निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
इस सद्भाव के द्वारा पर आदमी आपस में भाई-भाई और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं, मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों, एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखता है और यह बाजार का, बल्कि इतिहास का सत्य माना जाता है। ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है। तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडम्बना है और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीतिशास्त्र है।
1. किस ‘सद्भाव के हाल’ की बात की जा रही है? उसका क्या परिणाम दिखाई पड़ता है?
2. ‘ऐसे बाजार’ प्रयोग का सकेतित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
3. लेखक ने संकेत किया है कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। इस विचार के पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
4. अर्थशास्त्र के लिए प्रयुक्त दो विशेषणों का औचित्य बताइए।
1. इस कथन में मनुष्य के आपसी संबंधों पर टिके प्रेम सद्भाव के समाप्त होने की बात कही गई है। इसका यह परिणाम दिखाई पड़ता है कि मनुष्यों के आपसी संबंध समाप्त हो जाते हैं और बाजार की शक्ति सब कुछ होकर रह जाती है। क्रय-विक्रय के माध्यम से एक-दूसरे को ठगकर लाभ कमाना ही एकमात्र उद्देश्य रह जाता है।
2. ऐसे बाजार का सांकेतिक अर्थ यह है कि बाजार में जादुई शक्ति है। बाजार का अर्थ केवल धन कमाना होता है। इसमें आपसी रिश्ते-नाते कोई मायने नहीं रखते। यहाँ केवल लाभ-हानि की भाषा बोली-समझी जाती है।
3. यह सही है कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। ऐसा तब होता है जब बाजार में लोगों की आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता बल्कि वहाँ शोषण होता है वहाँ कपट होता है। दुकानदार ग्राहक से अधिक कीमत वसूल करके उसका शोषण करता है।
4. अर्थशास्त्र के लिए प्रयुक्त दो विशेषण:
(i) अनीतिशास्त्र: जो बाजार कपट करके मनुष्य का शोषण करता है, उसका अर्थशास्त्र अनीतिशास्त्र का होता है।
(ii) मायावीशास्त्र: अर्थशास्त्र के मायावीशास्त्र का विशेषण उसके जादू को उभारता है। हम इस जादू से बच नहीं पाते।