निम्नलिखित काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला।
नीचे नील समुद मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है।
भाव-सौंदर्य-इस काव्यांश में सूर्योदय के समय समुद्र-तट के आस-पास के प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी चित्रण किया गया है। सूर्योदय के समय आकाश में बड़ा ही विचित्र दृश्य उपस्थित हो जाता है। ऊपर आकाश की नीलिमा और नीले समुद्र से एक अनोखी छटा का निर्माण हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्य के सम्मुख बादल नाच रहे हैं। इस दृश्य को देखकर कवि इतना अभिभूत हो जाता है कि वह भी बादलों की सवारी करने को इच्छुक हो उठता है।
शिल्प-सौंदर्य:
-प्रकृति के विविध रूपों का सौंदर्य देखते ही बनता है। ‘वारिदमाला के थिरकने’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।
-‘घन’ (बादल) को एक सवारी के रूप में चित्रित किया गया है।
-‘नीचे नील’, ‘बीच में बिचरूँ’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
-तत्सम शब्द-प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।