एक दिन लेखिका (बेबी) किस समस्या में फँस गई? तब उसने क्या सोचा?
एक दिन बेबी घर में बैठी अपने बच्चों से बातें कर रही थी कि तभी मकान-मालिक का बड़ा लड़का आकर दरवाजे पर खड़ा हो गया। बेबी ने उससे बैठने को कहा। बस, वह बैठा तो उठने का नाम ही न ले! उसने बातें चालू कीं तो लगा कि वे कभी खत्म नहीं होंगी। उसकी बातें ऐसी थीं कि जवाब देने में उसे शर्म आ रही थी। वह उससे वहाँ से चले जाने को भी नहीं कह पा रही थी और स्वयं भी बाहर नहीं जा सकती थी क्योंकि वह दरवाजे पर ऐसे बैठा था कि उसकी बगल से निकला नहीं जा सकता था। वह समझ रही थी कि वह क्या कहना चाह रहा है। ऐसे में उसकी बातों को वह अनसुना न करती तो क्या करती! उसने सोचा अब उसका भला इसी में है कि वह इस घर को भी जल्दी से जल्दी छोड़ दे। उसकी बातों से यह साफ हो गया कि यदि वह उसके कहने पर चलेगी तब तो उस घर में रह सकेगी, नहीं तो नहीं। उसने सोचा यह क्या इतना सहज है। घर में कोई मर्द नहीं है तो क्या इसी से मुझे हर किसी की कोई भी बात माननी होगी! मैं कल ही कहीं और घर ढुँढ़लूँगी।