निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर, और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसा विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ। उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि जरा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है। लेकिन क्या लोक वैभव की यह व्यंग्य-शक्ति उस चूरन वाले अकिंचित्कर मनुष्य के आगे चूर-चूर होकर ही नहीं रह जाती? चूर-चूर क्यों, कहो पानी-पानी।
तो वह क्या बल है जो इस तीखे व्यंग्य के आगे ही अजेय ही नहीं रहता, बल्कि मानो उस व्यंग्य की कुरता को ही पिघला देता है?
1. पैसे की व्यंग्य-शक्ति बताने के लिए क्या उदाहरण दिया गया है?
2. लेखक को क्या विडंबना मालूम होती है?
3. इस व्यंग्य-शक्ति का चूरन वाले के सामने क्या हाल होता है?
4. लेखक किस बल की बात कर रहा है?
1. पैसे की व्यंग्य-शक्ति को बताने के लिए धूल उड़ाती मोटर का उदाहरण देता है। उसके पास से निकल जाने पर लेखक के कलेजे में व्यंग्य का तीर चुभ गया।
2. लेखक को मोटर के पास से निकल जाने पर यह विडंबना मालूम हुई कि क्या उसके भाग्य में ये गरीब माता-पिता ही रह गए थे जिनके यहाँ उसे जन्म मिला। वह मोटरकार वाले के यहाँ पैदा क्यों नहीं हुआ।
3. इस व्यंग्य-शक्ति को चूरन वाले भगतजी के सामने चूर-चूर हो जाना पड़ता है। वहाँ इसका कोई वश नहीं चलता। भगतजी पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।
4. लेखक भगतजी के नैतिक बल की बात कर रहा है। उनका यह बल पैसे की व्यंग्य-शक्ति को झुका देता है और उसकी क्रूरता को पिघला देता है।