Aroh Bhag Ii Chapter 15 विष्णु खरे
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    NCERT Solution For Class 12 Hindi Aroh Bhag Ii

    विष्णु खरे Here is the CBSE Hindi Chapter 15 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Hindi विष्णु खरे Chapter 15 NCERT Solutions for Class 12 Hindi विष्णु खरे Chapter 15 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN12026605

    विष्णु खरे का साहित्यिक परिचय दीजिए।

    Solution

    विष्णु खरे का जन्म 1940 ई. में छिंदवाड़ा (म. प्र.) में हुआ। समकालीन हिंदी कविता और आलोचना में विष्णु खरे एक विशिष्ट हस्ताक्षर हैं। उन्होंने हिंदी जगत को अत्यंत गहरी विचारपरक कविताएँ दी हैं, तो साथ ही बेबाक आलोचनात्मक लेख भी दिए हैं। विश्व-साहित्य का गहन अध्ययन उनके रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखन में पूरी रंगत के साथ दिखलाई पड़ता है। विश्व-सिनेमा के भी वे गहरे जानकार हैं और पिछले कई वर्षो से लगातार सिनेमा की विधा पर गंभीर लेखन करते रहे हैं। 1971-73 के अपने विदेश-प्रवास के दरम्यान उन्होंने तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग के प्रतिष्ठित फिल्म-क्लब की सदस्यता प्राप्त कर संसार-भर की सैकड़ों उत्कृष्ट फिल्में देखीं। यहाँ से सिनेमा-लेखन को वैचारिक गरिमा और गंभीरता देने का उनका सफर शुरू हुआ। ‘दिनमान’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दि पायोनियर’, ‘दि हिंदुस्तान’, ‘जनसत्ता’, ‘भास्कर’, ‘हंस’, ‘कथादेश’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं मे उनका सिनेमा विषयक लेखन प्रकाशित होता रहा है। वे उन विशेषज्ञों में से हैं, जिन्होंने फिल्म को समाज, समय और विचारधारा के आलोक में देखा तथा इतिहास, संगीत, अभिनय, निर्देशन की बारीकियों के सिलसिले में उसका विश्लेषण किया। अपने लेखन के द्वारा उन्होंने हिंदी के उस अभाव को थोड़ा भरने में सफलता पाई है जिसके बारे में अपनी एक किताब की भूमिका में वे लिखते हैं-”यह ठीक है कि अब भारत में भी सिनेमा के महत्व और शास्त्रीयता को पहचान लिया गया है और उसके सिद्धांतकार भी उभर आए हैं लेकिन दुर्भाग्यवश जितना गंभीर काम हमारे सिनेमा पर यूरोप और अमेरिका में हो रहा है शायद उसका शतांश भी हमारे यहाँ नहीं है। हिंदी में सिनेमा के सिद्धांतों पर शायद ही कोई अच्छी मूल पुस्तक हो। हमारा लगभग पूरा समाज अभी भी सिनेमा जाने या देखने को एक हल्के अपराध की तरह देखता है।”

    प्रमुख रचनाएँ: एक गैर रुमानी समय में, खुद अपनी आँख से, सबकी आवाज पर्दे में, पिछला बाकी (कविता-संग्रह); आलोचना की पहली किताब (आलोचना); सिनेमा पढ़ने के तरीके (सिने आलोचना); मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ (टी. एस. इलियट), यह चाकू समय (अतिला योझेफ), कालेवाला (फिनलैंड का राष्ट्रकाव्य) (अनुवाद)।

    प्रमुख पुरस्कार: रघुवीर सहाय सम्मान हिंदी अकादमी (दिल्ली) का सम्मान शिखर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ दि डेर ऑफ दि ह्वाइट रोज।

    Question 2
    CBSEENHN12026608

    यदि यह वर्ष चैप्लिन की जन्मशती का न होता तो भी चैप्लिन के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण वर्ष होता क्योंकि आज उनकी पहली फिल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के 75 वर्ष पूरे होते हैं। पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है। समय, भूगोल और सांस्कृतिक की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार-बार चार्ली का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को ‘घड़ी सुधारते’ या जूते ‘खाने’ की कोशिश करते हुए देख रहा है। चैप्लिन की ऐसी कुछ फिल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जिनके बारे में कोई जानता न था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्ष तक काफी कुछ कहा जाएगा।

    Solution
    Question 3
    CBSEENHN12026610

    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
    चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइन्सटाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर-बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फिल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है कि जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता। एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना-इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमें रहे। अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रूमानी संभावना बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरत में भारतीयता रही हो क्योंकि यूरोप के जिप्सी भारत से ही गए थे-और अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक ‘बाहरी’, ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया।

    1. चैप्लिन का क्या चमत्कार है?
    2. चैप्लिन ने क्या काम करके दिखाया?
    3. चैप्लिन का जीवन किन परिस्थितियों में बीता?
    4. नानी का उन पर क्या प्रभाव पड़ा?




    Solution

    1. चैप्लिन का सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि उनकी फिल्मों को पागल से लेकर बुद्धिमान व्यक्ति तक देखते हैं। पागलखाने का मरीज विकल मस्तिष्क वाला तथा प्रतिभासंपन्न व्यक्ति अर्थात् सभी स्तर के लोग उनकी फिल्मों को रस लेकर देखते हैं।
    2. चैप्लिन ने फिल्म कला को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान किया तथा दर्शकों की वर्ग एवं वर्ण व्यवस्था को तोड़कर दिखाया। चार्ली ने बताया कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना वह है।
    3. चैप्लिन का जीवन अत्यंत विषम परिस्थितियों में बीता। उसकी माँ परित्यक्ता एवं स्टेज की अभिनेत्री थी। चार्ली को गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे औद्योगिक घरानों एवं सामंतों से भी टक्कर लेनी पड़ी।
    4. चार्ली की नानी खानाबदोश थी। वे अपने पिता की तरफ से यहूदी वंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को ‘घुमंतू’ चरित्र के रूप में ढाल दिया।

    Question 4
    CBSEENHN12026611

    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
    चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फिल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता। एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बान में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा बदुरदुरायाजाना-इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमें रहे।

    1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
    2. चैप्लिन ने क्या युगांतरकारी परिवर्तन किए?
    3. चैप्लिन पर कौन लोग हमला करते हैं?
    4. चैप्लिन के जीवन में कौन-से मूल्य अंत तक रहे?



    Solution

    1. पाठ का नाम: चार्ली चैप्लिन यानी हम सब।
        लेखक का नाम: विष्णु खरे।
    2. चैप्लिन ने फिल्म कला को लोकप्रिय और लोकतांत्रिक बनाया। उसने दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। चैप्लिन ने इस तरह के युगांतकारी परिवर्तन किए।
    3. चैप्लिन पर वे लोग हमला करते हैं जो व्यक्ति, समूह या तंत्र के भेदभाव को नहीं मिटाना चाहते। वे समाज व कला के परंपरागत रूप को बनाए रखना चाहते हैं।
    4. चैप्लिन के निम्नलिखित जीवन-मूल्य अंत तक रहे-एक परित्यकता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का ‘बेटा’ भयंकर गरीबी तथा माँ के पागलपन से संघर्ष करना, शोषणकारी समाज द्वारा दुत्कारा जाना।

    Question 5
    CBSEENHN12026612

    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
    चार्ली पर कई फिल्म समीक्षकों ने नहीं, फिल्म कला के उस्तादों और मानविकी के विद्वानों ने सिर धुनें हैं और उन्हें नेति-नेति कहते हुए भी यह मानना पड़ता है कि चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है। दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है, जो करोड़ों लोग चार्ली को देखकर अपने पेट दुखा लेते हैं उन्हें मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की बेहद सारगर्भित समीक्षाओं से क्या लेना-देना? वे चार्ली को समय और भूगोल से काट कर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। यह कहना कि वे चार्ली में खुद को देखते हैं दूर की कौड़ी जाना है लेकिन बेशक जैसा चार्ली वे देखते हैं वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है, जिस मुसीबत में वह अपने को हर दसवें सेकंड में डाल देता है वह सुपरिचित लगती है। अपने को नहीं लेकिन वे अपने किसी परिचित या देखे हुए को चार्ली मानने लगते हैं।

    1. चार्ली पर समीक्षकों को क्या मानना पड़ता है?
    2. कला और सिद्धात के बारे में क्या बताया गया है?
    3. समीक्षक चार्ली को किस प्रकार से देखते हैं?
    4. चार्ली कैसा लगता है?



    Solution

    1. चार्ली पर फिल्म समीक्षकों तथा विद्वानों ने अपना सिर धुना है और कहा है कि चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है अर्थात् बहुत कुछ लिखा जा रहा है। पर यह सच नहीं है अभी उन पर काफी लिखा जाना शेष है।
    2. सिद्धांत कला को उत्पन्न नहीं करते। इसके विपरीत कला या तो स्वयं अपने सिद्धांत लेकर आती है या सिद्धांतों का निर्माण बाद में किया जाता है।
    3. समीक्षक चार्ली को समय और भूगोल से काटकर देखते हैं। वे जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक वैसी ही बनी हुई है जैसी पहले थी।
    4. चार्ली उन्हें जाना-पहचाना लगता है। वह अपने को हर दसवें सेकंड में जिस मुसीबत में डाल देता है वह सुपरिचित सी लगती है। वे देखे हुए व्यक्ति को चार्ली मानने लगते हैं।

    Question 6
    CBSEENHN12026615

    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
    भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं यह संसार की सारी सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बबल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की माँग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है और अधिकांशत: वह परसंताप से प्रेरित है। जो करुणा है वह अक्सर सदव्यक्तियों के लिए और कभी-कभार दुष्टों के लिए है। संस्कृत नाटकों में जो विदूषक है वह राजव्यक्तियों से कुछ बदतमीजियों अवश्य करता है, किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें भी नहीं है। अपने ऊपर हँसने और दूसरों में भी वैसा ही माद्दा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कुछ कम ही नजर आती है।

    1. भारतीय कला एवं सौंदर्यशास्त्र के बारे में क्या बताया गया है?
    2. भारतीय परपंराओं में क्या नहीं मिलता?
    3. रामायण और महाभारत का हास्य कैसा है?
    4. सस्कृंत नाटकों में विदूषक क्या काम करता है? उसमें क्या कमी नजर आती है?





    Solution

    1. भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र के बारे में यह बताया गया है कि इसमें कई रसों का उल्लेख है। इनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में पाया जाना अच्छा समझा जाता है।
    2. भारतीय परंपराओं में ऐसा रस-सिद्धांत नहीं मिलता जो करुणा को हास्य में बदल सके। जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।
    3. ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह दूसरों पर है और अधिकतर वह परसंताप से प्रेरित है। वहाँ जो करुणा है वह तो अच्छे लोगों के लिए है और कभी-कभार दुष्टों के लिए भी दिखाई दे जाती है।
    4. संस्कृत नाटकों में जो विदूषक होता है वह शासक वर्ग के व्यक्तियों के साथ बदतमीजी करता है पर उसमें करुण और हास्य का सामंजस्य नहीं होता। अपने ऊपर हँसने की क्षमता का उसमें अभाव होता है।

    Question 7
    CBSEENHN12026617

    निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये- 
    इसलिए भारत में चैप्लिन के इतने व्यापक स्वीकार का एक अलग सौंदर्यशास्त्रीय महत्व तो है ही, भारतीय जनमानस पर उसने जो प्रभाव डाला होगा उसका पर्याप्त मूल्यांकन शायद अभी होने को है। हास्य कब करुणा में बदल जाएगा और करुणा कब हास्य में परिवर्तित हो जाएगी इससे पारंपरीण या सैद्धांतिक रूप से अपरिचित भारतीय जनता ने उस ‘फिनोमेनन’ को यूँ स्वीकार किया जैसे बतख पानी को स्वीकारती है। किसी ‘विदेशी’ कला-सिद्धांत को इतने स्वाभाविक रूप से पचाने से अलग ही प्रश्न खड़े होते हैं और अंशत: एक तरह की कला की सार्वजनितकता को ही रेखांकित करते हैं।
    1. अभी चार्ली के बारे में क्या कुछ होना शेष है?
    2. क्या किसमें परिवर्तित हो जाता है?
    3. इसे भारतीय जनता किस रूप में स्वीकार करती है?
    4. हम कला की किस बात को रेखांकित करते हैं?


    Solution

    1. अभी चार्ली के भारत में व्यापक स्वीकार किए जाने का पता चला है, पर उसने भारतीय जनमानस पर जो व्यापक प्रभाव डाला है, उसका पर्याप्त मूल्यांकन होना अभी शेष है।
    2. हास्य करुणा में और करुणा हास्य में परिवर्तित हो जाता है। ऐसा कब और क्यों होता है, यह प्रश्न विचारणीय है।
    3. सैद्धांतिक रूप से अपरिचित भारतीय जनता इस फिनोमेनन (प्रघटना) को इस प्रकार स्वीकार करती है जैसे बतख पानी को स्वीकार करती है।
    4. हम एक तरह की कला की सार्वजनिकता को ही रेखांकित करते हैं।




    Question 9
    CBSEENHN12026624

    एक होली का त्योहार छोड़ दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों और लोक-संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नगर-सभ्यता में तो वह थी ही नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्त्व यह है कि वह ‘अंग्रेजों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देते हैं। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, आत्म-विश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने को ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘दूनी कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है।

    1. होली का त्यौहार किस रूप में क्या अवसर प्रदान करता है?
    2. अपने पर हंसने के सदंर्भ में लोक-सस्कृति एवं नगर-सभ्यता में मूल अतंर क्या था और क्यों?
    3. ‘अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों’ वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।
    4. चार्ली जिन दशाओं में अपने पर हंसता है, उन दशाओं में ऐसा करना अन्य व्यक्तियों के लिए संभव क्यों नहीं है?




    Solution

    1. होली का त्यौहार व्यक्ति को अपने पर हँसने तथा मौज-मस्ती करने का अवसर प्रदान करता है।
    2. अपने पर हँसने के संदर्भ में लोक-संस्कृति एवं नगर सभ्यता में मूल अंतर यह था कि लोक-संस्कृति में तो इसके अनेक अवसर थे पर नगर सभ्यता में ये अवसर मिलते ही न थे। वह एक ओढ़ी हुई गंभीरता होती है।
    3. ‘अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों’ वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ यह है कि बनावटी जिदंगी जीने वाले व्यक्तियों अर्थात् जो हैं तो भारतीय पर अंग्रेजी सभ्यता के प्रभावस्वरूप स्वयं को अंग्रेज सिद्ध करने पर तुले हुए हैं।
    4. चार्ली जिन दशाओं में अपनै पर हँसता है उन दशाओं में ऐसा करना अन्य व्यक्तियों के लिए संभव इसलिए नहीं है क्योंकि इसमें अत्यधिक आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है।

    Question 10
    CBSEENHN12026627

    लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?

    Solution

    चैप्लिन एक महान कलाकार थे। उन्होंने समाज और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया। दुनिया के अनेक लोग उन्हें पहली बार देख-समझ रहे हैं। यद्यपि पिछले 75 वर्षों में चार्ली के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, पर अभी भी बहुत कुछ कहना शेष है। अभी चैप्लिन की कुछ ऐसी फिल्में तथा रीलें मिली हैं जो कभी इस्तेमाल नहीं की गई। इनके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। अभी इनकी जाँच-पड़ताल होनी शेष है। दुनिया के लोग उन पर नए दृष्टिकोण से विचार कर रहे हैं। इन सब कामों में अभी 50 वर्षो का समय लग सकता है। अत: अभी अगले 50 वर्षो में काफी कुछ लिखा जाएगा।

    Question 11
    CBSEENHN12026629

    चैप्लिन ने न सिर्फ़ फि़ल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने और वर्ण व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?

    Solution

    लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है-फिल्मों को हर वर्ग तक पहुँचाना। चार्ली से पहले तक फिल्में एक खास वर्ग तक सीमित थीं। उनकी कथावस्तु भी एक वर्ग विशेष के इर्द-गिर्द घूमती थी। चार्ली ने समाज के निचले तबके को अपनी फिल्मों में स्थान दिया। उन्होंने फिल्म कला को आम आदमी के साथ जोड़कर लोकतांत्रिक बनाया।

    वर्ण व्यवस्था को तोड़ने से अभिप्राय है-फिल्में किसी जाति विशेष के लिए नहीं बनतीं। इसे सभी वर्ग देख सकते हैं।

    हम लेखक की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। कला सभी के लिए होती है। इस पर किसी वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं होना चाहिए।

    Question 12
    CBSEENHN12026630

    लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?

    Solution

    लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर को कहा। राजकपूर की फिल्म ‘आवारा’ सिर्फ ‘दि ट्रैम्प’ का शब्दानुवाद ही नहीं थी बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही था। राजकपूर ने चैप्लिन की नकल करने के आरोपों की कभी परवाह नहीं की।

    महात्मा गाँधी से चार्ली का खासा पुट था। एक समय था जब गाँधी और नेहरू दोनों ने चार्ली का सान्निध्य चाहा था। उन्हें चार्ली अच्छा लगता था। वह उन्हें हँसाता था।

    Question 13
    CBSEENHN12026632

    लेखक ने कलाकृति और रस के इसके संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण ने सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?

    Solution

    लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को श्रेयस्कर माना है। कुछ रसों का किसी एक कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर माना जाता है। जीवन में हर्ष और विषाद तो आते रहते हैं। करुण रस का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस की माँग करता है जो भारतीय परंपरा में नहीं मिलता।

    ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं जब कई रस एक साथ आ जाते हैं। जंगल में नायक-नायिका प्रेमालाप कर रहे हैं। इसमे कार रस है, पर यदि उसी समय शेर आ जाए तो यही औघर रस भय में बदल जाता है तथा भयानक रस जन्म ले लेता है

    वीर रस के प्रयोग स्थल पर रौद्ररस का आ जाना सामान्य सी बात है। भगवान की भक्ति करते समय शांत रस का परिपाक होता है पर हँसी की बात आ जाने पर हास्य रस की सृष्टि हो जाती है।

    Question 14
    CBSEENHN12026634

    जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को। कैसे संपन्न बनाया?

    Solution

    चार्ली ने जीवन में जद्दोजहद बहुत की थी। उनकी माँ परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थी। चार्ली को भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूँजीपति वर्ग तथा सामंतशाहों ने भी दुत्कारा। वे नानी की तरफ से खानाबदोशों के साथ जुड़े हुए थे। अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे।

    इन जटिल परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया। इस संघर्ष के दौरान उन्हें जो जीवन-मूल्य मिले, वे उनके धनी होने के बावजूद अंत तक कायम रहे। उनके संघर्ष ने उनके व्यक्तित्व में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों का समावेश कर दिया। उसका व्यक्तित्व इस रूप में ढल गया जो अपने ऊपर हँसता है।

    Question 15
    CBSEENHN12026636

    चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?

    Solution

    चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में त्रासदी करुणा और हास्य का अनोखा सामंजस्य देखने को मिलता है।

    ऐसा सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में नहीं आता। इसका कारण यह है कि भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में करुणा का हास्य में बदल जाना नहीं मिलता। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है, अपने पर नहीं। इनमें दर्शाई गई करुणा प्राय: सद्व्यक्तियों के लिए है और कभी-कभार दुष्टों के लिए भी है। संस्कृत नाटकों का विदूषक कुछ बदतमीजियाँ अवश्य करता है किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें नहीं होता।

    Question 16
    CBSEENHN12026637

    चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हंसता है?

    Solution

    चार्ली सबसे ज्यादा पर स्वयं तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ रूप में दिखाता है। तब यह समझिए कि कुछ ऐसा हुआ ही चाहता है कि यह सारी गरिमा सुई चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।

    Question 17
    CBSEENHN12026639

    आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?

    Solution

    हमारे विचार से मूक फिल्मों में ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है क्योंकि इनमें भाषा का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए ज्यादा-से-ज्यादा मानवीय होना पड़ता है। सवाक् फिल्मों के कॉमेडियन चार्ली तक नहीं पहुँच पाए। इसकी पड़ताल होनी बाकी है। मूक फिल्मों में सिर्फ हाव-भाव से ही अपनी बात कही जाती है जबकि सवाक् फिल्मों में आधा काम तो संवाद ही कर देते हैं। मूक अभिनय से दूसरों को हँसाना तो और भी कठिन काम है।

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    Question 18
    CBSEENHN12026641

    सामान्यत: व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब-

    (क) आप अपने ऊपर हँसे हो ;

    (ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।

    Solution

    (क) एक बार मैंने दूसरे को बेवकूफ बनाने का प्रयास किया। उसने मुझे ही बेवकूफ बना दिया तब मुझे अपने ऊपर ही हँसी आ गई।

    (ख) एक बार की बात है कि किसी मित्र की हँसी उड़ा रहा था और उस पर हँस रहा था। उसे यह बात इतनी चुभ गई कि वह बेहोश होकर गिर पड़ा। तब मेरा हास्य करुणा में बदल गया। मुझे उसकी दशा पर बड़ी दया आई।

    Question 19
    CBSEENHN12026642

    चार्ली हमारी वास्तविकता हे, जबकि सुपरमैन स्वप्न आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते है?

    Solution

    चार्ली के अभिनय को देखकर लगता है कि अभिनय न होकर वास्तविकता है। सुपरमैन की संकल्पना स्वप्न जैसी है। मूलत: हम सभी चार्ली हैं। हम सुपरमैन हो ही नहीं सकते।

    हम इन दोनों में खुद को चार्ली के निकट पाते हैं क्योंकि वह हमारे जैसा है।

    Question 21
    CBSEENHN12026645

    आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज चार्ली चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बाजार में चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?

    Solution

    आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज चार्ली चैप्लिना उपयोग मेहमानों के अभिनंदन और हँसी-मजाक के रूप में किया जाता है।

    Question 23
    CBSEENHN12026651

    नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को पाठ के संदर्भ मे स्पष्ट कीजिए:

    (क) सीमाओं से खिलवाड़ करना

    (ख) समाज से दुरदुराया जाना

    (ग) सुदूर रूमानी संभावना

    (घ) सारी गरिमा सुई-चुभे गुब्बारे के जैसी फ़ुस्स हो उठेगी।

    (ङ) जिसमें रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।

    Solution

    (क) सीमाओं से छेडछाड नहीं करनी चाहिए।

    (ख) चार्ली को समाज से दुरदुराया गया था।

    (ग) तुम्हारे बारे में जानने की एक सुदूर रूमानी संभावना बनी हुई है।

    (घ) सारा बड़प्पन एक दम ऐसे निकल जाएगा जैसे सुई चुभने से गुब्बारा फुस्स हो जाता है।

    (ङ) रोमांस बीच में ही खत्म हो जाता है।

    Question 24
    CBSEENHN12026653

    दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।

    Solution

    कला के सिद्धांत बाद में गढ़े जाते हैं। कला तो भावों का सहज उच्छृंखल (Spontaneous overflow of emotions) होती है। उसे बाँधकर नहीं रखा जा सकता।

    Question 29
    CBSEENHN12026662

    चार्ली की वह क्या विशेषताएँ हैं जिन्हें अन्य कॉमेडियन छू तक नहीं पाए? चार्ली हमें कैसे लगते हैं?

    Solution

    चार्ली की अधिकांश फिल्में भाषा का इस्तेमाल नहीं करतीं इसलिए उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा मानवीय होना पड़ा। सवाक् चित्रपट पर कई बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन वे चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक नहीं पहुँच पाए। चार्ली का चिर-युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेषता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। यानी उनके आसपास जो भी चीजें, अड़ंगे, खलनायक, दुष्ट औरतें आदि रहते हैं वे एक सतत ‘विदेश’ या ‘परदेस’ बन जाते हैं और चैप्लिन ‘हम’ बन जाते हैं। चार्ली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह ‘मैं’ भी हो सकता हूँ, लेकिन ‘मैं’ से ज्यादा चार्ली हमें ‘हम’ लगते हैं।

    Question 30
    CBSEENHN12026665

    भारतीय परंपरा में अपने पर हँसने की क्या स्थिति है? इस क्षेत्र में चार्ली का भारत में क्या महत्त्व है?

    Solution

    एक होली का त्योहार छोड दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति की अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों और लोक-संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नागर-सभ्यता में बिल्कुल नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्व यह है कि वह ‘अंग्रेजों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देता है। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्म-विश्वास से लबरेज, सफलता, सम्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है। तब यह समझिए कि कुछ ऐसा हुआ ही चाहता है कि यह सारी गरिमा, सुई-चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।

    Question 31
    CBSEENHN12026666

    चार्ली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली दूसरी घटना का उल्लेख कीजिए। इसके बारे में चार्ली ने आत्मकथा में क्या लिखा है?

    Solution

    चार्ली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली दूसरी घटना भी कम मार्मिक नहीं थी। बालक चार्ली उन दिनों एक ऐसे घर में रहता था जहाँ से कसाईखाना दूर नहीं था। वह रोज सैकड़ो जानवरों को वहाँ ले जाया जाता देखता था। एक बार एक भेड़ किसी तरह जान छुड़ाकर भाग निकली। उसे पकड़ने वाले उसका पीछा करते हुए कई बार फिसले, गिरे और पूरी सड़क पर ठहाके लगने लगे। आखिरकार उस गरीब जानवर को पकड़ लिया गया और उसे फिर कसाई के पास ले जाने लगे। तब चार्ली को अहसास हुआ कि उस भेड़ के साथ क्या होगा। वह रोता हुआ माँ के पास दौड़ा, ‘उसे मार डालेंगे, उसे मार डालेंगे।’ बाद में चैप्लिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-वसंत की वह बेलास दोपहर और वह मजाकिया दौड़ कई दिनों तक मेरे साथ रही; और मैं कई बार सोचता हूँ कि उस घटना ही ने तो कहीं मेरी भावी फिल्मों की भूमिका तय नहीं कर दी थी-त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों के सामंजस्य की।

    Question 32
    CBSEENHN12026668

    राजकपूर ने किस बात से प्रेरित होकर फिल्मों में क्या प्रयोग किया?

    Solution

    राजकपूर ने चार्ली के नितांत अभारतीय सौंदर्यशास्त्र की इतनी व्यापक स्वीकृति देखकर भारतीय फिल्मों का एक सबसे साहसिक प्रयोग किया। उनकी फिल्म ‘आवारा’ सिर्फ ‘दि ट्रैंप’ का शब्दानुवाद ही नहीं थी बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही था। राजकूपर ने चैप्लिन की नकल करने के आरोपों की कभी परवाह नहीं की। राजकपूर के ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ के पहले फिल्मी नायकों पर हँसने की और स्वयं नायकों के अपने पर हँसने की परपरा नहीं थी। 1953-57 के बीच जब चैप्लिन अपनी गैर-ट्रैंपनुमा अंतिम फिल्में बना रहे थे तब राजकपूर चैप्लिन का युवा. अवतार ले रहे थे।

    Question 33
    CBSEENHN12026669

    इस पाठ में किन-किन भारतीय अभिनेताओं का तथा उनकी किन फिल्मों का नामोल्लेख हुआ है? क्यों? महाभारत के किस प्रसंग का उल्लेख हुआ है?

    Solution

    इस पाठ में दिलीप कुमार (बाबुल, शबनम कोहिनूर, लीडर, गोपी), देव आनंद (नौ दो ग्यारह, फंटूश, तीन देवियाँ), शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन (अमर अकबर एँथनी) तथा श्रीदेवी तक किसी-न-किसी रूप से चैप्लिन का कर्ज स्वीकार कर चुके हैं। बुढ़ापे में जब अर्जुन अपने दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से न बचा सके और हवा में तीर चलाते रहे तो यह दृश्य करुण और हास्योत्पादक दोनों था किंतु महाभारत में सिर्फ उसकी त्रासद व्याख्या स्वीकार की गई। इससे पता चलता है कि यहाँ चूक हो गई।

    Question 34
    CBSEENHN12026670

    अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम क्या होते हैं?

    Solution

    अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली हो होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम कर्त्तव्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलत: हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।

    Question 35
    CBSEENHN12026672

    भारतीय जनता ने चार्ली के किस ‘फिनोमेनन’ को स्वीकार किया? उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    भारतीय जनता ने चार्ली के इस ‘फिनोमेनन’ को स्वीकार कर लिया कि स्वयं पर हँसना और अपने आपकी बनावट और गरिमा को ठेस पहुँचाकर सबको हँसाना भारतीयों ने ऐसे स्वीकार किया जैसे बतख पानी को। उदाहरण जॉनीवाकर, राजकपूर, दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर आदि।

    लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर को कहा। राजकपूर की फिल्म ‘आवारा’ सिर्फ ‘दि जै’ का शब्दानुवाद ही नहीं थी बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही था। राजकपूर ने चैप्लिन की नकल करने के आरोप की कभी परवाह नही की।

    महात्मा गाँधी से चार्ली का खासा पुट था। एक समय था जब गाँधी और नेहरू दोनों ने चार्ली का सान्निध्य चाहा था। उन्हें चार्ली अच्छा लगता था। वह उन्हें हँसाता था।

    Question 36
    CBSEENHN12026674

    चार्ली का चरित्र-चित्रण कीजिए।

    Solution

    चार्ली दुनिया के महान् हास्य अभिनेता और निर्देशक थे। वे एक परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री के बेटे थे। जब उनकी माँ पागलपन का शिकार हो गई तब उन्होंने जीवन से बहुत संघर्ष किया। उन्होंने अत्यंत गरीबी में जीवन बिताया। साम्राज्य पूँजीवाद और सामंतशाही से मगरूर समाज ने इनको दुत्कारा लेकिन इन्होंने जीवन से हार नहीं मानी। चार्ली का चिर युवा होना था। बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। चार्ली ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को भी तोड़ा।

    Question 37
    CBSEENHN12026675

    चार्ली की कौन-कौन सी फिल्में उच्चतर अहसास की माँग करती हैं?

    Solution

    चार्ली की अधिकांश फिल्में बुद्धि की अपेक्षा भावनाओं पर टिकी हुई हैं। मैट्रोपोलिस, कैबिनेट ऑफ डॉक्टर कैलिगारी, द रोवैथ सील, लास्टइयर इन मारिएबाड्, द सैक्रिफाइस जैसी उत्कृष्ट फिल्में उच्चतर अहसास की माँग करती हैं।

    Question 38
    CBSEENHN12026676

    ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ पाठ के कथ्य का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।

    Solution

    विश्व सिनेमा के विकास में चार्ली चैप्लिन का एक महान अभिनेता के रूप में बहुत बड़ा योगदान है। यह पाठ उस महान अभिनेता के भीतर के इनसान को जानने का अवसर देता है। साधारण की अपार धारण क्षमता और उसके धुआँते नायकत्व को अपने ढंग से चार्ली चैप्लिन से जुड़े नाटक और फिल्में पकड़ते रहे हैं। हास्य फिल्मों के महान अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैप्लिन पर रचित इस पाठ में लेखक ने चार्ली के कला कर्म की कुछ मूलभूत विशेषताओं को रेखांकित किया है। करुणा और हास्य के तत्वों का सामंजस्य चार्ली की सबसे बड़ी विशेषता रही है। चार्ली की लोकप्रियता यह तय करती है कि कला स्वतंत्र होती है, बँधती नहीं। पूरे पाठ में चार्ली चैप्लिन के जादू की व्याख्या की गई है।

    Question 39
    CBSEENHN12026678

    चार्ली चैप्लिन कैसे व्यक्ति थे?

    Solution

    चाचार्ली चैप्लिन बहुत हँसमुख व्यक्ति थे। वे बहुत सुलझे हुए थे। वे हमेशा खुद पर हँसते थे। खुद पर हँसना बेहद कठिन काम है पर इसे चार्ली ने कर दिखाया। वे फिल्मों में गंभीर विषय पर भी स्वयं पर ही हँसते थे। उनकी फिल्मों मे हास्य तथा करुणा के भाव-परिवर्तन का पता नहीं चलता था। उन्होंने हर वर्ग को अपनी फिल्मों में स्थान दिया।

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