निर्मला पुतुल
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने,
आओ-मिलकर बचाएँ।
कवयित्री की मान्यता है कि यदि हम लोगों के जीवन में थोडा-सा विश्वास, थोड़ी-सी आशा और थोड़ी- सी कल्पनाशीलता ला दें तो उनका जीवन खुशहाल हो जाए। इन सब बातों को बचाकर रखना आवश्यक भी है। शब्दों में मितव्ययता बरती गई है। भाषा सहज एवं सुबोध है। कवयित्री वातावरण को बचाकर रखने के प्रति सचेष्ट प्रतीत होती है।
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दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?
निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए-
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने,
आओ-मिलकर बचाएँ।
बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?
आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।
‘आओ, मिलकर बचाएँ’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
कवयित्री ने अपनी कविता में किन पक्षों को छुआ है?
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