उन सबूतों की जाँच कीजिए जो ये सुझाते हैं कि मुग़ल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व बहुत महत्वपूर्ण था।
जमींन से मिलने वाला राजस्व मुगुल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी। इसलिए कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए और तेजी से फैलते साम्राज्य के तमाम इलाकों में राजस्व आकलन व वसूली के लिए एक प्रशासनिक तंत्र का होना आवश्यक था। अत: सरकार ने ऐसी हर सम्भव व्यवस्था की जिससे राज्य में सारी कृषि योग्य भूमि की जुताई सुनिश्चित की जा सके। राज्य की आर्थिक स्थिति तथा कोष इस बात पर निर्भर करते थे कि भू-राजस्व कितना तथा कैसे एकत्रित किया जा रहा है।
भू-राजस्व के इंतजामात में दो चरण थे: पहला, कर निर्धारण और दूसरा, वास्तविक वसूली। जमा निर्धारित रकम थी और हासिल सचमुच वसूली गई रकम। अमील-गुजार या राजस्व वसूली करने वाले के कामों की सूची में अकबर ने यह हुक्म दिया कि जहाँ उसे(अमील-गुजार को) कोशिश करनी चाहिए कि खेतिहर नकद भुगतान करे, वहीं फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे।
हर प्रान्त में जुती हुई ज़मीन और जोतने लायक जमीन दोनों की नपाई की गई। अकबर के शासन काल में अबुल फ़ज़्ल ने आइन में ऐसी जमींनों के सभी आकड़ों को संकलित किया। उसके बाद के बादशाहों के शासनकाल में भी जमीन की नपाई केप्रयास जारी रहे।



