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निर्मला पुतुल

Question
CBSEENHN11012374

‘आओ, मिलकर बचाएँ’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

Solution

निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ में आदिवासी समाज के स्वरूप एवं समस्याओं को उकेरा गया है। कवयित्री संथाली समाज के साथ गहरे रूप से जुड़ी हुई है। उसने इस कविता में समाज में उन चीजों को बचाने की बात कही है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए बहुत आवश्यक है। कविता का मूल स्वर है-प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आदिवासी समाज पर आया संकट। कवयित्री आदिवासी समाज के परिवेश को बचाए रखना और शहरी प्रभाव से मुक्त रखना चाहती है। वह झारखंडी स्वरूप की रक्षा चाहती है। संथाली समाज के ठंडेपन को दूर करना और उनमें उत्साह का संचार करना कवयित्री का लक्ष्य है। वहाँ के प्राकृतिक वातावरण के प्रति भी अपनी चिंता जाहिर करती है। वहाँ का राग-रंग उसकी नस-नस में समाया है, अत: इसके लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता महसूस करती है। कवयित्री आशावादी है, अत: बचे हुए स्वरूप में भी वह बहुत देख लेती है।

Some More Questions From निर्मला पुतुल Chapter

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास!

‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?

निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए-

थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोड़े-से सपने,

आओ-मिलकर बचाएँ।

बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?