पंचायत और गाँव का मुखिया किस तरह से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे? विवेचना कीजिए।
शताब्दियों के काल में ग्रामीण समाज में पंचायत और मुखिया का अत्याधिक महत्वपूर्ण स्थान था। ग्रामीण समाज के नियमन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। गाँव की सारी व्यवस्था का संचालन पंचायत द्वारा ही किया जाता था।
पंचायतों का गठन: गाँव की पंचायतों में मुख्य रूप से बुजुर्गों का ही जमावड़ा होता था। प्राय: वे गाँव के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी सम्पति होती थी। जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे, वहाँ अकसर पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी। यह एक ऐसा अल्पतंत्र तथा जिसमें गाँव के अलग-अलग संप्रदायों और जातियोंकी नुमाइंदगी होती थी। पंचायत का फैसला गाँव में सबको मानना पड़ता था।
पंचायत का मुखिया: गाँव की पंचायत मुखिया के नेतृत्व में कार्य करती थी। इससे मुख्य रूप से मुकद्दम या मंडल कहते थे। कुछ स्रोतों से प्रतीत होता हैं कि मुखिया का चुनाव गाँव के बुज़ुर्गों की आम सहमति से होता था और इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंज़ूरी ज़मींदार से लेनी पड़ती थी। मुखिया अपने ओहदे पर तभी तक बना रहता था जब तक गाँव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था। ऐसा नहीं होने पर बुजुर्ग उसे बर्खास्त कर सकते थे। गाँव के आमदनी व खर्चे का हिसाब-किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का मुख्य काम था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी मदद करता था। गाँव की आमदनी, खर्च व अन्य विकास कार्यों के करवाने की ज़िम्मेदारी उसकी होती थी।
पंचयात के कार्य (ग्रामीण समाज का नियमन): ग्राम पंचयात व मुखिया को गाँव के विकास तथा व्यवस्था की देख-रेख में कार्य करने होते थे। इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार हैं:
- गाँव की आय व खर्च के नियंत्रण का कार्य गाँव की पंचायत का ही था। गाँव का अपना एक खजाना होता था जिसमें गाँव के प्रत्येक परिवार का अपना एक हिस्सा होता था। इस खजाने का प्रयोग पंचायत गाँव के विकास कार्यों में किया करती थी।
- पंचायत का एक बड़ा काम यह तसल्ली करना होता था कि गाँव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की हदों के अंदर रहें।
- जाति की अवहेलना रोकने के लिए लोगों केआचरण पर नजर रखना गाँव के मुखिया की ज़िम्मेदारी हुआ करती थी।
- पंचायतों को जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे ज्यादा गंभीर दंड देने के अधिकार थे। समुदाय से बाहर निकालना एक कड़ा कदम था जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था। इसके तहत दंडित व्यक्ति को (दिए हुए समय केलिए) गाँव छोड़ना पड़ता था। इस दौरान वह अपनी जाती तथा व्यवस्था से हाथ धो बैठता था। ऐसी नीतियों का उद्देश्य जातिगत रिवाज़ों की अवहेलना को रोकना था।