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निर्मला पुतुल

Question
CBSEENHN11012363

इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?

Solution

इस अविश्वास भरे दौर में बचाने को बहुत कुछ बचा है-इससे कवयित्री का आशय यह है कि यदि संथाली समाज अपनी बुराइयों को दूर कर ले तो उसका मूल स्वरूप बहाल हो सकता है। अभी उनका परिवेश, उनकी भाषा, संस्कृति में अधिक बिगाड़ नहीं आया है। शहरी सम्यता का प्रभाव भी अभी सीमित मात्रा में है। अत: यहाँ के मूल चरित्र को बचाए रखना पूरी तरह से संभव है। इसे बचाना ही होगा।

Some More Questions From निर्मला पुतुल Chapter

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:

नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी-भर एकान्त
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-भरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास!

‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?

निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए-

थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोड़े-से सपने,

आओ-मिलकर बचाएँ।

बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?