Sponsor Area

शासक और विभिन्न इतिवृत्त

Question
CBSEHHIHSH12028328

राजत्व के मुग़ल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।

Solution

राजत्व के मुग़ल आदर्श का निर्माण करने वाले मुख्य तत्त्व निम्नलिखित थे:

  1. एक दैवीय प्रकाश: मुग़ल काल के सभी इतिवृत्त इस बात की जानकारी देते हैं कि मुग़ल शासक राजत्व के देवीय सिद्धांत में विश्वास करते थे। दरबारी इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया की मुगल राजाओं को सीधे ईश्वर से शक्ति मिलती हैं। मुग़ल शासकों के दैवीय राजत्व के सिद्धांत को सर्वाधिक महत्त्व अबुल फ़ज़्ल ने दिया। वह इसे फर-ए-इज़ादी (ईश्वर से प्राप्त) बताता हैं। वह इस विचार के लिए प्रसिद्ध ईरानी सूफ़ी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी (1191 में मृत) से प्रभावित था। उसने इस तरह के विचार ईरान के शासकों के लिए प्रस्तुत किए थे।  
  2. सुलह-ए-कुल: एकीकरण का एक स्रोत: राजत्व के मुग़ल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों में सुलह-ए-कुल की नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान था। राज्य के लौकिक स्वरूप को स्वीकार करना तथा धार्मिक सहनशीलता की नीति का अनुसरण करना मुगलों के राजत्व सिद्धान्त की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।
    अबुल फ़ज्ल के अनुसार सुलह-ए कुल (पूर्ण शान्ति) का आदर्श प्रबुद्ध शासन की आधारशिला था। सुलह- ए- कुल में सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी; शर्त केवल यही थी कि वे न तो राजसत्ता को हानि पहुँचाएँगे और न आपस में झगड़ेंगे। औरंगजेब के अतिरिक्त प्रायः सभी मुगल सम्राट धार्मिक दृष्टि से उदार एवं सहनशील थे, अतः उन्होंने राजपद के संकीर्ण इस्लामी सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए अपनी हिन्दू और मुस्लिम प्रजा को समान अधिकार प्रदान किए। अकबर वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने धर्म एवं जाती के भेद-भावों का त्याग करके अपनी समस्त प्रजा के साथ समान एवं निष्पक्ष व्यवहार किया। उसका विचार था कि शासकों को प्रत्येक धर्म और जाती के प्रति समान रूप से सहनशील होना चाहिए।
  3. सामाजिक अनुबंध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता: अबुल फ़ज़ल के विचारानुसार संप्रभुता राजा और प्रजा के मध्य होने वाला एक सामाजिक अनुबंध था। बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्त्वों - जीवन (जन), धन (माल), सम्मान (नामस) और विश्वास ( दीन) की रक्षा करता था और इसके बदले में वह प्रजा से आज्ञापालन तथा संसाधनों में भाग की माँग करता था। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवी मार्गदर्शन के साथ इन अनुबंधों का सम्मान करने में समर्थ हो पाते थे।
    अकबर का विचार था कि एक राजा या शासक अपनी प्रजा का सबसे बड़ा शुभचिंतक एवं संरक्षक होता है। उसे न्यायप्रिय, निष्पक्ष एवं उदार होना चाहिए; अपनी प्रज्ञा को अपनी संतान के समान समझना चाहिए और प्रतिक्षण प्रजा की भलाई के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। अकबर के उत्तराधिकारियों ने भी प्रजा-हित के इस सिद्धांत को अपने राजत्व संबंधी विचारों का प्रमुख आधार बनाए रखा।

Sponsor Area