पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे
क्योंकि मैं उनपर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद’ से अवतरित हैं। कवि जेल- प्रवास के दौरान अपने घर की याद करके भाव-विह्वल हो उठता है।
व्याख्या-कवि घर में अपने पिता की भावुक स्थिति की कल्पना करते हुए कहता है कि यद्यपि घर में चार बेटे और हैं, पर वे अपने पाँचवें बेटे (भवानी प्रसाद) को याद करके अवश्य दुखी होते होंगे। मैं पाँचवी बेटा ही अभागा हूँ जो उनसे दूर हूँ। मुझे वे ‘सोने पर सुहागा, कहते रहे हैं अर्थात् उन चारों बेटों में अधिक अच्छा कहते रहे हैं। ऐसा कहकर वै प्यार की री में बह जाते थे अर्थात मुझे अन्य बेटों से विशेष मानकर अधिक स्नेह देते थे।
यद्यपि उनके अन्य चार बेटे भी सोने की तरह खरे है, पर मर अभाव में उन्हें वे छोटे प्रतीत हो रहे होंगे। इसका कारण यही है कि वे मुझे ‘सोने पर सुहागा’ कहते थे अर्थात् अच्छों में अधिक अच्छा। और आज स्थिति यह है कि मैं यहाँ जेल में बँधकर बैठा हुआ हूँ। मैं पिताजी के सान्निध्य से दूर हूँ।
विशेष: (1) कवि घर में अपनी स्थिति के बारे में बताता है।
(2) ‘सोने पर सुहागा’ कहावत का सटीक प्रयोग हुआ है।
(3) सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।