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भवानी प्रसाद मिश्र

Question
CBSEENHN11012274

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ, मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। कवि सावन के माध्यम से अपने घर संदेश भिजवाता है।

व्याख्या-कवि सावन से कहता है कि तुम मेरे घर जाकर यह कहना कि तुम्हरा बेटा भवानी जेल में मजे में है। वहाँ उसे कोई कष्ट नहीं है। वह वहाँ सूत कातने में व्यस्त रहता है। इस समय उसका वजन बढ्कर 70 सेर (लगभग 63 किलो) हो गया है। वह वहाँ ढेर सारा भोजन करता है अर्थात् तुम्हारा बेटा वहाँ मजे में है, उसे कोई कष्ट नहीं है। (इससे उन्हें तसल्ली हो जाएगी।)

कवि सावन से घर जाकर यह भी कहने को कहता है कि वहाँ जाकर बताना कि तुम्हारा बेटा जेल में भी खूब खेलता -कूदता है और दुखों को आगे ठेलकर भगा देता है। वह वहाँ पूरी तरह मस्ती से रह रहा है। उसे वहाँ कोई दुख नहीं है। (यह सब कहलवाकर कवि अपने परिवारजनों को दुखी होने से बचाना चाहता है।)

कवि सावन को सावधान करते हुए कहता है कि तुम मेरे घर जाकर कुछ ऐसा- वैसा मत कह देना। उन्हें यह मत बता देना कि मैं रात भर जागता रहता हूँ और आदमियों से दूर भागता रहता हूँ अर्थात् वहाँ मेरी वास्तविक स्थिति का बखान मत कर देना।

विशेष: (1) कवि अपने दुख तकलीफ को छिपाना चाहता है, ताकि उसके परिवारजनों को कष्ट न हो।

(2) सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

Some More Questions From भवानी प्रसाद मिश्र Chapter

पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता
काम में झंझा लरजता
आज गीता-पाठ करके
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर
मूठ उनकी मिला लेकर

जब कि नीचे आए होंगे
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नजर में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनको पड़े होंगे।
पिता जी जिनको बुढ़ापा
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे
क्योंकि मैं उनपर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,

और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें,
मैं मजे में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,

किंतु उनसे यह न कहना
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ।
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दू:ख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ, मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं,
खुद ना समझुँ कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें।,

पानी के रात- भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

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