मुग़ल दरबार से जुड़े दैनिक-कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?
प्रत्येक कार्य तथा उत्सव बादशाह की शक्ति तथा सत्त्ता को ही प्रतिपादित करता था। इस संबंध में निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं:
- दरबार में अनुशासन: दरबार में किसी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह शासक के कितना पास और दूर बैठा है। एक बार जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी को भी अपनी जगह से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। शिष्टाचार का जरा-सा भी उल्लंघन होने पर ध्यान दिया जाता था और उसे व्यक्ति को तुरंत ही दंडित किया जाता था।
- अभिवादन के तरीके: शासक को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। जैसे जिस व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत ज्यादा ऊँची मानी जाती थी। अभिवादन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत् लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।
- झरोखा दर्शन: बादशाह अकबर अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था और इसके बाद वह पूर्व की ओर मुँह किए एक छोटे छज्जे अर्थात् झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए इंतज़ार कर रही होती थी। इसे झरोखा दर्शन कहते थे।
- विशेष अवसर: अनेक धार्मिक त्यौहार; जैसे होली, ईद, शब-ए-बारात आदि त्योहारों का आयोजन खूब ठाट-बाट से किया जाता था। मुग़ल दरबार के लिए विवाह के अवसर विशेष महत्व रखते थे। इन अवसरों पर सज्जा-धज्जा तथा व्यय की गई अपार धन-राशि बादशाह की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगा देती थी।