और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,
प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि अपने जेल-प्रवास में घर के एक-एक सदस्य का स्मरण करता है। यहाँ वह अपनी माँ के स्वभाव का उल्लेख कर रहा है।
व्याख्या-कवि बताता है कि जब उसके पिताजी अपने पाँचवें बेटे भवानी (कवि) को याद करके दुखी हुए होंगे तब माँ ने उन्हें ढाढ़स बँधाया होगा। उस समय माँ ने उनसे कहा होगा कि आप अपनी आँखों में आँसू लाकर क्यों दुखी होते हैं। वहाँ जेल में हमारा बेटा भवानी कुशलतापूर्वक है। वह वहाँ अच्छा है।
कवि की माँ ने पिताजी को यह कहकर समझाया होगा कि भवानी ने तुम्हारे मन की बात को समझा और अपनेपन का अनुभव करके ही वह भारत छोड़ो आदोलन में भाग लेकर जेल गया है अर्थात् मन से तुम भी ऐसा चाहते थे। उसने बिल्कुल ठीक काम किया है। यह तो तुम्हारी बनाई परंपरा का ही अनुसरण है। उसने हमारे खानदान की मर्यादा का ही पालन किया है।
हाँ, यदि वह अपना पाँव पीछे हटाता अर्थात् इस लक्ष्य से हटता तो निश्चय ही मुझे दुख होता। तब वह मेरी कोख को लजाने का काम करता अर्थात् तब मुझे शर्मिंदा होना पड़ता। वह पिताजी को समझा रही होगी कि तुम अपना दिल कच्चा मत करो। तुम्हें रोता देखकर घर के अन्य बच्चे भी रो पड़ेंगे।
तब पिताजी ने माँ की बात सुनकर यह उत्तर दिया होगा कि मैं भला कहाँ रो रहा हूँ। मैं अपना धीरज भी नहीं खो रहा हूँ। यह सब कहते हुए उन्हें अपने आपको बहुत जब्त करना पड़ा होगा। उनकी सहनशक्ति गजब की है।
विशेष: (1) इस काव्यांश में कवि ने अपनी माँ की धैर्यशीलता पर प्रकाश डाला है।
(2) ‘कोख लजाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।