लेखक दूसरे मित्र द्वारा कुछ भी न खरीद पाने के उदाहरण से क्या बताना चाह रहा है?
लेखक एक और मित्र की बात बताता है। वे दोपहर के पहले के गए बाजार से कहीं शाम को वापिस आए। आए तो खाली हाथ। लेखक ने पूछा कहीं रहे? मित्र बोले-बाजार देखते रहे। लेखक ने कहा बाजार को देखते क्या रहे? बोले-क्यों? बाजार। तब लेखक ने कहा-लाए तो कुछ नहीं। मित्र बोले-हाँ! पर यह समझ न आता था कि न लूँ तो क्या? सभी कुछ तो लेने का जी होता है। कुछ लेने का मतलब था शेष सब कुछ को छोड़ देना। पर मैं कुछ भी नहीं छोड़ना चाहता था। इससे मैं कुछ भी नहीं ले सका।
लेखक को लगा कि मित्र की बात ठीक थी। अगर ठीक पता नहीं है कि क्या चाहते हो तो सब ओर की चाह तुम्हें घेर लेगी और तब परिणाम त्रास ही होगा गति नहीं होगी न कर्म।