किंतु उनसे यह न कहना
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ।
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,
प्रसंग- प्रस्तुत काव्य- पंक्तियाँ भवानीप्रसाद मिश्र रचित कविता ‘घर की याद’ के ‘पिता’ शीर्षक से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवि सावन को सन्देशवाहक बनाकर अपने पिता को सन्देश भेज रहा है-
व्याख्या-हे सजीले सावन! तुम घर जाकर पिता जी से यह मत कह देना कि मैं जेल में दुखी और नीरस जीवन बिता रहा हूँ। अपितु मेरी कुशलता बताकर उन्हें धीरज प्रदान करना। उनसे यह कहना कि मैं जेल में अपनी कविताएँ लिखता रहता हूँ और पत्रिकाओं के साथ अन्य प्रकार के साहित्य का भी अध्ययन कर रहा हूँ। मैं यहाँ व्यर्थ समय नहीं गँवा रहा हूँ, हर समय व्यस्त रहता हूँ। मैं यहाँ आनंदित हूँ-खेलकूद में भी अपना समय व्यतीत करता हूँ। मैं यहाँ इतना आनन्दित और मस्त हूँ कि दुखों को दूर धकेल देता हूँ। यहाँ किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। हे सावन! वहाँ जाकर पिताजी से यह मत कहना कि व्याख्या है यहाँ दुखी और उदास हूँ।
विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में भवानीप्रसाद मिश्र ने खड़ी बोली की छंदमुक्त कविता का प्रयोग किया है। भाषा सरल और जनसाधारण योग्य है। पिता के दुखी होने के भय से उन्हें वास्तविकता का ज्ञान नहीं कराना चाहता और अपनी कुशलता और मस्ती का संदेश भेजकर उन्हें धैर्य बंधाता है।