निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को किर्यात्मक रूप देती है, इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसी ही उद्भासित हो उठती है, जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, औंखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता। यह स्वाभाविक भी हे। किसी चित्र को पूरा करने में व्यस्त, मैं जब बार-बार कहने पर भी भोजन के लिए नहीं उठती, तब वह कभी दही का शर्बत, कभी तुलसी की चाय वहीं देकर भूख का कष्ट नहीं सहने देती।
1. कौन, किससे, क्या आग्रह करती है? क्यों?
2. वह क्या-क्या काम करती थी? इससे क्या प्रमाणित हो जाता है?
3. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन की क्या दशा होती है?
4. भक्तिन लेखिका को किस समय भूख का कष्ट नहीं सहने देती?
1. भक्तिन लेखिका से यह आग्रह करती है कि वह उसे कुछ काम करने को बतायें। वह कोई सहायता न करके अपनी हीनता स्वीकार नहीं करना चाहती है।
2. वह कभी उत्तर पुस्तिकाओं को बाँधती थी, कभी अधूरे चित्र को कोने में रख देती थी कभी रग की प्याली धो देती थी, कभी चटाई को झाडू देती थी। उसके इन कामों से उसका अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है।
3. जब कभी लेखिका की कोई पुस्तक प्रकाशत होती है तब भक्तिन के चेहरे पर उसकी मुस्कारहट की आभा देखी जा सकती है। यह स्थिति कुछ इस प्रकार का होती है जैसे स्विच दबाने मे बबल्बमें प्रकाश चमक उठता है।
4. जब लेखिका चित्र को पूरा करने में व्यस्त हो जाती और भक्तिन के कहने पर भी भोजन के लिए-नहीं उठती तब भक्तिन कभी दही का शर्बत (लस्सी) तो कभी तुलसी की चाय बनाकर उन्हें पिलाती और इससे उनकी भूख को शांत करती।