निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
उस बल को नाम जो दो; पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं, आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखूँ और प्रतिपादन करूँ। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है।
1. ‘उस बल’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? उसे अपर जाति का तत्व क्यों कहा है?
2. लेखक की विनम्रता किस कथन से व्यक्त हो रही है और आप उसके कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
3. लेखक ने व्यक्ति की निर्बलता का प्रमाण किसे माना है और क्यों?
4. मनुष्य पर धन की विजय चेतन पर जड़ की विजय कैसे है?
1. बाजार जाकर आवश्यक-अनावश्यक वस्तुएँ खरीद सकने का बल, वह संसारी वैभव की भातभाँतिने-फूलने वाला नही है, इसलिए उसे अपर जाति का तत्त्व कहा है।
2. मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ …
मुझे योग्यता नहीं कि मैं शब्दों के अंतर देखूँ
लेखक से सहमत होना कठिन है क्योंकि वह विद्वान और योग्य है, यह लेख ही इसका प्रमाण है।
3. संचय की तृष्णा बटोरकर रखने की चाह निर्बलता के प्रमाण हैं क्योंकि निर्बल व्यक्ति ही इनकी ओर झुकता है।
4. मनुष्य चेतन है और घन जड़। जड़ चेतन मनुष्य जड़ धन-संपत्ति की चाह में उसके वश में हो जाता है तो उसे ही कहा जाएगा चेतन पर जड़ की विजय।