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रामनरेश त्रिपाठी

Question
CBSEENHN11012230

पथिक:
वन, - उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी।।
कैसी मधुर मनोहर उज्जल है यह प्रेम-कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है।
अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।।

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ‘पथिक’ से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनोहारी रूप को चित्रित करता है।

व्याख्या-कवि बताता है कि बाग-बगीचों, पर्वत, धरती तथा कुंज में बादल बरसने लगते हैं। इस मनोहारी दृश्य को देखकर मेरे हृदय में भी उथल-पुथल होने लगती है, भावनाओं का ज्वार आता है तथा आँखों से आँसू बह निकलते हैं। कवि अपनी पत्नी से कहता है कि समुद्र की लहरों, किनारे, तिनकों, चोटी, आकाश, किरणों तथा बादलों के ऊपर लिखी इस मधुर कहानी को पढ़ो अर्थात् इन्हें समझने का प्रयास करो। प्रकृति के ये उपादान विश्व भर को मोहित करने वाले हैं।

यह प्रेम-कहानी अत्यंत मधुर एवं पवित्र है। मेरे मन में आता है कि मैं भी इस प्रेम-कहानी के अक्षर बन जाऊँ अर्थात् मैं इसका भागीदार बनना चाहता हूँ और विश्व की वाणी बनना चाहता हूँ। यहाँ सदा आनंद प्रवाहित होता रहता है, यहाँ पवित्रता है, शांति है। यहाँ सर्वत्र प्रेम का राज्य दिखाई देता है। यह दृश्य अत्यंत ही सुंदर है।

विशेष- 1. ‘नयर नीर’, ‘मधुर मनोहर’, ‘बनूँ विश्व की बानी, शांति सुखकर, तट तृण तरु’ आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है।

2. तत्सम शब्दों की बहुलता है।

3. प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।

 

Some More Questions From रामनरेश त्रिपाठी Chapter

रामनरेश त्रिपाठी के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

पथिक:

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।
नीचे नील समुद मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है।।
रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के।।

पथिक:
निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा।
कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।
लाने को निज पुण्य- भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।।
निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।
लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है।
कहो यहाँ से बढ्कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?
अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग- भरी कल्याणी।।

पथिक:

जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है।
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद विहँस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्य। से तन को सज लेता है।
पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं।
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं।

पथिक:
वन, - उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी।।
कैसी मधुर मनोहर उज्जल है यह प्रेम-कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है।
अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।।

पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?

सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?

आशय स्पष्ट करें-
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।

आशय स्पष्ट करें-
कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

कविता में कई- स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। एसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखो।