‘आओ, मिलकर बचाएँ’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ में आदिवासी समाज के स्वरूप एवं समस्याओं को उकेरा गया है। कवयित्री संथाली समाज के साथ गहरे रूप से जुड़ी हुई है। उसने इस कविता में समाज में उन चीजों को बचाने की बात कही है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए बहुत आवश्यक है। कविता का मूल स्वर है-प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आदिवासी समाज पर आया संकट। कवयित्री आदिवासी समाज के परिवेश को बचाए रखना और शहरी प्रभाव से मुक्त रखना चाहती है। वह झारखंडी स्वरूप की रक्षा चाहती है। संथाली समाज के ठंडेपन को दूर करना और उनमें उत्साह का संचार करना कवयित्री का लक्ष्य है। वहाँ के प्राकृतिक वातावरण के प्रति भी अपनी चिंता जाहिर करती है। वहाँ का राग-रंग उसकी नस-नस में समाया है, अत: इसके लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता महसूस करती है। कवयित्री आशावादी है, अत: बचे हुए स्वरूप में भी वह बहुत देख लेती है।