निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं यह संसार की सारी सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बबल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की माँग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है और अधिकांशत: वह परसंताप से प्रेरित है। जो करुणा है वह अक्सर सदव्यक्तियों के लिए और कभी-कभार दुष्टों के लिए है। संस्कृत नाटकों में जो विदूषक है वह राजव्यक्तियों से कुछ बदतमीजियों अवश्य करता है, किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें भी नहीं है। अपने ऊपर हँसने और दूसरों में भी वैसा ही माद्दा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कुछ कम ही नजर आती है।
1. भारतीय कला एवं सौंदर्यशास्त्र के बारे में क्या बताया गया है?
2. भारतीय परपंराओं में क्या नहीं मिलता?
3. रामायण और महाभारत का हास्य कैसा है?
4. सस्कृंत नाटकों में विदूषक क्या काम करता है? उसमें क्या कमी नजर आती है?
1. भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र के बारे में यह बताया गया है कि इसमें कई रसों का उल्लेख है। इनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में पाया जाना अच्छा समझा जाता है।
2. भारतीय परंपराओं में ऐसा रस-सिद्धांत नहीं मिलता जो करुणा को हास्य में बदल सके। जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।
3. ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह दूसरों पर है और अधिकतर वह परसंताप से प्रेरित है। वहाँ जो करुणा है वह तो अच्छे लोगों के लिए है और कभी-कभार दुष्टों के लिए भी दिखाई दे जाती है।
4. संस्कृत नाटकों में जो विदूषक होता है वह शासक वर्ग के व्यक्तियों के साथ बदतमीजी करता है पर उसमें करुण और हास्य का सामंजस्य नहीं होता। अपने ऊपर हँसने की क्षमता का उसमें अभाव होता है।