वियतनाम में साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में महिलाओं की क्या भूमिका थी? इसकी तुलना भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष में महिलाओं की भूमिका से कीजिए।
(i) पारंपरिक रुप से वियतनाम में महिलाओं को एक अच्छा दर्जा मिलता था। जैसे-जैसे वियतनाम में राष्ट्रवादी आंदोलन ज़ोर पकड़ने लगा वैसे-वैसे समाज में महिलाओं की योग्यता व स्थिति पर भी सवाल उठने लगे और स्त्रीत्व की एक नई छवि सामने आने लगी। साहित्यकार और राजनीतिक विचारक विद्रोहों में हिस्सा लेने वाली महिलाओं का आदर्श के रूप में पेश करने लगे।
(ii) 1930 में न्हात लिन्ह ने अपने उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के राष्ट्रवादी स्वरूप का चित्रण किया। उसने अपने उपन्यास की नायिका के माध्यम से सामाजिक रीति-रिवाज़ों और परंपराओं के विरुद्ध एक बगावत की।
(iii) पुराने जमाने की विद्रोही महिलाओं का भी महिमामंडन किया जाने लगा। 1913 में राष्ट्रवादी नेता फान बोई चाऊ ने 39-43 ईस्वी में चीनी कब्ज़े के विरोधियों से चलने वाली ट्रंग बहनों के जीवन पर एक नाटक लिखा। इस नाटक में उन्होंने दिखाया कि इन बहनों ने वियतनामी राष्ट्र को चीनियों से स्वतंत्र कराने के लिए देशभक्ति के भाव से कैसे-कैसे कारनामे किए थे। उनकी बगावत का वास्तविक कारण क्या था, इस बारे में बहुत सारे विचारको की राय- राय भिन्न भिन्न रही है, लेकिन फान के नाटक के बाद उनको आदर्श के रूप में पेश किया जाने लगा और उनका गुणगान किया जाने लगा।
(iv) वियतनामियों की अपराजय इच्छाशक्ति और गहन देशभक्ति के प्रतीक के रूप में पेंटिंग्स, नाटकों और उपन्यासों में उनका महिमामंडन होने लगा। बताया जाता हैं की ट्रंग बहनों ने 30,000 सैनिकों की फ़ौज जुटा ली थी। उन्होंने चीनियों का दो साल तक सामना किया और अंत में जब उन्हें अपनी हर निश्चित दिखाई देने लगी तो शत्रु के सामने आत्मसमर्पण करने की अपेक्षा उन्होंने आत्महत्या कर ली।
वियतनामी राष्ट्रवादी महिलाओं की भारतीय राष्ट्रवादी महिलाओं से तुलना:
(i) जिस प्रकार अमेरिकी युद्ध में वियतनामी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया, उसी प्रकार भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी भारत की राष्ट्रवादी महिलाओं के उदाहरण मिलते हैं। भारत की राष्ट्रवादी महिला सिपाहियों ने सैनिक और असैनिक दोनों मोर्चे पर औपनिवेशिक शासको का डटकर विरोध किया।
(ii) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, बेगम हजरत महल जैसी महान वीरांगनाओं की तुलना वियतनाम की ट्रंग बहनों से की जा सकती है जिन्होंने चीनी शासकों से अपने देश को मुक्त कराने के लिए 30,000 सैनिकों की फौज खड़ी कर ली थी।



