और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ, मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,
प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि सावन के माध्यम से अपने घर संदेश भिजवाता है।
व्याख्या-कवि सावन से कहता है कि तुम मेरे घर जाकर यह कहना कि तुम्हरा बेटा भवानी जेल में मजे में है। वहाँ उसे कोई कष्ट नहीं है। वह वहाँ सूत कातने में व्यस्त रहता है। इस समय उसका वजन बढ्कर 70 सेर (लगभग 63 किलो) हो गया है। वह वहाँ ढेर सारा भोजन करता है अर्थात् तुम्हारा बेटा वहाँ मजे में है, उसे कोई कष्ट नहीं है। (इससे उन्हें तसल्ली हो जाएगी।)
कवि सावन से घर जाकर यह भी कहने को कहता है कि वहाँ जाकर बताना कि तुम्हारा बेटा जेल में भी खूब खेलता -कूदता है और दुखों को आगे ठेलकर भगा देता है। वह वहाँ पूरी तरह मस्ती से रह रहा है। उसे वहाँ कोई दुख नहीं है। (यह सब कहलवाकर कवि अपने परिवारजनों को दुखी होने से बचाना चाहता है।)
कवि सावन को सावधान करते हुए कहता है कि तुम मेरे घर जाकर कुछ ऐसा- वैसा मत कह देना। उन्हें यह मत बता देना कि मैं रात भर जागता रहता हूँ और आदमियों से दूर भागता रहता हूँ अर्थात् वहाँ मेरी वास्तविक स्थिति का बखान मत कर देना।
विशेष: (1) कवि अपने दुख तकलीफ को छिपाना चाहता है, ताकि उसके परिवारजनों को कष्ट न हो।
(2) सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।