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भवानी प्रसाद मिश्र

Question
CBSEENHN11012295

‘पिता’ कविता के आधार पर कवि की मानसिक दशा का वर्णन कीजिए।

Solution

कवि भवानी प्रसाद मिश्र को अपने परिवार से बेहद प्यार है। वह जेल में है, पर सावन के बरसते ही उसे अपने परिवार की याद आती है और सबसे अधिक वह अपने पिता को याद करता है। पिता का आकार-प्रकार, वेशभूषा का चित्र कवि की आँखों के सामने उपस्थित हो रहा है। उसे पिता की व्रज-सी भुजाएँ और मक्खन-सा हृदय भी याद आ रहा है। वह सोचता है कि पिता जी व्यायाम करके और गीता का पाठ करके जब नीचे आए होंगे और अपने पाँचवें पुत्र भवानी को नहीं देखा होगा तो उनकी आँखें भर आई होंगी। उनका स्वभाव और हृदय बरगद के वृक्ष जैसा है, जो थोड़ी-सी चोट से या पत्ता टूटने पर दूध की धारा बहाने लगता है। वे भी किसी प्रिय जन से विमुक्त होकर अश्रुधारा प्रवाह को नहीं रोक पाते हैं। वे परिवार के सभी? लोगों का विशेष ध्यान रखते हैं। उन्हें विशेष धैर्य देने की’ आवश्यकता है। कवि सावन की हवा से पिताजी को धैर्य देने की बात कहता है। सावन की झड़ी में कवि को घर की याद और भी तीव्र हो गई है।

Some More Questions From भवानी प्रसाद मिश्र Chapter

जब कि नीचे आए होंगे
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नजर में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनको पड़े होंगे।
पिता जी जिनको बुढ़ापा
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे
क्योंकि मैं उनपर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,

और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें,
मैं मजे में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,

किंतु उनसे यह न कहना
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ।
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ, मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं,
खुद ना समझुँ कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें।,

पानी के रात- भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को ‘परिताप का घर’ क्यों कहा है?

पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है?