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कृषि इतिहास लिखने के लिए आइन को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने में कौन सी समस्याएँ हैं? इतिहासकार इन समस्याओं से कैसे निपटते हैं?
समस्याएँ: कृषि इतिहास लिखने के लिए 'आइन' को स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने में निम्नलिखित समस्याएँ हैं:
समस्या से निपटना: इतिहासकार मानते हैं कि इस तरह कि समस्याएँ तब आती हैं जब व्यापक स्तर पर इतिहास लिखा जाता हैं । इन समस्याओं से निपटने के लिए इतिहासकार आइन के साथ साथ उन स्त्रोतों का भी प्रयोग कर सकते हैं जो मुगलों की राजधानी से दूर के प्रदेशों में लिखे गए थे। जोड़ इत्यादि की गलतियों का निदान पुन:जोड़ करके इतिहासकार इसे स्त्रोत के रूप में प्रयोग कर लेता हैं।
सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में कृषि उत्पादन को किस हद तक महज़ गुज़ारे के लिए खेती कह सकते हैं? अपने उत्तर के कारण स्पष्ट कीजिए
सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में दैनिक आहार की खेती पर ज्यादा जोर दिया जाता था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि उस काल में खेती केवल गुजारा करने के लिए की जाती थी। तब तक खेती का स्वरूप काफ़ी बदल गया था। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं :
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण दीजिए।
कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण इस प्रकार दिया गया हैं:
विचाराधीन काल में मौद्रिक कारोबार की अहमियत की विवेचना उदाहरण देकर कीजिए।
विचाराधीन काल (16वीं और 17वीं सदी )में मौद्रिक कारोबार की अहमियत पर विवरण निम्नलिखित हैं:
उन सबूतों की जाँच कीजिए जो ये सुझाते हैं कि मुग़ल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व बहुत महत्वपूर्ण था।
जमींन से मिलने वाला राजस्व मुगुल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी। इसलिए कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए और तेजी से फैलते साम्राज्य के तमाम इलाकों में राजस्व आकलन व वसूली के लिए एक प्रशासनिक तंत्र का होना आवश्यक था। अत: सरकार ने ऐसी हर सम्भव व्यवस्था की जिससे राज्य में सारी कृषि योग्य भूमि की जुताई सुनिश्चित की जा सके। राज्य की आर्थिक स्थिति तथा कोष इस बात पर निर्भर करते थे कि भू-राजस्व कितना तथा कैसे एकत्रित किया जा रहा है।
भू-राजस्व के इंतजामात में दो चरण थे: पहला, कर निर्धारण और दूसरा, वास्तविक वसूली। जमा निर्धारित रकम थी और हासिल सचमुच वसूली गई रकम। अमील-गुजार या राजस्व वसूली करने वाले के कामों की सूची में अकबर ने यह हुक्म दिया कि जहाँ उसे(अमील-गुजार को) कोशिश करनी चाहिए कि खेतिहर नकद भुगतान करे, वहीं फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे।
हर प्रान्त में जुती हुई ज़मीन और जोतने लायक जमीन दोनों की नपाई की गई। अकबर के शासन काल में अबुल फ़ज़्ल ने आइन में ऐसी जमींनों के सभी आकड़ों को संकलित किया। उसके बाद के बादशाहों के शासनकाल में भी जमीन की नपाई केप्रयास जारी रहे।
आपके मुताबिक कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने में जाति किस हद तक एक कारक थी?
कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने में जाति की भूमिका:
मुग़ल भारत में जमींदारों की भूमिका की जाँच कीजिए।
पंचायत और गाँव का मुखिया किस तरह से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे? विवेचना कीजिए।
शताब्दियों के काल में ग्रामीण समाज में पंचायत और मुखिया का अत्याधिक महत्वपूर्ण स्थान था। ग्रामीण समाज के नियमन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। गाँव की सारी व्यवस्था का संचालन पंचायत द्वारा ही किया जाता था।
पंचायतों का गठन: गाँव की पंचायतों में मुख्य रूप से बुजुर्गों का ही जमावड़ा होता था। प्राय: वे गाँव के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पति होती थी। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ अकसर पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी। यह एक ऐसा अल्पतंत्र तथा जिसमें गाँव के अलग-अलग संप्रदायों और जातियोंकी नुमाइंदगी होती थी। पंचायत का फैसला गाँव में सबको मानना पड़ता था।
पंचायत का मुखिया: गाँव की पंचायत मुखिया के नेतृत्व में कार्य करती थी। इससे मुख्य रूप से मुकद्दम या मंडल कहते थे। कुछ स्रोतों से प्रतीत होता हैं कि मुखिया का चुनाव गाँव के बुज़ुर्गों की आम सहमति से होता था और इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंज़ूरी ज़मींदार से लेनी पड़ती थी। मुखिया अपने ओहदे पर तभी तक बना रहता था जब तक गाँव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था। ऐसा नहीं होने पर बुजुर्ग उसे बर्खास्त कर सकते थे। गाँव के आमदनी व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का मुख्य काम था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी मदद करता था। गाँव की आमदनी, खर्च व अन्य विकास कार्यों के करवाने की ज़िम्मेदारी उसकी होती थी।
पंचयात के कार्य (ग्रामीण समाज का नियमन): ग्राम पंचयात व मुखिया को गाँव के विकास तथा व्यवस्था की देख-रेख में कार्य करने होते थे। इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार हैं:
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगल वासियों की जिदंगी किस तरह बदल गई?
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में जंगल वासियों की जिदंगी में परिवर्तन के लिए बहुत से कारण जिम्मेदार थे। इनमें से मुख्य का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से हैं:
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