निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए हे? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में खूबी है कि आग्रह नहीं है। आग्रह तिरस्कार जगाता है, लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह!
कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकल क्यों, पागल। असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।
1. लेखक ने मित्र की बात सुनकर मन में क्या सोचा?
2. बाजार का आमंत्रण कैसा होता है?
3. बाजार में खड़े होकर आदमी को क्या लगता है?
4. अपने काे न जानने पर बाजार हम पर क्या प्रभाव डालता है?
1. लेखक ने मित्र की बात सुनकर मन में यह सोचा कि बाजार तो हमें आमंत्रित करता है अर्थात् बुलाता है। वह कहता है कि मुझे लूटो अर्थात् खूब सामान खरीदो। तुम्हारा ध्यान केवल मेरी ओर ही होना चाहिए, अन्य कहीं नहीं।
2. बाजार का आमंत्रण मूक होता है। उसके आमंत्रण .में आग्रह नहीं होता, क्योंकि आग्रह तिरस्कार जगाता है। बाजार अपना रूप दिखाकर हमें लुभाता है।
3. बाजार में खड़े होकर आदमी को यह लगने लगता है कि उसके पास काफी चीजें नहीं हैं। उसे और चीजें चाहिए। बाजार में अपरिमित और अतुलित चीजें भरी पड़ी हैं। उसे भी ये चीजें चाहिए।
4. अपने को न जानने पर बाजार का चौक आदमी को कामना से विफल बना देता है बल्कि पागल कर देता है। उसके मन में असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या के भाव जाग जाते हैं और मनुष्य सदा के लिए बेकार हो जाता है।