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भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका भरिए।
अवस्थिति क्षेत्र
अवस्थिति क्षेत्र- रायगंज से 3 किलोमीटर की दूरी पर, शाहपुर के नजदीक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश।
भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गांव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका भरिए।
भूमि का उपयोग( हेक्टेयर में )
कृषि भूमि | भूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है (निवास स्थानों,सड़कों, तालाबों, चरगाहों आदि के क्षेत्र) | |
सिंचित | असिंचित | |
26 हेक्टेयर |
भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में) :200 हेक्टेयर
कृषि भूमि | भूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है (निवास स्थानों, सड़कों, तालाबों, चरगाहों आदि के क्षेत्र) | |
सिंचित | असिंचित | |
200 | - | 26 हेक्टेयर |
भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गांव का सर्वेक्षण किया जाता हैl पालमपुर से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका भरिएl
शैक्षिक | |
चिकित्सा | |
बाजार | |
बिजली पूर्ति | |
संचार | |
निकटतम कस्बा |
सुविधाएँ
शैक्षिक | 2 प्राथमिक विद्यालय और उच्च विद्यालय |
चिकित्सा | एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एक निजी औषद्यालय |
बाजार | रायगंज (पालमपुर से किलोमीटर की दूरी पर) |
बिजली पूर्ति | हाँ, अधिकांश घरो में बिजली पूर्ति |
संचार | - |
निकटतम कस्बा | शाहपुर |
खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसी अधिक आगतों की आवश्यकता होती है जिन्हें उद्योग में विनिर्मित किया जाता है, क्या आप सहमत है?
हाँ, मैं इस कथन से पूरी तरह सहमत हूँ कि खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसी अधिक आगतों अथवा साधनों की आवश्यकता होती है जिन्हें उद्योग में विनिर्मित किया जाता है। उदाहरण के लिए कटाई के लिए हार्वेस्टर, जुदाई के लिए ट्रैक्टर, गहराई के लिए थ्रेशर, खेती की मशीनों के ईंधन के लिए डीजल, अधिक उपज के लिए रासायनिक खाद,फसलों की बीमारियों के लिए कीटनाशक, सिंचाई के लिए पंपिंग सेट के साथ-साथ डैम, नहरों आदि के लिए इलेक्ट्रिक उपकरण एवं मशीनरी औजार आदि ये सभी उद्योगों में ही में निर्मित किए जाते हैं।
पालमपुर में बिजली के प्रसार में किसानो की किस तरह मदद की?
क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है? क्यों?
हाँ, सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है क्योंकि-
(i) कई क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा नहीं होती, यह अनिश्चित होती है। पठारी क्षेत्र जैसे दक्षिणी पठार और मध्यभारत, पंजाब, राजस्थान आदि ऐसे क्षेत्र है जहाँ कम वर्षा होती है। इन क्षेत्रों में सिंचाई बहुत आवश्यक है इसके बिना यहां खेती प्राय असंभव है।
(ii) कई क्षेत्र ऐसी भी है जहां पर्याप्त वर्षा तो होती है पर यह वर्ष के कुछ दिनों तक ही केंद्रित होती है। वर्ष का बाकि भाग सूखा ही रहता है। अतः इन क्षेत्रों में सिंचाई वर्ष में एक से अधिक फैसले उगने में लाभदायक होंगी।
(iii) इसके अतिरिक्त धान, गेहूं,गन्ना जैसे कुछ खाद्य और नगदी फसलों के लिए जल की पर्याप्त एवं निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
(iv) इसके साथ ही अधिक उपज देने वाली एच.वाई.वी बीजों के लिए भी अधिक जल की जरूरत होती है।
(v) तेजी से बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकता को देखते हुए कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई एक अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(vi) सिंचाई से उर्वकता को तो बढ़ाया ही जा सकता है साथ ही इससे खतरनाक कीटनाशो से भी बचा जा सकता है।
पालमपुर में 450 परिवारों में भूमि के वितरण की एक सारणी बनाइएl
पालमपुर के 450 परिवारों में भूमि का वितरण-
किसानों के प्रकार | परिवारों की संख्या | अधिकृत भूमि |
भूमिहीन किसान |
150 (अधिकांश दलित) 240 60 - |
भूमिहीन
|
कुल | 450 परिवार | - |
पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से कम क्यों है?
पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से कम है। यह डाला की स्थिति से स्पष्ट हो जाता है। सरकार ने खेतिहर श्रमिकों के लिए एक दिन की मजदूरी 60 रु. निर्धारित की है। लेकिन डाला को सिर्फ 35-40 रु. ही मिलते हैं। इसके कारण इस प्रकार है:
(i) खेतिहर मजदूर गरीब और असहाय परिवारों से आते है। वे दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं उन्हें नियमित रुप से काम ढूंढना पड़ता है। पालमपुर में खतिहर श्रमिक बहुत ज्यादा है और उनकी मांग काम है इस कारण उनके बीच पर्तिस्पर्धा ज्यादा है। जिससे पालमपुर में खेतिहर श्रमिक न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी पर भी काम करने को तैयार हो जाते है।
(ii) अधिकांश खेतिहर श्रमिक निचली जाति और दलित वर्गों से होते हैं और उनमें भूमि मालिकों से ऊँची मजदूरी मांगने की हिम्मत नहीं होती है।
(iii) खेतिहर श्रमिक समान्यतः अशिक्षित होते हैं। अतः वे ऊँची मजदूरी सुनिश्चित करने के लिए भूमि मालिकों से मोल-भाव नहीं कर पाते।
अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिएl खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगे मजदूरो में से किसी को चुनेl उन्हें कितनी मजदूरी मिलती है? क्या उन्हें नगद पैसा मिलता है या वस्तु रूप में? क्या उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है? क्या वे कर्ज से में ?
मेने अपने क्षेत्र के दो खेतिहर श्रमिक रामू और राधा से बात की। उन्होंने मुझे निम्लिखित जानकारी दी
मैंने रामू और राधा से कहा, 'आप कितनी मज़दूरी प्राप्त करते हैं?'
उन्होंने कहा, 'हमें केवल ₹ 35-40 ही मिलते हैं।
मैंने उनसे पुन: पूछा, 'आपका मजदूरी नकद में मिलती है या वस्तु में?'
उन्होंने कहा, 'हमें मजदूरी कभी नकद में और कभी वस्तु, जैसे-अनाज के रूप में मिलती हैं।'
मैंने कहा, 'क्या आप लोगों को नियमित रूप से काम मिलता है?
उन्होंने जवाब दिया, 'नहीं, पिछले वर्ष हमने वर्ष-भर में लगभग 200 दिन ही काम किया।'
अंत में मैंने पूछा, 'क्या आप ऋणग्रस्त हैं?'
रामू ने कहा, 'जब खेतों में कोई काम नहीं था तो मैंने स्थानीय साहूकार से 3000 रु का ऋण लिया। ईश्वर ही जनता है कि मैं उसे अब कैसे चूका पाउँगा।' राधा ने कहा, 'मैंने पिछले वर्ष गाँव के साहूकार से 2000 रु का ऋण लिया था। इसलिए उसने मुझे आगे ऋण देने से मना कर दिया है।'
इस प्रकार, मैंने अपने क्षेत्र मैं देखा कि:
(i) उन्हें 35-40 रु. प्रति दिन की मजदूरी मिलती हैl
(ii) उन्हें भुगतान नकद के रूप में किया जाता है।
(iii) वे नियमित रूप से काम नहीं करते हैंl उन्हें आधे साल के बेरोजगार रहना पड़ता हैl
(iv) हां, वे कर्ज में हैंl
एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के लिए अलग-अलग कौन से तरीके हैं? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिएl
एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके निम्नलिखित है-
(i) आधुनिक सिंचाई सुविधाओं का उपयोग करके एक ही भूमि पर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
(ii) एच.आई.वी. बीज का उपयोग करके भी एक ही भूमि पर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
(iii) उर्वरकों का उपयोग करके तथा रासायनिक खाद और कीटनाशकों जैसे रसायनों का उपयोग करके उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है।
(iv) आधुनिक मशीनरी जैसे ट्रैक्टर, संयोजक, थ्रेसर, ड्रिलिंग मशीन, मोटर्स आदि का उपयोग करके भी उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
(v) बिजली-चलित नलकूपों से सिचाई करके उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण: पालमपुर में, पारंपरिक किस्मों से उगाई गई गेहूं की पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थीl परन्तु एच.आई.वी. बीजों से उपज 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयरहो गई। इस प्रकार गेहूं के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई थी।
एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
एक हेक्टेयर भूमि उस वर्ग के क्षेत्र के बराबर होती है, जिसके एक पक्ष का माप 100 मीटर हो। मान लेते हैं कि एक किसान अपनी एक हेक्टेयर भूमि पर गेहूँ की खेती करने की योजना बना रहा है। इसके लिए:
(i) उसे बीज, खाद, कीटनाशक के साथ-साथ जल और खेती के लिए अपने उपकरण की मरम्मत करने के लिए कुछ नकदी की आवश्यकता होगी। यह अनुमान किया जा सकता है कि उसे कार्यशील पूँजी के लिए ₹3000 की जरूरत होगी जिसके लिए उसे कर्ज लेना पड़ेगा।
(ii) क्योंकि उसके पास भूमि कम है इसलिए उसे बड़े किसानों के खेतों में कठिन शर्तो पर खेतीहर श्रमिकों के रूप में काम करना पड़ेगा।
(iii) उसे अपने घर के कामों को भी करना पड़ेगा।
(iv) ऐसी स्थिति में जब उसके पास खेती-बाड़ी का काम नहीं होता तो वह गैर-कृषि कार्य भी करता है।
मझोले और बड़े किसान कृषि के लिए कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं? वह छोटे किसानों से कैसे भिन्न है?
(i) मझोले और बड़े किसान अपनी खुद की बचत से या बैंकों से कृषि के लिए पूंजी प्राप्त करते हैं। वे वर्ष-प्रतिवर्ष की बचत को जोड़कर अपनी स्थिर पूँजी को भी बढ़ाते हैl
(ii) दूसरी ओर, छोटे किसानों को कृषि के लिए पूँजी हेतु बड़े किसानों, गाँव के साहूकार या व्यपारियों से उधार लेना पड़ता हैl
सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?
सविता को कठोर शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला:
(i) तेजपाल सिंह जो की एक बड़ा किसान है। उसने सविता को ऋण तो दिया किन्तु ब्याज की बहुत ऊँची दर पर दिया। उसने सविता को चार महीनों के लिए 24% की ब्याज दर पर ब्याज दिया।
(ii) सविता को यह भी वचन देना पड़ा कि वह कटाई के मौसम में उसके खेतों के लिए एक श्रमिक के रूप में 35 रू प्रतिदिन पर काम करेगी। यह मजदूरी बहुत कम है।
(iii) निश्चित रूप से बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती। ब्याज की दर कम होने पर वह आसानी से कर्ज चुका पाती और उसे तेजपाल सिंह के लिए खेतिहर मजदूर के रूप में कठिन परिश्रम भी नहीं करना पड़ता।
अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिये और पिछले 30 वर्षो में सिंचाई और उत्पादन के तरीको में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए।
मैंने अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात करके पिछले 30 वर्षो में सिंचाई और उत्पादन के तरीको में हुए परिवर्तनों के विषय पर जानने की कोशिश की जिससे मुझे निम्लिखित जानकारी मिली:
(i) पहले कृषि केवल बारिश पर निर्भर थी। उत्पादन की विधि भी परंपरागत थी, एच.वाई.वी. की तकनीक नहीं थी। इसलिए उत्पादन उपज बहुत कम थी। लेकिन अब इस क्षेत्र में सरकार के प्रयासों से लोग बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक आदि जैसे विभिन्न प्रकार के सिंचाई विधियों और एच.वाई.वी तकनीकों का उपयोग करते हैं और इस क्षेत्र में उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई है।
(ii) पहले गोबर और दूसरी प्राकृतिक खाद का प्रयोग होता था। परन्तु अब रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग होता है।
(iii) रहट या मिट्टी के बर्तनों के स्थान पर अब प्रायः पम्पिंग सेट प्रयोग किये जाते है।
(iv) बैलों के स्थान पर टेक्टरों और थ्रेशरों का प्रयोग किया जाता है।
आपके क्षेत्र में कौन-से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इसकी एक संक्षिप्त सूची बनाइएl
हमारे क्षेत्र में निम्नलिखित गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे है:
(i) डेयरी- लोग गायों और भैसों को पालते है और उनका दूध बेचते है।
(ii) लघु स्तरीय विनिर्माण- विनिर्माण कार्य पारिवारिक श्रम की सहयता से अधिकतर घरों या खेतों में किया जाता है इसमें गुड़ बनाने,मिट्टि के बर्तन आदि का काम शामिल है।
(iii) दुकानदारी- हमारे क्षेत्र के कुछ लोग दुकानदारी का काम करते है। वे थोक बाजारों से सामान लेकर उन्हें गावँ में लाकर दुकानों पर बेचते है।
(iv) परिवहन- हमारे क्षेत्र में कुछ लोग परिवहन सेवाओं में भी लगे है। इनमे रिक्शेवाला, ट्रक ड्राइवर, ट्रेक्टर, जीप और दूसरी गाड़िया चलने वाले शामिल है।
गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए क्या किया जा सकता है?
गाँवों में अधिकांश लोग कृषि कार्य करते है। केवल 1/4 लोग ही गैर-कृषि की अपेक्षा कम भूमि की आवश्यकता होती है। गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए निम्लिखित कदम उठाये जा सकते है:
(i) गाँव में गैर कृषि क्रियाएं बढ़ाने की कई संभावनाएं हैं। इस कार्य के लिए कृषि की अपेक्षा कम भूमि की आवश्यकता होती है।
(ii) अधिकांश लोग बैंक से ऋण लेते हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि ग्रामीणों को ब्याज कम दर पर आसानी से उपलब्ध कराया जाए।
(iii) गैर-कृषि कार्यों के लिए प्रसार के लिए यह भी आवश्यक है कि ऐसे बज़ार हो जहां वस्तुएँ व सेवाएँ बेची जा सके इसके विभिन्न उत्पादकों, दुकानदारों और ग्राहकों में सकरात्मक प्रतियोगिता सिद्ध होगी।
(vi) छोटे थोक बाजार पालमपुर जैसे कुछ गाँवों में खोले जा सकते हैं। इससे छोटे-छोटे स्टोर चलाने वाले लोगों के समय और पैसे दोनों की बचत होगी। गाँवों के लोगो को छोटी-छोटी वस्तुएँ खरीदने के लिए शहर में नहीं जाना पड़ेगा।
(vii) गाँवों में सस्ती परिवहन व्यवस्था उपलब्ध करनी चाहिएl पालमपुर में रिक्शेवाले, तांगेवाले आदि जैसे अनेक परिवहन साधन उपलब्ध है। इस प्रकार के अनेक परिवहन के साधन भी विकसित किए जा सकते हैं।
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