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NCERT Solutions for Class 12 Help.html Aroh Bhag Ii Chapter 11 महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा Here is the CBSE Help.html Chapter 11 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Help.html महादेवी वर्मा Chapter 11 NCERT Solutions for Class 12 Help.html महादेवी वर्मा Chapter 11 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Help.html.

Question 1
CBSEENHN12026459

महादेवी वर्मा के जीवन का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम एवं साहित्यिक वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए तथा भागा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।

Solution

जीवन-परिचय: महादेवी वर्मा आधुनिक हिन्दी काव्यधारा की अन्यतम कवयित्री हैं। उनका जन्म 1907 ई में फर्रूखाबाद (उ .प्र.) में हुआ। आधुनिक हिन्दी साहित्य के तीन युग उनकी रचनाधर्मिता से विभूषित रहे हैं। छायावाद युग से लेकर आज तक उन्होंने हिन्दी साहित्य को अनेकविध रूपों में समृद्ध एवं समुन्नत किया है। वे उच्च कोटि की विदुषी एवं धार्मिक तथा संस्कारनिष्ठ महिला हैं। एक लम्बे समय तक वे आचार्य के सम्मानजनक पद पर कार्यरत रहीं। प्रयाग उनका कर्मक्षेत्र रहा। हिंदी साहित्य जगत् में उनकी अपूर्व सेवाओं के लिए उन्हें ‘यामा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। यह महादेवी का ही नही हिन्दी साहित्य का गौरव है कि उक्त पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने आपको ‘परभू-गुण’ से सम्मानित किया। 1987 ई में इनका निधन हुआ।

साहित्य सर्जना (रचनाएँ): महादेवी एक उच्च कोटि की रहस्यवादी-छायावादी कवयित्री हैं। उनकी काव्य रचनाएँ हैं-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा। आधुनिक कविता भाग-1, संधिनी और परिक्रमा उनके अन्य काव्य संकलन हैं जिनमें संकलित कविताएँ नीहार, रश्मि, नीरजा आदि से ली गई हैं। इनके अतिरिक्त महादेवी ने गद्य में भी उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ की हैं।

महादेवी के निबंध संग्रह हैं-श्रृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा, संकल्पिता तथा ‘भारतीय संस्कृति के स्वर’। उनके संस्मरणात्मक रेखाचित्रों के संकलन हैं-’अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ, ‘पथ के साथी और ‘मेरा परिवार’।

साहित्यिक वैशिष्य: महादेवी मूलत: अपनी छायावादी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने छायावाद को नई चेतना और नये मूल्यों में मंडित किया। उनकी भाषा, उनकी अभिव्यक्ति अप्रस्तुत विधान के अत्यंत मनभावने सौंदर्य से समन्वित है। महादेवी ने लोक-धुनो को शास्त्रीय संगीत की राग-रागनियों में ढाला है। महादेवी के गीतों को आँसू से भीगे हुए गीतों की संज्ञा दी गई है। उनकी रचनाओ में माधुर्य, मार्दव प्रांजलता, एक अबूझ ऊष्मा, करुणा, रोमांस प्रेम की गहन पीड़ा और एक अनिवर्चनीय आनंद की महत् अनुभूति का स्वर बोलता है। उनके गीतों को पढ़ते समय पाठक का मन भीग उठता है और एक अजीब-सी तरलता उसकी चेतना पर छा जाती है। उन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। कोमल कल्पना और सूक्ष्म अनुभूति के साथ आपकी कविता में संगीतमयी और रंगीन भाषा भी मिलती है। उनकी कविता में रहस्य और दार्शनिकता का विशेष पुट रहता है। कवयित्री के रूप में तो महादेवी प्रसिद्ध हैं ही आधुनिक हिंदी गद्य को भी आपने अनुपम दान दिया है। आपके गद्य में काव्य की-सी ही संवेदना और चित्रात्मकता मिलती है। समाज-सेवा के अपने कार्य के दौरान महादेवी को अपने जनों को निकट से देखने का जो अवसर मिला उसी ने उन्हें पहले-पहल गद्य लिखने की ओर आकर्षित किया। निकट संपर्क में आने वाले इन साधारण जनों के जीवन को महादेवी ने अपने संस्मरणात्मक रेखाचित्रों में इतनी बारीकी और सहानुभूति से अंकित किया है कि वे हिन्दी में अपने ढंग की बेजोड़ रचनाएँ मानी जाती है। उन्हें पढ़कर हमें उन रेखाचित्रों के पात्रों की अनुभूति तो होती है, साथ ही हम लेखिका की सूक्ष्मदर्शिता गहरी भावना और कुशल शैली से भी प्रभावित होते हैं।

भाषा-शैली: महादेवी वर्मा की भाषा संस्कृतनिष्ठ है। इनकी काव्य भाषा में सिक्कों की-सी झनक और चमक है। इन्होंने छायावादी शैली के अनुरूप कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया है। उन्होंने मानवीकरण एवं प्रतीकों को विशेष अर्थों में प्रयुक्त किया है। दीपक झंझा उनके प्रिय प्रतीक हैं।

महादेवी वर्मा ने वर्णनात्मक विचारात्मक एवं भावात्मक शैली को अपनाया है। उन्हें तत्सम शब्दों के प्रति गहरा लगाव है। उनकी गद्य-शैली सरस और प्रवाहपूर्ण है।

Question 2
CBSEENHN12026465

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्द्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। उपनाम रखने की प्रतिभा होती, तो मैं सबसे पहले उसका प्रयोग अपने ऊपर करती, इस तथ्य को वह देहातिन क्या जाने, इसी से जब मैंने कंठी माला देखकर उसका नया नामकरण किया तब वह भक्तिन-जैसे कवित्वहीन नाम को पाकर भी गद्गद हो उठी।

1.    भक्तिन की तुलना किससे की गई है और क्यों?
2.    भक्तिन और लेखिका दोनों के नामों को दुर्वह क्यों कहा गया है?
3.    ‘सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है’ वाक्य को एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
4.    लेखिका ने भक्तिन को समझदार क्यों कहा है?


Easy
Question 3
CBSEENHN12026469

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावत: ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत बिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उड़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिये थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गये। ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गई। पर वहाँ न पिता का चिन्ह शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुःख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिये उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।

1. विमाता ने किस कारण पिता के बारे में सूचना भेजने में विलम्ब किया? सास ने भी क्या सोचकर उसे नहीं बताया?
2. वह किस रूप में कहाँ क्यों गई?
3. भक्तिन ने अपने नैहर जाकर क्या सुना और क्या देखा?
4. विमाता के व्यवहार पर लछमिन ने ससुराल में क्या प्रतिक्रिया प्रकट की?



Easy
Question 4
CBSEENHN12026472

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुःख ही अधिक है। जब उसने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी ओर दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया।

जिठानियाँ बैठकर लोक-चर्चा करतीं और उनके कलूटे लड़के धूल उड़ाते; वह मट्ठा फेरती, कुटती, पीसती, राँधती और उसकी नन्हीं लड़कियाँ गोबर उठातीं, कडे पाथती। जिठानियाँ अपने भात पर सफेद राब रखकर गाढ़ा दूध डालती और अपने लड़कों को औटते हुए दूध पर से मलाई उतारकर खिलाती।। वह काले गुड़ की डली के साथ कठौती में मरा पाती और उसकी लड़कियाँ चने-बाजरे की घुघरी चबातीं।

1. पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।
2. लछमिन के जीवन के दूसरे परिच्छेद में क्या हुआ?
3. जिठानियाँ क्या करती थीं?
4. लछमिन की लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था?




Easy
Question 5
CBSEENHN12026477

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
इस दंड-विधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति, उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीढी-कटी जातीं; पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उसने छाँट-छाँट कर, ऊपर से असंतोष के साथ और भीतर से पुलकित होते हुए जो कुछ लिया, वह सबसे अच्छा भी रहा, साथ ही परिश्रमी दंपति के निरंतर प्रयास से उसका सोना बन जाना भी स्वाभाविक हो गया।

1. यहाँ दंड विधान की बात क्यों की जा रही है?
2. लछमिन के पति के व्यवहार में अन्य की तुलना में क्या विचित्रता थी?
3. वह किस बात से परिचित था?
4. किस के बल पर लछमिन अपने जीवन के सघंर्ष को जीत पाई?



Easy
Question 6
CBSEENHN12026480

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अत: यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लगीं और मान न मान मैं तेरा मेहमान की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी प्रकार की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे।

1. भक्तिन का दुर्भाग्य क्या था? उसके दुर्भाग्य में किसे, क्या दिखाई दिया?
2. जिठौत ने क्या उपाय ढूँढ निकाला?
3. उस प्रस्ताव का क्या हश्र हुआ?
4. इसका माँ-बेटी तथा वर के समर्थकों पर क्या प्रभाव पड़ा?


Easy
Question 7
CBSEENHN12026487

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
एक दिन माँ की अनुपस्थिति में वर महाशय ने बेटी की कोठरी में घुसकर भीतर से द्वार बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँव वालों को बुलाने लगे। अहीर युवती ने जब इस डकैत वर की मरम्मत कर कुंडी खोली, तब पंच बेचारे समस्या में पड़ गये। तीतरबाज युवक कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दुध-का-दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला-हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनो में एक सच्चा हो चाहे दोनों झुठे; पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने ओठ काटकर लहू निकाल लिया और माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुये गाय-डोर, खेती-बारी अब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुँचने पर जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अत: दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।

1. एक दिन बेटी के साथ क्या घटित हुआ?
2. बेटी ने डकैत वर के साथ क्या व्यवहार किया?
3. पंचायत ने किस आधार पर क्या निर्णय दिया?
4. दामाद क्या करता था और बेटी किस स्थिति में रहती थी?
5. घर की आर्थिक स्थिति कैसी हो गई?





Easy
Question 8
CBSEENHN12026493

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
शास्त्र का प्रश्न भी भक्तिन अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेती है। मुझे स्त्रियों का सिर मुटाना अच्छा नहीं लगता, अत: मैंने भक्तिन को रोका। उसने अकुंठितभाव से उत्तर दिया कि शास्त्र में लिखा है। कुतूहलवश मैं पूछ ही बैठी-’क्यालिखा है?’ तुरंत उत्तर मिला-‘तीरथ गए मुँडाए सिद्ध।’ कौन-से शास्त्र का यह रहस्यमय सूत्र है, यह जान लेना मेरे लिए संभव ही नहीं था। अत: मैं हारकर मौन हो रही और भक्तिन का चूड़ाकर्म हर बृहस्पतिवार को एक दरिद्र नापित के गगंगा जल से धुले उस्तरे द्वारा निष्पन्न होता रहा।
पर वह मूर्ख है या विद्या-बुद्धि का महत्त्व नहीं जानती, यह कहना असत्य कहना है। अपने विद्या के अभाव को वह मेरी पढ़ाई-लिखाई पर अभिमान करके भर लेती है। एक बार जब मैंने सब काम करने वालों से अँगूठे के निशान के स्थान में हस्ताक्षर लेने का नियम बनाया तथा भक्तिन बड़े कष्ट में पड़ गई, क्योंकि एक तो उससे पढ़ने की मुसीबत नहीं उठाई जा सकती थी, दूसरे सब गाड़ीवान दाइयों के साथ बैठकर पढ़ना उसकी वयोवृद्धता का अपमान था। अत: उसने कहना आरंभ किया-‘हमारे मलकिन तौ रात-दिन कितबियन मा गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।’

1. पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।
2. भक्तिन हर हफ्ते क्या करवाती थी? क्यों?
3. भक्तिन किस मुसीबत में पड़ गई?
4. भक्तिन ने अपनी पढ़ाई का क्या बहाना निकाला?


Easy
Question 9
CBSEENHN12026494

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को किर्यात्मक रूप देती है, इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसी ही उद्भासित हो उठती है, जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, औंखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता। यह स्वाभाविक भी हे। किसी चित्र को पूरा करने में व्यस्त, मैं जब बार-बार कहने पर भी भोजन के लिए नहीं उठती, तब वह कभी दही का शर्बत, कभी तुलसी की चाय वहीं देकर भूख का कष्ट नहीं सहने देती।

1. कौन, किससे, क्या आग्रह करती है? क्यों?
2. वह क्या-क्या काम करती थी? इससे क्या प्रमाणित हो जाता है?
3. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन की क्या दशा होती है?
4. भक्तिन लेखिका को किस समय भूख का कष्ट नहीं सहने देती?


Easy
Question 10
CBSEENHN12026496

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक स्वामी का संबंध है, यह काफी कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो अच्छा होने पर भी सेवक की अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हंस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरे-उजाले और आंगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।

1. क्या कहना कठिन है?
2. भक्तिन और लेखिका के परस्पर संबंध को स्पष्ट कीजिए।
3. लेखिका द्वारा नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश पाकर भक्तिन की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
4. भक्तिन को नौकर कहना कितना असंगत है?



Easy

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