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जैनेंद्र कुमार

Question
CBSEENHN12026509

बाजा़र में भगतजी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

Solution

बाजा़र में जाकर भगतजी संतुलित रहते हैं। बाजा़र का जादू उन पर असर नहीं कर पाता क्योंकि वे खाली मन बाजा़र नहीं जाते। वे घर से सोचकर बाजार जाते हैं कि उनको क्या लेना है (काला नमक और जीरा)। वे पंसारी की दुकान पर जाकर वे ही चीजें खरीदते हैं और लौट आते हैं।

बाजा़र में भगतजी के व्यक्तित्व का यह सशक्त पहलू उभरता है कि उनका अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण है। बाजा़र का जादू उनके मन पर नही चलता। बाजार में उनकी आँखें खुली रहती हैं, पर मन भरा होने के कारण उनका मन अनावश्यक चीजें खरीदने के लिए विद्रोह नही करता। चाँदनी चौक का आमंत्रण उन पर व्यर्थ होकर बिखर जाता है। भगतजी जैस व्यक्ति बाजा़र को सार्थकता प्रदान करते हैं।

हमारी नजर में भगतजी का आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है। हमारा ऐसा सोचने का कारण यह है तब लोगों में अनावश्यक प्रतिस्पर्धा नहीं होगी। वे व्यर्थ की वस्तुएँ नहीं खरीदेगे और इससे आपसी लड़ाई झगड़ों में कमी आएगी।

Some More Questions From जैनेंद्र कुमार Chapter

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर, और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसा विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ। उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि जरा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है। लेकिन क्या लोक वैभव की यह व्यंग्य-शक्ति उस चूरन वाले अकिंचित्कर मनुष्य के आगे चूर-चूर होकर ही नहीं रह जाती? चूर-चूर क्यों, कहो पानी-पानी।
तो वह क्या बल है जो इस तीखे व्यंग्य के आगे ही अजेय ही नहीं रहता, बल्कि मानो उस व्यंग्य की कुरता को ही पिघला देता है?

1. पैसे की व्यंग्य-शक्ति बताने के लिए क्या उदाहरण दिया गया है?
2. लेखक को क्या विडंबना मालूम होती है?
3. इस व्यंग्य-शक्ति का चूरन वाले के सामने क्या हाल होता है?
4. लेखक किस बल की बात कर रहा है?


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
उस बल को नाम जो दो; पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं, आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखूँ और प्रतिपादन करूँ। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है।

1. ‘उस बल’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? उसे अपर जाति का तत्व क्यों कहा है?
2. लेखक की विनम्रता किस कथन से व्यक्त हो रही है और आप उसके कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
3. लेखक ने व्यक्ति की निर्बलता का प्रमाण किसे माना है और क्यों?
4. मनुष्य पर धन की विजय चेतन पर जड़ की विजय कैसे है?



निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
इस सद्भाव के द्वारा पर आदमी आपस में भाई-भाई और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं, मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों, एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखता है और यह बाजार का, बल्कि इतिहास का सत्य माना जाता है। ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है। तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडम्बना है और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीतिशास्त्र है।

1. किस ‘सद्भाव के हाल’ की बात की जा रही है? उसका क्या परिणाम दिखाई पड़ता है?
2. ‘ऐसे बाजार’ प्रयोग का सकेतित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
3. लेखक ने संकेत किया है कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। इस विचार के पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
4. अर्थशास्त्र के लिए प्रयुक्त दो विशेषणों का औचित्य बताइए।




बाजा़र का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?

बाजा़र में भगतजी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

'बाजा़रूपन' से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजा़र को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजा़र की सार्थकता किसमें है?

बाजा़र किसी का लिंग, जाति-मजहब या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ़ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं?

आप अपने तथा समाज में किन्हीं दो ऐसे प्रसंगों का उल्लेख करें-

(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक कै रूप में प्रतीत हुआ।

(ख) पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

बाजा़र दर्शन पाठ मे बाजा़र जाने या न जाने के संदर्भ मे मन में कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

(क) मन खाली हो          (ख) मन खाली न हो,

(ग) मन बंद हो,            (घ) मन में नकार हो।

‘बाजा़र दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते हैं?