बेबी जब सुनील के बताए पते पर काम ढुँढ्ने गई तब उसने वहाँ क्या देखा?
अगले दिन बेबी काम पर आई तो दूर से ही पैंतीस-चालीस वर्ष की एक विधवा को उसी घर में काम के लिए जाते देखा। साहब बाहर पेड़ों में पानी दे रहे थे। बेबी को देखते ही वह भीतर गए और उस औरत से साफ-साफ बातें कर उसी समय उसे काम से हटा दिया। वह औरत भी बंगाली थी। बाहर आते ही उसने बेबी को गालियाँ देना शुरू कर दिया। बेबी ने कहा, देखो, मैं कुछ नहीं जानती। यदि जानती होती कि यहाँ पहले से ही कोई काम कर रहा है तो यहाँ नहीं आती। उससे कहने से कोई लाभ नहीं। तुम साहब को मेरी तरफ से जाकर बता दो कि वह इस तरह काम करने को राजी नहीं है। उसने ऐसा कुछ नहीं किया और उसे बकते-बकते चली गई। साहब आकर बेबी को भीतर ले गये और सब समझा-बुझा दिया कि क्या करना होगा, क्या नहीं करना होगा। बस उस दिन से वह अपने मन से खाना-वाना बनाकर, टेबिल पर रखकर घर जाने लगी। उसका काम देखकर घर में सभी आश्चर्य करते। एक दिन साहब ने पूछा, तुम इतना ढेर सारा काम इतने कम समय में और इतनी अच्छी तरह कैसे कर लेती हो? कहाँ सीखा तुमने यह सब? बेबी ने कहा, घर के काम में मुझे असुविधा नहीं होती क्योंकि बचपन से अभ्यास है। बचपन से ही बिना माँ के रही हूँ। उसके बाबा भी सब समय घर पर नहीं होते थे। इसी कारण उसका पढ़ना-लिखना भी नहीं हो सका।