियाँ और राजकुमारियाँ महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने लगीं। शाहजहाँ की पुत्रियों जहाँनारा और रोशनआरा की वार्षिक आय ऊँचे शाही मनसबदारों की वार्षिक आय से कम नहीं थी। जहाँनारा को विदेशी व्यापार के एक अत्यधिक लाभप्रद केंद्र सूरत के बंदरगाह नगर से भी राजस्व प्राप्त होता था।
    3. आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण होने के परिणामस्वरूप मुगल परिवार की महत्त्वपूर्ण महिलाओं को इमारतों एवं बागों का निर्माण करवाने की प्रेरणा मिली। जहाँनारा ने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद में स्थापत्य की अनेक महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में योगदान दिया। इनमें से आँगन तथा बाग के साथ एक दोमंजिला भव्य कारवाँ सराय विशेष रूप से उल्लेखनीय है । शाहजहाँनाबाद के हृदयस्थल चाँदनी चौक की रूपरेखा को भी जहाँनारा द्वारा ही तैयार किया गया था।
    4. शाही परिवार की महिलाओं में से अनेक उच्च कोटि की प्रतिभावान तथा विदुषी महिलाएँ थीं। गुलबदन बेगम, जो प्रथम मुगल सम्राट बाबर की पुत्री, हुमायूँ की बहन और महा मुगल सम्राट अकबर की फूफी (बुआ) थी, इसी प्रकार की एक महिला थी। उसे तुर्की और फ़ारसी का अच्छा ज्ञान था और वह इन दोनों भाषाओं में कुशलतापूर्वक लिख सकती थी। अकबर ने जब दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल को अपने शासन का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया, तो उसने गुलबदन बेगम से आग्रह किया कि वह बाबर और हुमायूँ के समय के अपने संस्मरणों को लिपिबद्ध करे ताकि अबुल फजले उनसे लाभ उठाकर अपने ग्रंथ को पूरा कर सकें।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028323

    वे कौन से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुग़ल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?

    Solution

    मुगल बादशाह देश की सीमाओं से परे भी अपने राजनैतिक दावे प्रस्तुत करते थे। अपने साम्राज्य की सीमाओं की सुरक्षा, पड़ोसी देशों से यथासंभव मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना, आर्थिक और धार्मिक हितों की रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों का भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुग़ल नीतियों एवं विचारों को आकार प्रदान करने में महत्वपूर्ण स्थान था। मुग़ल सम्राटों ने इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए उपमहाद्वीप से बाहर के क्षेत्रों के प्रति अपनी नीतियों का निर्धारण किया:

    1. इर्रानियों एवं तूरानियों से संबंध: मध्यकाल में अफगानिस्तान को ईरान और मध्य एशिया के क्षेत्रों से अलग करने वाले हिंदुकुश पर्वतों द्वारा निर्मित सीमा का विशेष महत्त्व था। मुग़ल शासकों के ईरान एवं तूरान के पड़ोसी देशों के साथ राजनैतिक एवं राजनयिक संबंध इसी सीमा के नियंत्रण पर निर्भर करते थे। उल्लेखनीय है कि भारतीय उपमहाद्वीप में आने का इच्छुक कोई भी विजेता हिंदुकुश पर्वत को पार किए बिना उत्तर भारत तक पहुँचने में सफल नहीं हो सकता था। अत: मुग़ल शासक उत्तरी-पश्चिमी सीमांत में सामरिक महत्त्व को चौकियों विशेष रूप से काबुल और कंधार पर अपना कुशल नियंत्रण स्थापित करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे।
    2. कंधार का किला: कंधार सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े की जड़ था। यह किला-नगर आरंभ में हुमायूँ के अधिकार में था जिसे 1595 में अकबर द्वारा पुन: जीत लिया गया। 1633 ई० में मुगलों ने कंधार पर अधिकार कर लिया, किन्तु 1649 ई० में कंधार पर पुन: ईरान का अधिकार हो गया। तत्पश्चात् बार-बार प्रयास करने पर भी कंधार को मुग़ल साम्राज्य का अंग नहीं बनाया जा सका।
    3. ऑटोमन साम्राज्य: ऑटोमन साम्राज्य के साथ अपने संबंधों के निर्धारण में मुग़ल शासक सामान्य रूप से धर्म और वाणिज्य के विषयों को मिलाकर देखते थे। साम्राज्य लाल सागर के बंदरगाहों अदन और मोखा को बहुमूल्य वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहित करता था। इनकी बिक्री से जो आय होती थी, उसे उस क्षेत्र के धर्मस्थलों एवं फ़कीरों को दान कर दिया जाता था।
    4. ईसाई धर्म: मुग़ल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृत्तांत सबसे पुराना हैं। पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में भारत तक एक सीधे समुद्री मार्ग की खोज का अनुसरण करते हुए पुर्तगाली व्यापारियों ने तटीय नगरों में व्यापारिक केंद्रों का जाल स्थापित किया। इस प्रकार ईसाई धर्म भारत में आया।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028324

    मुगल कौन थे?

    Solution

    मुग़ल साम्राज्य काफी विस्तृत था। प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से साम्राज्य का विभाजन प्रांतों अथवा सूबों में कर दिया गया था। अकबर के शासनकाल में प्रांतों की संख्या 15 थी; जहाँगीर के शासनकाल में 17 और शाहजहाँ के शासनकाल में यह संख्या 22 तक पहुँच गई थीं। औरंगजेब के शासनकाल में साम्राज्य में इक्कीस प्रांत थे। प्रांतीय शासन व्यवस्था के प्रमुख अभिलक्षण इस प्रकार थे:

    1. सूबेदार: सूबेदार प्रांत का सर्वोच्च अधिकारी था, जिसे साहिब-ए-सूबा, नाजिम, सिपहसालार आदि नामों से भी जाना जाता था। सूबेदार की नियुक्ति स्वयं सम्राट के द्वारा की जाती थी और वह सम्राट के प्रति ही उत्तरदायी होता था। सूबे के सभी अधिकारी उसके अधीन होते थे।
    2. दीवान: दीवान प्रान्त का प्रमुख वित्तीय अधिकारी था। इसकी नियुक्ति सम्राट द्वारा केंद्रीय दीवान के परामर्श से की जाती थी। दीवान सूबेदार के अधीन नहीं अपितु केंद्रीय दीवान के अधीन होता था। प्रान्तीय खजाने की देखभाल करना, प्रांत की आय-व्यय का हिसाब रखना, दीवानी मुकद्दमों का फैसला करना, प्रांतीय आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में केंद्रीय दीवान को सूचना देना तथा राजस्व विभाग के कर्मचारियों के कार्यों की देखभाल करना आदि दीवान के महत्त्वपूर्ण कार्य थे।
    3. बख्शी: बख्शी प्रांतीय सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी था। प्रांत में सैनिकों की भर्ती करना तथा उनमें अनुशासन बनाए रखना उसके प्रमुख कार्य थे।
    4. वाक़िया-नवीस-वाक्रिया नवीस प्रांत के गुप्तचर विभाग का प्रधान था। वह प्रांतीय प्रशासन की प्रत्येक सूचना केंद्रीय सरकार को भेजता था।
    5. कोतवाल-प्रांत की राजधानी तथा महत्त्वपूर्ण नगरों की आंतरिक सुरक्षा, शांति एवं सुव्यवस्था तथा स्वास्थ्य और सफाई का प्रबंध कोतवाल द्वारा किया जाता था।
    6. सदर और काजी–प्रांत में सदर और काजी का पद सामान्यत: एक ही व्यक्ति को दिया जाता था। सदर के रूप में यह प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करता था और काज़ी के रूप में वह प्रांत का मुख्य न्यायाधीश था।

    केंद्र का प्रांतों पर नियंत्रण अथवा प्रान्तीय प्रशासन की कुशलता के कारण:
    नि:संदेह मुगल सम्राटों द्वारा कुशल प्रान्तीय प्रशासन की स्थापना की गई थी। मुग़ल सम्राटों ने प्रांतों पर केन्द्र का नियंत्रण बनाए रखने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे :

    1. सम्राट स्वयं प्रांतीय प्रशासन में पर्याप्त रुचि लेता था।
    2. प्रांत के प्रमुख अधिकारी सूबेदार की नियुक्ति स्वयं सम्राट के द्वारा की जाती थी और वह सम्राट के प्रति ही उत्तरदायी होता था।
    3. प्रशासनिक कार्यकुशलता को बनाए रखने तथा सूबेदार की शक्तियों में असीमित वृद्धि को रोकने के उद्देश्य से प्रायः तीन या पाँच वर्षों के बाद सूबेदार का एक प्रांत से दूसरे प्रांत में तबादला कर दिया जाता था।
    4. प्रांतों में कुशल गुप्तचर व्यवस्था की स्थापना की गई थी। परिणामस्वरूप प्रान्तीय प्रशासन से सम्बन्धित सभी सूचनाएँ सम्राट को मिलती रहती थी।
    5. सम्राट द्वारा समय-समय पर स्वयं प्रांतों का भ्रमण किया जाता था।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028325

    उदाहरण सहित मुग़ल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।

    Solution

    मुग़ल इतिहासों के विभिन्न अभिलक्षणों का वर्णन इस प्रकार हैं :

    1. दरबारी लेखक: मुग़ल इतिवृत्तों के लेखक दरबारी इतिहासकार थे। उन्होंने मुग़ल शासकों के संरक्षण में इतिवृत्तों की रचना की। इन विवरणों में बादशाह के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा दिया गया है। इसके अतिरिक्त उपमहाद्वीपीय के अन्य क्षेत्रों से भी बहुत सी जानकारियाँ दी गयी हैं।
    2. कालक्रम अनुसार घटनाएँ: मुग़ल काल में दी गई घटनाएँ कालक्रम अनुसार हैं। एक ओर ये मुग़ल राज्य की संस्थाओं की जानकारी देते हैं, तो दूसरी ओर उन उद्देश्यों पर भी प्रकाश डालते हैं जिन्हे मुग़ल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। अत: इतिवृत्त हमें इस बात की एक झलक देते हैं कि कैसे शाही विचारधाराएँ रची तथा प्रचारित की जाती थीं।
    3. रंगीन चित्र:मुग़ल इतिवृत्तों का एक अन्य अभिलक्षण उनके रंगीन चित्र हैं। मुगल पांडुलिपियों की रचना में अनेक चित्रकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। ये चित्र कई कलाकारों की कल्पन पर आधारित हैं तथा मुग़ल दरबार तथा परिवार के विभिन्न पहलुओं की झाँकी भी प्रस्तुत करते हैं।
    4. दरबार तथा बादशाह के इतिहास में समानता: अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर (मुगल शासक औरंगजेब की एक पदवी) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा यह संकेत करते हैं कि इनके लेखकों की निगाह में साम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।
    5. भाषा: मुग़ल इतिवृत्तों का एक प्रमुख अभिलक्षण उनकी रचना फ़ारसी भाषा में किया जाना था। मुग़लकाल में सभी दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। उल्लेखनीय है कि मुग़ल चगताई मूल के थे। अत: उनकी मातृभाषा तुर्की थी, किन्तु अकबर ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए फारसी को राजदरबार की भाषा बनाया।
    6. मुग़ल इतिहास के अन्य महत्वपूर्ण स्रोत: मुग़ल इतिवृत्तों का एक महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य की छवि को प्रस्तुत करना था। इतिवृत्तों का एक अन्य अभिलक्षण मुगल शासन का विरोध करने वाले लोगों को यह स्पष्ट रूप से बता देना था कि साम्राज्य की शक्ति के सामने उनके सभी विरोधों का असफल हो जाना सुनिश्चित था।

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028326

    इस अध्याय में दी गई दृश्य-साम्रगी किस हद तक अबुल फज़ल द्वारा किए गए 'तसवीर' के वर्णन (स्रोत1) से मेल खाती है?

    Solution

    इसमें कोई संदेह नहीं कि इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री अबुल फज्ल द्वारा वर्णित 'तसवीर' के वर्णन से पर्याप्त सीमा तक मेल खाती है। उल्लेखनीय है कि मुग़लकाल में चित्रकारी अथवा चित्रकला का सराहनीय विकास हुआ था।
    लगभग सभी मुग़ल सम्राट (अपवादस्वरूप औरंगजेब को छोड़कर) चित्रकारी के प्रेमी थे। प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर ने चित्रकला को राज्याश्रय प्रदान किया और अपनी आत्मकथा के कुछ भागों को चित्रित करवाया। बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूँ को चित्रकला से विशेष लगाव था। राजनैतिक उथल-पुथल के कारण जब उसे भारत छोड़कर फ़ारस में शरण लेनी पड़ी, तो वहाँ उसे इस कला के अध्ययन का सुअवसर प्राप्त हुआ। यहीं उसका परिचय फ़ारस के उच्चकोटि के चित्रकारों से हुआ। 

    इस अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री मुख्य रूप से रंगीन चित्र है। बुलंद दरवाजा जैसे कुछ भवनों को भी दर्शाया गया है। यह दृश्य सामग्री अबुल फ़जल द्वारा किए गए 'तसवीर' के वर्णन से काफी सीमा तक मेल खाती है।

    1. यह चित्र दर्शाए गई चीज़ों का सटीक चित्रण हैं।
    2. ये मुग़ल बादशाहों की चित्र-कला तथा वास्तुकला में गहरी रूचि को व्यक्त करते हैं। उन्होंने इस कला को प्रोत्साहन देने के लिए हर संभव प्रयत्न किया। इस कार्य के लिए उन्होंने शाही कार्यशाला स्थापित की हुई थी।
    3. दिए गए चित्र को देखकर यह कहा जा सकता है कि उस समय सर्वाधिक उत्कृष्ट कलाकार उपलब्ध थे। उनकी कृतियों को उन यूरोपीय चित्रकारों की अनुपम कलाकृतियों के समक्ष रखा जा सकता है जिन्होंने विश्व में अध्याय ख्याति प्राप्त कर ली थी।
    4. चित्रों के सचिव रंग चित्र को इतना सजीव कर देते हैं कि ऐसा लगता है कि उनमें चित्रित व्यक्ति बोल रहे हैं।

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028327

    मुग़ल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके संबंध किस तरह बने।

    Solution

    मुगल राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप से अभिजात-वर्ग भी कहते हैं। मुग़ल अभिजात वर्ग के प्रमुख अभिलक्षण इस प्रकार थे:

    1. अभिजात-वर्ग में भर्ती विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके।
    2. मुग़ल अमीर वर्ग में लगभग 70 प्रतिशत विदेशी अमीर थे। इनमें फ़ारस के ईरानी तथा मध्य एशिया के तूरानी अमीरों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। ईरानी और तूरानी अमीर उन परिवारों से संबंधित थे, जो हुमायूँ के साथ भारत आ गए थे अथवा जो अकबर के सम्राट बनने के बाद भारत आए थे।
    3. अकबर के शासन काल में 1560 ई० के बाद भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों- राजपूतों और भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं) का शाही सेवाओं में प्रवेश हुआ। इनमें प्रविष्ट होने वाला प्रथम राजपूत अबेर का राजा भारमल ( बिहारीमल) कछवाहा था। उसकी पुत्री जोधाबाई का 6 फरवरी, 1562 ई० को सम्राट अकबर से विवाह हुआ था।
    4. अकबर द्वारा शिक्षा तथा लेखाशास्त्र में अभिरुचि रखने वाली हिंदू जातियों के सदस्यों को भी ऊँचे पद देकर अभिजात वर्ग में सम्मिलित किया गया। इसका उल्लेखनीय उदाहरण अकबर का वित्तमंत्री टोडरमल था, जो ख़त्री जाति से संबंधित था। अभिजात वर्ग में राजपूतों की नियुक्ति पर दो प्रमुख कारणों से बल दिया गया था-(1) राजपूत हिन्दू समाज के तलवारधारी वर्ग का निर्माण करते थे। उन्हें अभिजात वर्ग में सम्मिलित करके उनके सैन्य संसाधनों का प्रयोग मुग़ल साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार में किया जा सकता था। (2) आवश्यकता के समय राजपूत अभिजातों का प्रयोग वह अपने विदेशी मुस्लिम अभिजातों के विरुद्ध कर सकता था।
    5. जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए। जहाँगीर की राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रानी नूरजहाँ (1645) ईरानी थी। औरंगज़ेब ने राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। फिर भी शासन में अधिकारियों के समूह में मराठे अच्छी खासी संख्या में थे।

    अभिजात-वर्ग के बादशाह के साथ संबंध:

    अभिजात-वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक जरिया थी । मुग़ल सेवा में आने का इच्छुक व्यक्ति एक अभिजात के जरिए याचिका देता था जो बादशाह के सामने तजवीज़ प्रस्तुत करता था। अगर याचिकाकर्ता को सुयोग्य माना जाता था तो उसे मनसब प्रदान किया जाता था। मीर-बख्शी (उच्चतम वेतनदाता) खुले दरबार में बादशाह के दाएँ ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था जबकि उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश तैयार करता था।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028328

    राजत्व के मुग़ल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।

    Solution

    राजत्व के मुग़ल आदर्श का निर्माण करने वाले मुख्य तत्त्व निम्नलिखित थे:

    1. एक दैवीय प्रकाश: मुग़ल काल के सभी इतिवृत्त इस बात की जानकारी देते हैं कि मुग़ल शासक राजत्व के देवीय सिद्धांत में विश्वास करते थे। दरबारी इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया की मुगल राजाओं को सीधे ईश्वर से शक्ति मिलती हैं। मुग़ल शासकों के दैवीय राजत्व के सिद्धांत को सर्वाधिक महत्त्व अबुल फ़ज़्ल ने दिया। वह इसे फर-ए-इज़ादी (ईश्वर से प्राप्त) बताता हैं। वह इस विचार के लिए प्रसिद्ध ईरानी सूफ़ी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी (1191 में मृत) से प्रभावित था। उसने इस तरह के विचार ईरान के शासकों के लिए प्रस्तुत किए थे।  
    2. सुलह-ए-कुल: एकीकरण का एक स्रोत: राजत्व के मुग़ल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों में सुलह-ए-कुल की नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान था। राज्य के लौकिक स्वरूप को स्वीकार करना तथा धार्मिक सहनशीलता की नीति का अनुसरण करना मुगलों के राजत्व सिद्धान्त की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।
      अबुल फ़ज्ल के अनुसार सुलह-ए कुल (पूर्ण शान्ति) का आदर्श प्रबुद्ध शासन की आधारशिला था। सुलह- ए- कुल में सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी; शर्त केवल यही थी कि वे न तो राजसत्ता को हानि पहुँचाएँगे और न आपस में झगड़ेंगे। औरंगजेब के अतिरिक्त प्रायः सभी मुगल सम्राट धार्मिक दृष्टि से उदार एवं सहनशील थे, अतः उन्होंने राजपद के संकीर्ण इस्लामी सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए अपनी हिन्दू और मुस्लिम प्रजा को समान अधिकार प्रदान किए। अकबर वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने धर्म एवं जाती के भेद-भावों का त्याग करके अपनी समस्त प्रजा के साथ समान एवं निष्पक्ष व्यवहार किया। उसका विचार था कि शासकों को प्रत्येक धर्म और जाती के प्रति समान रूप से सहनशील होना चाहिए।
    3. सामाजिक अनुबंध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता: अबुल फ़ज़ल के विचारानुसार संप्रभुता राजा और प्रजा के मध्य होने वाला एक सामाजिक अनुबंध था। बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्त्वों - जीवन (जन), धन (माल), सम्मान (नामस) और विश्वास ( दीन) की रक्षा करता था और इसके बदले में वह प्रजा से आज्ञापालन तथा संसाधनों में भाग की माँग करता था। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवी मार्गदर्शन के साथ इन अनुबंधों का सम्मान करने में समर्थ हो पाते थे।
      अकबर का विचार था कि एक राजा या शासक अपनी प्रजा का सबसे बड़ा शुभचिंतक एवं संरक्षक होता है। उसे न्यायप्रिय, निष्पक्ष एवं उदार होना चाहिए; अपनी प्रज्ञा को अपनी संतान के समान समझना चाहिए और प्रतिक्षण प्रजा की भलाई के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। अकबर के उत्तराधिकारियों ने भी प्रजा-हित के इस सिद्धांत को अपने राजत्व संबंधी विचारों का प्रमुख आधार बनाए रखा।

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