बेबी की दिनचर्या कैसे चलने लगी?
बेबी इसी तरह रोज सवेरे आती और दोपहर तक सारा काम खत्म कर चली जाती। बीच-बीच में साहब उसके बारे में इधर-उधर की बातें पूछ लेते। एक दिन उन्होंने उसके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा तो बेबी ने कहा वह तो पढ़ाना चाहती है लेकिन वैसा सुयोग कहाँ है, फिर भी चेष्टा तो करेगी। तातुश ने एक दिन बुलाकर फिर कहा, “तुम अपने लड़के और लड़की को लेकर आना। यहाँ एक छोटा सा स्कूल है। मैं वहाँ बोल दूँगा। तुम रोज बच्चों को वहाँ छोड़ देना और घर जाते समय अपने साथ ले जाना।” बेबी अब बच्चों को साथ लेकर आने लगी। उन्हें स्कूल में छोड़, घर आकर अपने काम में लग जाती। स्कूल से बच्चे जब उसके पास आते तो साहब कुछ न कुछ उन्हें खाने को देते। अब वह सोचने लगी कि मुझे कहीं और भी काम करना चाहिए क्योंकि इतने पैसों में क्या बच्चों को पालेगी-पोसेगी और क्या घर का किराया देगी? उसने साहब से कहा कि यदि उन्हें पता चले कि किसी को काम करने वाले की जरूरत है तो उसे बताएँ। उन्होंने कहा कि आस-पास पता कर वह उसे बताएँगे लेकिन उसे अब कहीं काम ढुँढ़ने नहीं जाना है। फिर भी उसे अपना यह घर तो छोड़ना ही होगा यह सोचकर वह अपने दादा लोगों के आस-पास ही घर ढुँढ़ने जाने लगी।