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भवानी प्रसाद मिश्र

Question
CBSEENHN11012271

और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि अपने जेल-प्रवास में घर के एक-एक सदस्य का स्मरण करता है। यहाँ वह अपनी माँ के स्वभाव का उल्लेख कर रहा है।

व्याख्या-कवि बताता है कि जब उसके पिताजी अपने पाँचवें बेटे भवानी (कवि) को याद करके दुखी हुए होंगे तब माँ ने उन्हें ढाढ़स बँधाया होगा। उस समय माँ ने उनसे कहा होगा कि आप अपनी आँखों में आँसू लाकर क्यों दुखी होते हैं। वहाँ जेल में हमारा बेटा भवानी कुशलतापूर्वक है। वह वहाँ अच्छा है।

कवि की माँ ने पिताजी को यह कहकर समझाया होगा कि भवानी ने तुम्हारे मन की बात को समझा और अपनेपन का अनुभव करके ही वह भारत छोड़ो आदोलन में भाग लेकर जेल गया है अर्थात् मन से तुम भी ऐसा चाहते थे। उसने बिल्कुल ठीक काम किया है। यह तो तुम्हारी बनाई परंपरा का ही अनुसरण है। उसने हमारे खानदान की मर्यादा का ही पालन किया है।

हाँ, यदि वह अपना पाँव पीछे हटाता अर्थात् इस लक्ष्य से हटता तो निश्चय ही मुझे दुख होता। तब वह मेरी कोख को लजाने का काम करता अर्थात् तब मुझे शर्मिंदा होना पड़ता। वह पिताजी को समझा रही होगी कि तुम अपना दिल कच्चा मत करो। तुम्हें रोता देखकर घर के अन्य बच्चे भी रो पड़ेंगे।

तब पिताजी ने माँ की बात सुनकर यह उत्तर दिया होगा कि मैं भला कहाँ रो रहा हूँ। मैं अपना धीरज भी नहीं खो रहा हूँ। यह सब कहते हुए उन्हें अपने आपको बहुत जब्त करना पड़ा होगा। उनकी सहनशक्ति गजब की है।

विशेष: (1) इस काव्यांश में कवि ने अपनी माँ की धैर्यशीलता पर प्रकाश डाला है।

(2) ‘कोख लजाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

Some More Questions From भवानी प्रसाद मिश्र Chapter

आज पानी गिर रहा है,
बहत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है
घर नजर में तिर रहा है
घर कि मुझसे दूर है जो
घर खुशी का पुर है जो

घर कि घर में चार भाई
मायके मे ‘बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर
हाय रे परिताप के घर!
घर कि घर में सब जुड़े हैं
सब कि इतने कब जुड़े हैं
चार भाई चार बहिने
भुजा भाई प्यार बहिने

और माँ बिन - पड़ी मेरी
दु:ख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर
रख लिया तो दुख नहीं फिर
माँ कि जिसकी स्नेह- धारा
का यहाँ तक भी पसारा
उसे लिखना नहीं आता
जो कि उसका पत्र पाता।

पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता
काम में झंझा लरजता
आज गीता-पाठ करके
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर
मूठ उनकी मिला लेकर

जब कि नीचे आए होंगे
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नजर में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनको पड़े होंगे।
पिता जी जिनको बुढ़ापा
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे
क्योंकि मैं उनपर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,

और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें,
मैं मजे में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,

किंतु उनसे यह न कहना
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ।
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ, मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,